झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का निधन, 81 साल की उम्र में ली अंतिम सांस, राज्य में शोक की लहर

झारखंड की राजनीति में एक युग का अंत हो गया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सोमवार सुबह निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में आखिरी सांस ली। लंबे समय से बीमार चल रहे शिबू सोरेन को हाल ही में तबीयत बिगड़ने पर दिल्ली लाया गया था, जहां उनकी हालत और अधिक गंभीर हो गई। अस्पताल में भर्ती कराए जाने के बाद डॉक्टरों ने किडनी में संक्रमण और ब्रोंकाइटिस की पुष्टि की थी।

सुबह 8:56 बजे ली अंतिम सांस, डॉक्टर ने दी पुष्टि

सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. ए.के. भल्ला ने जानकारी देते हुए बताया, “यह बताते हुए अत्यंत दुख हो रहा है कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन जी को आज सुबह 8:56 बजे मृत घोषित कर दिया गया। वे कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे और उनकी स्थिति लगातार बिगड़ रही थी।”

परिवार के लोग अस्पताल में रहे मौजूद

उनकी तबीयत खराब होने की खबर मिलते ही उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, बहू कल्पना सोरेन और छोटे बेटे बसंत सोरेन दिल्ली पहुंच गए थे। अस्पताल में इलाज के दौरान परिवार लगातार उनके साथ मौजूद रहा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और झारखंड के राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन (पहले संतोष गंगवार लिखा गया था, सही नाम यह है) भी उन्हें देखने गंगाराम अस्पताल पहुंचे थे।

राजनीति में लंबा संघर्ष और योगदान

शिबू सोरेन झारखंड अलग राज्य आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे। उन्होंने आदिवासियों और स्थानीय लोगों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की थी। अलग राज्य बनने के बाद वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा उन्होंने 2004 में केंद्र सरकार में कोयला मंत्री के रूप में भी काम किया था। वे सात बार लोकसभा सांसद के रूप में निर्वाचित हुए।

परिवार की राजनीतिक विरासत

शिबू सोरेन का राजनीतिक परिवार झारखंड में सक्रिय है। उनके बेटे हेमंत सोरेन वर्तमान में मुख्यमंत्री हैं। उनकी बहू कल्पना सोरेन विधायक हैं और छोटे बेटे बसंत सोरेन भी दुमका से विधायक हैं। हालांकि उनके बड़े बेटे दुर्गा सोरेन का पहले ही निधन हो चुका है, लेकिन दुर्गा की पत्नी सीता सोरेन अब भाजपा में शामिल होकर राजनीति में सक्रिय हैं।

झारखंड में शोक की लहर, जन-जन भावुक

1944 में रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन का जीवन पूरी तरह आंदोलन और जनसेवा को समर्पित रहा। उनके निधन की खबर से पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है। कई इलाकों में लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए मौन रखा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यालयों में झंडे झुका दिए गए।

न्याय, जल-जंगल-जमीन के लिए लड़ने वाला योद्धा

शिबू सोरेन केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन के प्रतीक थे। वे जल, जंगल और जमीन के हक की लड़ाई के पर्याय बन गए थे। उनके नेतृत्व में झारखंड की पहचान बनी, और वे जीवनभर आदिवासी हितों की रक्षा के लिए संघर्षरत रहे। उनका निधन राज्य और देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

राष्ट्रीय स्तर पर भी था मजबूत प्रभाव

हालांकि उन्होंने झारखंड में अपना राजनीतिक आधार बनाया, लेकिन उनका प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर भी देखा गया। केंद्र में मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई नीतिगत निर्णयों में अहम भूमिका निभाई। उनके निधन से देश की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को गहरा आघात पहुंचा है।

आखिरी दर्शन और श्रद्धांजलि का इंतजार

अब झारखंड की जनता अपने नेता के आखिरी दर्शन के इंतजार में है। संभावना जताई जा रही है कि उनका पार्थिव शरीर रांची लाया जाएगा, जहां राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। सरकार द्वारा राजकीय शोक की घोषणा भी की जा सकती है।