Gaza: इज़राइल-गाज़ा युद्ध ने केवल बमबारी और तबाही ही नहीं, बल्कि मानवीय त्रासदी की ऐसी तस्वीर पेश की है, जो आत्मा को झकझोर देती है। गाज़ा के 21 लाख निवासियों पर जारी भीषण हमलों, विस्थापन और आवश्यक वस्तुओं की कटौती ने उन्हें ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है, जहां भूख अब केवल पेट की आग नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु का संघर्ष बन गई है।
लगातार विस्थापन और ब्लॉकेड
7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा इज़राइल पर हमला करने के बाद शुरू हुए इस संघर्ष ने अब तक हजारों जानें ले ली हैं। गाज़ा के लोग इस युद्ध में सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं। कुछ लोगों को दस बार तक अपना घर छोड़ना पड़ा है। हर विस्थापन के साथ भोजन और पानी जैसे बुनियादी संसाधनों तक पहुंच और भी कठिन होती गई।
इज़राइल ने मार्च से लगभग ढाई महीने तक गाज़ा पर पूर्ण ब्लॉकेड लागू किया, जिसमें भोजन, दवाइयां और अन्य जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति पूरी तरह बंद कर दी गई थी। इसका मकसद हमास पर दबाव बनाना था, ताकि वे बंधकों को रिहा करें। लेकिन इस नीति का सबसे बड़ा खामियाजा वहां के आम नागरिकों, खासकर बच्चों और बुज़ुर्गों को भुगतना पड़ा।
भुखमरी और कुपोषण: मौत का दूसरा चेहरा
गाज़ा में आज ऐसी स्थिति बन चुकी है, जहां शरीर पोषण के अभाव में खुद को ही खाने लगता है। जब शरीर को ऊर्जा नहीं मिलती, तो वह अपने ही अंगों की मांसपेशियों और ऊतकों को तोड़कर ऊर्जा पैदा करने लगता है। यह स्थिति बेहद दर्दनाक होती है, और कई बार इससे अंगों की विफलता और अंततः मौत हो जाती है।
बाल स्वास्थ्य पर इसका असर सबसे अधिक पड़ा है। कुपोषण और डायरिया जैसी बीमारियों से सैकड़ों बच्चे जान गंवा चुके हैं। अस्पतालों में दवाइयों और पोषण सप्लीमेंट्स की भारी कमी है, और जो थोड़ी बहुत मदद पहुंच रही है, वह आबादी की आवश्यकताओं के सामने बेहद अपर्याप्त है।
सहायता क्यों नहीं पहुंच पा रही?
मई में राहत सामग्री की आपूर्ति फिर से शुरू तो हुई, लेकिन वह भी केवल बूंद-बूंद करके। युद्ध से पहले जहां प्रतिदिन लगभग 500 ट्रकों से राहत सामग्री पहुंचती थी, वहीं अब कई बार यह संख्या घटकर सिर्फ 10 से 20 ट्रकों तक सिमट गई है। मानवीय संगठनों के अनुसार, यह मात्रा इतनी कम है कि इससे केवल सिस्टम को पूरी तरह से ढहने से रोका जा सकता है, पर भूख, बीमारी और मौत को नहीं।
क्या कोई अंत नजर आता है?
गाज़ा की त्रासदी अब केवल एक युद्ध की कहानी नहीं है, यह एक मानवाधिकार संकट बन चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की निष्क्रियता, सहायता एजेंसियों की सीमित पहुंच और राजनीतिक जटिलताएं इसे और गहरा बना रही हैं।
जब एक भूखा बच्चा तिल-तिल कर मरता है, तो वह सिर्फ एक संख्या नहीं होता — वह सभ्यता के नाम पर एक कलंक होता है। गाज़ा आज एक ऐसा आईना है, जिसमें मानवता अपने सबसे बदसूरत रूप में दिख रही है।
अब समय आ गया है कि दुनिया केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ठोस कदम उठाए — क्योंकि जब शरीर खुद को खाना शुरू कर दे, तो वह सिर्फ भुखमरी नहीं, एक मौन नरसंहार होता है।