Geeta Jayanti Special : सनातन परंपरा में मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है। इस तिथि को मोक्षदा एकादशी के साथ-साथ गीता जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी पवित्र दिन पर कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने मोहग्रस्त अर्जुन को कर्म, धर्म और जीवन का सार समझाया था। इन उपदेशों का संकलन ही पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता है, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत पूजनीय माना जाता है।
गीता जयंती का पर्व हमें उस ऐतिहासिक दिन की याद दिलाता है जब मानवता को जीवन जीने की कला सिखाने वाला यह अद्भुत ज्ञान प्राप्त हुआ। गीता के श्लोक आज भी लोगों को जीवन की सही राह दिखाते हैं और मुश्किल समय में मार्गदर्शन का काम करते हैं।
क्यों खास है श्रीमद्भगवद्गीता?
श्रीमद्भगवद्गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन दर्शन है। इसमें कर्म, भक्ति और ज्ञान का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह ग्रंथ सिखाता है कि किस तरह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धर्म के मार्ग पर चलते हुए अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। माना जाता है कि गीता में व्यक्ति के जीवन की हर समस्या का समाधान मौजूद है।
श्रीकृष्ण के प्रमुख उपदेश
गीता में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए कई ऐसे उपदेश हैं, जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं और मनुष्य को सही दिशा दिखाते हैं।
कर्म का सिद्धांत
श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन:’। इसका अर्थ है कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने पर है, उसके फल पर नहीं। इसलिए व्यक्ति को फल की इच्छा किए बिना अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से करना चाहिए।
आत्मा की अमरता
जब अर्जुन अपने ही संबंधियों के विरुद्ध शस्त्र उठाने से हिचक रहे थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें आत्मा के सत्य से अवगत कराया। उन्होंने कहा, ‘नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:’, अर्थात आत्मा अजर-अमर है। उसे न तो कोई शस्त्र काट सकता है और न ही अग्नि जला सकती है। शरीर नश्वर है, आत्मा नहीं।
धर्म की स्थापना का वचन
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में अपने अवतार का उद्देश्य स्पष्ट किया है। वे कहते हैं, ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:’ और ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्’। इसका सार यह है कि जब-जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब वे सज्जनों की रक्षा और दुष्टों के संहार के लिए पृथ्वी पर अवतार लेते हैं।
जीवन ही है धर्मक्षेत्र
गीता के प्रथम श्लोक ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’ में ही जीवन का गहरा मर्म छिपा है। यह संदेश देता है कि जीवन का प्रत्येक क्षेत्र एक धर्मक्षेत्र है, जहाँ हमें धर्म का पालन करते हुए अपने कर्म करने चाहिए। श्रीकृष्ण के अनुसार, किसी भी परिस्थिति में धर्म का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।