भारत में 2025 के दौरान विदेशी कंपनियों द्वारा किए जा रहे निवेश (FDI) के वादों में उल्लेखनीय तेजी देखी जा रही है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार टेक कंपनियों, सेमीकंडक्टर निर्माताओं, ऑटोमोबाइल, फाइनेंशियल सर्विसेज और ऊर्जा क्षेत्र की बड़ी कंपनियों ने मिलकर अब तक करीब 135 अरब डॉलर निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है।
इनमें से कई प्रोजेक्ट्स पर काम भी शुरू हो चुका है, खासकर उन सेक्टरों में जहां प्रक्रियाएं अपेक्षाकृत तेज़ी से पूरी होती हैं, जैसे ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs)। अनुमान है कि अगले पांच वर्षों में हर साल लगभग 27 अरब डॉलर का अतिरिक्त FDI भारत आएगा, जो पिछले वर्ष आए कुल 81 अरब डॉलर का लगभग एक-तिहाई है।
बड़ी वैश्विक कंपनियों का भारत पर बढ़ता भरोसा
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच भारत में एफडीआई इनफ्लो में 16% की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जिससे कुल निवेश 50.4 अरब डॉलर तक पहुंच गया। इसमें इक्विटी निवेश और पुनर्निवेश दोनों शामिल हैं। अधिकारियों का मानना है कि पहली बार भारत एक वित्तीय वर्ष में 100 अरब डॉलर का FDI पार कर सकता है।
इस रफ्तार के पीछे भरोसेमंद कारण भी हैं—Google, Microsoft और Amazon जैसी दिग्गज कंपनियों ने बड़े पैमाने पर निवेश योजनाओं की घोषणा की है। इन तीनों कंपनियों का संयुक्त निवेश अब 70 अरब डॉलर से अधिक हो गया है, जिसने भारत के प्रति वैश्विक विश्वास को और मजबूत किया है।
कई दिग्गज कंपनियों के निवेश प्रस्ताव कतार में
टेक कंपनियों के अलावा भी 750–800 निवेश प्रस्ताव मंजूरी की प्रतीक्षा में हैं, जिनका कुल मूल्य 65 अरब डॉलर से अधिक है। इनमें Foxconn, VinFast और Shell Energy जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं।
ये निवेश ऐसे समय पर बढ़ रहे हैं जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) भारतीय शेयर बाजार से बड़ी मात्रा में पूंजी निकाल रहे हैं। कई विदेशी कंपनियों ने भारतीय कंपनियों के आईपीओ के बाद अपने हिस्सेदारी बेची है और कई भारतीय कंपनियां भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार कर रही हैं ताकि वे ग्लोबल सप्लाई चेन से गहराई से जुड़ सकें।
नेट FDI पर बना दबाव
भले ही निवेश प्रस्तावों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है, लेकिन नेट FDI पर कुछ दबाव बना हुआ है। इसका मुख्य कारण विदेशी निवेशकों द्वारा शेयर बाजार से पूंजी निकासी और भारतीय कंपनियों का विदेशों में अधिक निवेश करना है। इसके बावजूद नई निवेश घोषणाएं संकेत देती हैं कि आने वाले वर्षों में भारत वैश्विक निवेश का प्रमुख केंद्र बनकर उभरेगा।