Government के दो संस्थानों में जमीन की लड़ाई

प्रवीण शर्मा, भोपाल

एक ही प्रदेश, एक ही सरकार और व्यवस्था का अंग होने के बावजूद सरकारीन( Government ) संस्थाओं के बीच भी जमीन को लेकर कितनी खींचतान चलती है, इसकी उदाहरण है राजधानी में स्थित एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट ऑफ एक्सीलेंस और वॉटर एंड लेंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (वाल्मी) संस्थान के बीच जमीन को लेकर बीते 29 सालों से चल रहा संघर्ष।

Government का उच्च शिक्षा विभाग भी तीन किस्तें भर चुका है

वाल्मी संस्थान मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाले एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट से साहूकार की तर्ज पर एक जर्जर शेड के किराए के रूप में ढाई करोड़ रुपए वसूल कर चुका है। आश्चर्य की बात यह है कि वाल्मी से जमीन का कब्जा अपने संस्थान को दिलाने सरकार ( Government ) का उच्च शिक्षा विभाग भी किराए की तीन किस्तें भर चुका है, वह भी ब्याज सहित। उच्च शिक्षा विभाग ने हाल ही में 25 सितंबर को एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट को भवन किराए के रूप में 39 लाख 3 हजार रुपए स्वीकृत किए हैं। इंस्टीट्यूट ने यह राशि विड्रा भी कर ली है। यह राशि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अधीन वाल्मी संस्थान को दी गई है, वह भी तीन जर्जर शेड के किराए के रूप में। बीते 3-4 सालों में एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट करीब ढाई करोड़ रुपए वाल्मी को दे चुका है। जबकि शासन स्तर पर ही इन शेड की कुल कीमत 19 लाख रुपए आंकी गई थी। मगर एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट यदि किराया देने से मना करता है तो वाल्मी प्रबंधन अपने शेड जमीन सहित वापस मांगने लगता है। इन शेड में एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट के विद्यार्थियों के लिए साइंस लैब बनी हैं, जिस पर लाखों रुपए खर्च किए जा चुके हैं।

डायरेक्टर्स की लापरवाही

एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट के पुराने डायरेक्टर्स की लापरवाही ने भी इस विवाद को बढ़ाने का काम किया है। 2015-16 में तत्कालीन डायरेक्टर्स यदि 19 लाख रुपए वाल्मी को दे देते तो करीब सवा दो करोड़ रुपए बच जाते, जो छात्र-छात्राओं द्वारा दी गई फीस की राशि से जमा हुए हैं। एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट की स्थापना से लेकर पिछले साल तक किसी ने ध्यान ही नहीं दिखा। उच्च शिक्षा के पूर्व पीएस शैलेंद्र सिंह की मुस्तैदी से पिछले साल यह एकमुश्त राशि देने का फार्मूला निकल सका। जिस पर वर्तमान प्रबंधन ने पूरी राशि जमा कर अमल किया। मगर वाल्मी द्वारा साहूकारों द्वारा ब्याज सहित किराया मांगना भी पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। जबकि इसी परिसर में एक्सीलेंस कॉलेज ने शासन के निर्देश पर निजी विश्वविद्यालय आयोग को करीब तीन एकड़ बिना किसी लेन-देने के दे दी है।

29 साल से चल रही लड़ाई

दोनों संस्थानों के बीच जमीन की ये खींचतान और किराए का खेल बीते 29 सालों से चल रहा है। राज्य शासन ने 1995 में वाल्मी की जमीन में से 28.97 एकड़ जमीन उत्कृष्टता संस्थान के नाम पर आवंटित कर दी थी। बकायदा नक्शा बनाकर पूरी जमीन की लिखा-पढ़ी भी एक्सीलेंस के नाम पर हो गई थी। तब इस जमीन पर वाल्मी के तीन शेड ही बने हुए थे। कब्जा लेने के बाद एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट ने पूरी जमीन पर अपना कैंपस डेवलप कर लिया। मगर कुछ सालों बाद वाल्मी प्रबंधन ने शेड पर अपना दावा जताना शुरू कर दिया। दोनों ओर से पत्र भी लिखे गए। फिर 2015-16 में तत्कालीन सीएम, उच्च शिक्षा व वित्त सहित पांच विभागों के प्रमुख सचिवों की मौजूदगी में इन शेड की कीमत लगाई गई और उस समय इसकी कीमत 19 लाख रुपए एक्सीलेंस की ओर से वाल्मी को देना तय हुआ। मगर वाल्मी अब तक करीब ढाई करोड़ रुपए एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट से ले चुका है। पहले एकमुश्त डेढ़ करोड़ वाल्मी को दिए गए। फिर पिछले साल से लेकर अब तक विभाग द्वारा 50 लाख, 16 लाख और 39 लाख की तीन किस्तों में एक करोड़ रुपए दिए गए हैं। वाल्मी ब्याज भी वसूल कर रहा है।

ढाई करोड़ रुपए का भुगतान वाल्मी को किया है

वाल्मी शुरू से ही अपने शेड्स का किराया हमसे ले रहा है। पिछले साल हुए समझौते की अंतिम किस्त के रूप में 39 लाख रुपए उसके खाते में दिए गए हैं। अब कोई राशि शेष नहीं है। कुछ ढाई करोड़ रुपए का भुगतान वाल्मी को किया है। हां, जमीन तो वह भी सरकारी ही थी और हमारा संस्थान भी सरकारी ही है।
-प्रो. प्रज्ञेश कुमार अग्रवाल, डायरेक्टर एक्सीलेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन।