इंदौर के समीप स्थित रालामंडल अभयारण्य क्षेत्र में अब प्राकृतिक हरियाली को संरक्षित रखने और शहरी विकास को संतुलित करने के उद्देश्य से एक ग्रीन कॉरिडोर विकसित किया जाएगा। यह निर्णय हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता संभागायुक्त दीपक सिंह ने की। यह परियोजना इंदौर के मेट्रोपॉलिटन सिटी के रूप में विस्तार के दृष्टिगत तैयार की जा रही है।
ईको सेंसिटिव ज़ोन में सीमित निर्माण
बैठक में स्पष्ट निर्देश दिए गए कि रालामंडल अभयारण्य के एक किलोमीटर के दायरे को ईको सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया जाएगा, जहां घनी बसाहट और सघन निर्माण कार्य पर रोक रहेगी। इस निर्णय का उद्देश्य अभयारण्य की पारिस्थितिकी को सुरक्षित रखते हुए आसपास के वन्य प्राणियों को स्वतंत्र रूप से विचरण करने की सुविधा देना है।
“ऑक्सीजन बॉक्स” बनेगा रालामंडल क्षेत्र
कमिश्नर दीपक सिंह ने कहा कि इंदौर जैसे बड़े शहर के लिए शुद्ध वायु की उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है। रालामंडल और उसकी आसपास की पहाड़ियों को जोड़कर एक हराभरा ग्रीन कॉरिडोर विकसित किया जाएगा, जो आने वाले समय में “ऑक्सीजन बॉक्स” के रूप में कार्य करेगा। यह कॉरिडोर न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देगा, बल्कि वन्य जीवन के लिए भी एक उपयुक्त प्राकृतिक मार्ग सुनिश्चित करेगा।
सभी विभागों को संयुक्त फील्ड विजिट के निर्देश
ग्रीन कॉरिडोर की योजना को मूर्त रूप देने के लिए नगर एवं ग्राम निवेश, इंदौर विकास प्राधिकरण (IDA), नगर निगम, वन विभाग, राजस्व विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को संयुक्त फील्ड विजिट कर क्षेत्र का गहन अध्ययन करने और विकास की दिशा में ठोस कार्ययोजना तैयार करने को कहा गया है।
भू-उपयोग मापदंडों पर विशेष चर्चा
बैठक में रालामंडल क्षेत्र में आवासीय विकास के लिए बनाए गए नियोजन मापदंडों पर भी विस्तार से चर्चा की गई। यह सुनिश्चित किया गया कि किसी भी निर्माण गतिविधि से अभयारण्य की प्राकृतिक संरचना प्रभावित न हो।
- भू-उपयोग के प्रमुख मानक इस प्रकार होंगे:
- भूखंड का न्यूनतम क्षेत्रफल 500 वर्ग मीटर निर्धारित किया गया है।
- किसी भी निर्माण में भू-आच्छादित क्षेत्र अधिकतम 15% तक सीमित रहेगा।
- भवन की अधिकतम ऊंचाई 12.50 मीटर हो सकेगी।
- कुल भूमि क्षेत्रफल का कम से कम 10% भाग खुला क्षेत्र (ओपन स्पेस) के रूप में रखना अनिवार्य होगा।
वन्य प्राणियों के लिए खुला नेटवर्क
कमिश्नर ने यह भी सुझाव दिया कि रालामंडल और आसपास की पहाड़ियों को आपस में जोड़ा जाए ताकि एक ऐसा नेटवर्क तैयार हो जो वन्य प्राणियों को बिना रुकावट घूमने की सुविधा दे सके। यह कदम जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में बेहद अहम साबित होगा।