Hal Shashti 2025: भाद्रपद का महीना 10 अगस्त, रविवार से आरंभ हो चुका है और इसके साथ ही इस महीने के पर्व-त्योहार भी शुरू हो गए हैं। भादो माह में कजरी तीज, हल षष्ठी और जन्माष्टमी जैसे महत्वपूर्ण पर्व मनाए जाते हैं। इनमें से हल षष्ठी का विशेष महत्व है, जिसे मुख्य रूप से माताएं संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। कई लोग इस व्रत की तिथि और पूजा-विधि को लेकर उलझन में रहते हैं, इसलिए ज्योतिषाचार्यों की राय के अनुसार इसकी सही जानकारी आवश्यक है।
हल षष्ठी व्रत की तिथि और समय
हिन्दू पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को हल षष्ठी का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष पंचमी तिथि 14 अगस्त की सुबह 4:23 बजे तक रहेगी, जिसके बाद षष्ठी तिथि प्रारंभ होगी और यह 15 अगस्त को सुबह 2:07 बजे तक चलेगी। उदया तिथि के आधार पर यह व्रत 14 अगस्त, गुरुवार को ही मनाया जाएगा। चातुर्मास के दौरान आने वाले व्रत मध्यान्ह व्यापनी माने जाते हैं, यानी इनका पालन दोपहर में किया जाता है।
व्रत का धार्मिक महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार, हल षष्ठी व्रत रखने से संतान सुख की प्राप्ति होती है और जीवन की परेशानियां दूर होती हैं। इस दिन भगवान बलराम और षष्ठी माता की पूजा की जाती है। खासतौर पर जिन दंपतियों को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ है, उनके लिए यह व्रत मनोकामना पूर्ति का माध्यम माना जाता है। इस अवसर पर माताएं बिना हल जोते खेत के अन्न और दूध-दही का सेवन नहीं करतीं और दिनभर व्रत रहकर संतान की कुशलता के लिए प्रार्थना करती हैं।
हल षष्ठी व्रत कथा
पुराने समय में एक गांव में एक दूध बेचने वाली ग्वालिन रहती थी। उसके घर एक शिशु का जन्म हुआ। गांव में प्रथा थी कि जन्म के छठे दिन ‘छठी माई’ की पूजा की जाती थी, जिसमें पकवान बनते और मेहमान आते। लेकिन ग्वालिन लालच में पड़ गई। पूजा के दिन उसने दूध-दही बेचने के बर्तन घर में छोड़ दिए और बिक्री के लिए निकल गई। लौटते समय उसने खेत में हल जोतते बैलों को देखा और सोचा कि बछड़ा चुरा लेगी ताकि अपने मवेशियों की संख्या बढ़ा सके। उसने ऐसा ही किया, लेकिन छठी माई यह सब देख रही थीं। क्रोधित होकर उन्होंने ग्वालिन के बच्चे को उठा लिया और बछड़े को वहां छोड़ दिया। पछताकर ग्वालिन ने क्षमा मांगी और वचन दिया कि वह आगे से किसी का हक नहीं मारेगी तथा छठी के दिन हल जोते खेत का अन्न और दूध-दही का लेन-देन नहीं करेगी। तब जाकर छठी माई ने उसका बच्चा वापस लौटा दिया।
पूजा की तैयारी और सामग्री
हल षष्ठी की पूजा के लिए सबसे पहले घर या आंगन को साफ करके पवित्र जल का छिड़काव करें। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर षष्ठी माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। पूजा सामग्री में मिट्टी या पीली मिट्टी से बनी माता की प्रतिमा, दूध से धोए हुए केले, जामुन, बेर, भैंस का दूध-दही, बिना हल जोते खेत की फसल जैसे धान की बालियां, मक्का, ज्वार, फूल, दीपक, अगरबत्ती, रोली, अक्षत, सात अनाज, फल, नारियल और राख शामिल करें।
पूजा विधि
दीपक जलाकर माता को फल, फूल, दूध-दही, हल्दी, चावल और मिठाई अर्पित करें। फिर हल षष्ठी की कथा सुनें या पढ़ें। कथा के बाद आरती कर संतान की सेहत और सुख-समृद्धि की कामना करें। व्रत के दौरान हल जोते खेत का अन्न, गेहूं, चावल, दूध-दही और उससे बने पदार्थों का सेवन वर्जित है। यह व्रत निर्जला या फलाहार से रखा जा सकता है और अगले दिन सुबह पूजा कर इसे समाप्त किया जाता है।