हरदा हादसा… मलबे में तब्दील लाशें, दर्जनों बच्चे गायब

स्वतंत्र समय, हरदा

बारूद फैक्ट्री में धमाके के बाद दूसरे दिन भी बचाव काम जारी रहा। लगातार मलबा खोदा जा रहा है। इसी बीच अस्पताल में भर्ती मजदूर संदीप ने बताया की वह पटाखों में बत्ती लगाने का काम करते थे। उसका कहना है कि महिला मजदूरों के साथ उनके बच्चे भी आते थे। ये बच्चे काम में अपनी मां की मदद करते थे। संदीप से मुताबिक जब ब्लास्ट हुआ तब फैक्ट्री में 20-25 बच्चे थे। मलबे से दूसरे दिन खोपड़ी और कंकाल निकलते रहे। चश्मदीदों का दावा है कि सैकड़ों लोग गुम हैं। जिस हॉल में बड़ा धमाका हुआ, वहां बमों का बारीक काम होता था। महिलाएं ही काम करती थीं। उन महिलाओं के साथ बच्चे भी कारखाने में आते थे… सब गायब हैं।

नौकरी सरकारी अपराधी से वफादारी बरवा पर भारी

हरदा में पटाखा फैक्ट्री में धमाके के मामले में हालात का जायजा लेने पहुंचे सीएम मोहन यादव ने घटना में कलेक्टर और एसपी को दोषी पाते हुए तत्काल प्रभाव से हटा दिया। सरकार ने बड़ा एक्शन लेते हुए कलेक्टर ऋषि गर्ग और एसपी संजीव कुमार कंचन और नवीन बरवा कारखाना निरीक्षक एवं सहायक संचालक औद्योगिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा सागर संभाग को भी निलंबित कर दिया है। सीएम यादव घटनास्थल पर भी गए थे। हादसे के पीडि़तों का अधिकारियों को लेकर रोष भी सामने आया।

खेतों में फसल के बीच लाशें

साशल मीडिया पर वायरल वीडियो के मुताबिक गेहूं के खेतों में कई लाशें हो सकती हैं। नहीं पता किस हिसाब से 12 मौत बताई है। किसी का हाथ मिल रहा है, किसी का पैर। पांच किलोमीटर तक चिथड़े हैं। तीन मंजिला फैक्टरी थी। पांच बड़े हॉल में सुतली बम और पटाखे बनाए जाते थे। एक बार में 80 से 100 मजदूर काम करते थे। बाहर टीन-शेड में भी काम चलता था, जहां डेढ़ सौ मजदूर रहते थे। धमाके के वक्त भी 400 के लगभग थे। कई लापता हैं। इस फैक्टरी में धमाका नई बात नहीं है। इस बार इसलिए बढ़ गया कि चिंगारी उस तलघर तक पहुंच गई, जहां बारूद और बम के बड़े-बड़े पैकेट रखे थे। दावा ये भी है कि फैक्टरी मालिक को सिर्फ 15 किलो बारूद का लाइसेंस था, लेकिन वह टनों माल बनाता था। देश भर में हरदा से पटाखे जाते थे।

पटाखा फैक्ट्री पर बुलडोजर चलाने की मांग

हरदा के रहटाखुर्द के पास संचालित पटाखा फैक्ट्री पर बुलडोजर चलाने की मांग उठी है। इसे लेकर ग्रामीणों ने कांग्रेस नेताओं के साथ मिलकर धरना दिया।

नेहा ने खो दिए माता-पिता

कारखाने के पास ही नेहा चंदेल रहती है। नेहा ने बताया, मैं कॉलेज जा रही थी, तभी एक धमाका हुआ। दो बहनें और माता-पिता घर से भागे। घर में दादाजी थे। उन्हें चलने में तकलीफ है। मेरे माता-पिता उन्हें लेने घर गए। दादाजी को तो उन्होंने सुरक्षित निकाल लिया, लेकिन दूसरे धमाके के बाद पत्थरों की बारिश होने लगी। बड़े-बड़े पत्थर माता-पिता के सिर पर गिरे। दोनों की मौत हो चुकी है। नेहा ने कहा कि हम अनाथ हो गए। रहने को घर भी नहीं बचा। माता-पिता की अर्थी भी दूसरों के घर से उठाना पड़ी।

फोन कर बिजली बंद कराई

फैक्टरी के पास की बस्ती में बिजली विभाग में काम करने वाले कर्मचारी इशहाक खान भी रहते हैं। वे हादसे के वक्त घर के पास थे। उन्होंने कहा, धमाके के बाद बिजली के पोल झुक गए। तार जमीन तक आ गए थे। मैंने तत्काल फोन लगाकर बिजली सप्लाई बंद कराई, नहीं तो भगदड़ के दौरान लोग बिजली के तारों के करंट से भी मरते।

फैक्ट्री में कई नियमों का उल्लंघन

आरोप है कि फैक्ट्री मालिक राजू अग्रवाल ने आसपास बस्ती के घरों में बारूद रखवाया था। कुछ मजदूर घर से ही काम करते थे। उन्हें सामान दिया जाता था और तय वक्त पर लिया जाता था। मजदूरी कम देते थे, लेकिन घर पर बारूद रखने के एवज में अलग से पैसा मिलता था। बीस साल से फैक्टरी चल रही थी। न तो फायर-सेफ्टी के इंतजाम थे और न ही मजदूर-कानून पूरे किए जाते थे। सरकार में अच्छी पकड़ होने के कारण अंधेर जारी थी, कोई सवाल पूछने वाला नहीं।