क्या महिला आरक्षण के दांव से सेट कर दिया है पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का एजेंडा? जानें कितना बदलेगा सियासी समीकरण

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. विधानसभा चुनाव में लगभग दो महीने का समय बचा है. मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ और राजस्थान तक यात्राओं की सियासत चल रही है. छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस राज्य सरकार की लोक लुभावन घोषणाओं के सहारे सत्ता छीनने की कोशिश में है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) परिवर्तन यात्राओं के जरिए सत्ता में वापसी की. मध्य प्रदेश में सीएम शिवराज जन आशीर्वाद यात्रा पर निकले हैं तो कांग्रेस भी जनाक्रोश यात्रा निकाल रही है.

महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन अधिनियम) संविधान के 128वें संशोधन के बाद संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो गया है. केंद्र सरकार इस बिल की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजेगी, वहां से मंजूरी मिलने के बाद ये कानून का रुप ले लेगा. बीते दिनों राज्यसभा में इस बिल पर हुई वोटिंग में इसके सपोर्ट में 214 वोट पड़े, जबकि मुखालिफत में एक भी वोट नहीं पड़े. इसी तरह लोकसभा में वोटिंग के दौरान इसके सपोर्ट में 454 वोट पड़े, जबकि विरोध सिर्फ एआईएमआईएम के दो सांसदों ने इसके मुखालिफ में वोट डाला. इस बिल को लेकर पूरे देश से मिली जुली प्रतिक्रिया मिल रही है.

राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी ने कहा कि लोकसभा चुनाव में अभी करीब छह महीने का समय बचा है और शीतकालीन सत्र में करीब दो महीने का. सरकार का फोकस अगर बस लोकसभा चुनाव ही होता तो ये बिल शीतकालीन सत्र में लाया जाता. तब तक समय चक्र की चाल चुनाव और तारीख की दूरी थोड़ी और कम कर चुकी होती. लेकिन सरकार ये बिल विशेष सत्र में लेकर आई जो बताता है कि निगाहें भले ही 2024 पर हों, निशाना पांच राज्यों के चुनाव हैं.

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इस साल के आखिर में 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि अगले साल यानि 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं. सियासी जानकारों के मुताबिक, आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में बीजेपी को स्वाभाविक रुप से फायदा मिलने की उम्मीद है. चुनाव आयोग के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 95 करोड़ मतदाता रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से लगभग आधी महिला मतदाता हैं. इस बार संख्या के आधार पर महिला और पुरुष मतदाताओं के बीच सिर्फ 3.45 फीसदी का अंतर है, जो बीत सालों में कई सालों में सबसे कम है.

अब सवाल ये भी उठ रहे हैं कि राज्यों के चुनाव में ऐसा क्या है कि मोदी सरकार को महिला आरक्षण के जरिए एजेंडा सेट करना पड़ रहा है? ये समझने के लिए बीजेपी और कांग्रेस की रणनीति के साथ ही नेतृत्व की चर्चा जरूरी है. बीजेपी के लिए चुनावी राज्यों में कई चुनौतियां हैं. मध्य प्रदेश में सत्ता में रहकर भी पार्टी मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं बता पा रही है. छत्तीसगढ़ में साढ़े चार साल तक बीजेपी नेताओं की निष्क्रियता के साथ राजस्थान में वसुंधरा राजे की पार्टी की परिवर्तन यात्रा से दूरी को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.

दूसरी तरफ कांग्रेस जहां सत्ता में है, वहां लोकलुभावन योजनाओं के सहारे माहौल बनाने की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया. पार्टी जहां विपक्ष में है, वहां स्थानीय समस्याओं के साथ ही महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया, प्याज और टमाटर की कीमतें याद दिलाई जाने लगीं.

इन तीनों प्रदेशों में बीजेपी और कांग्रेस महिलाओं के लिए लगातार घोषणाएं कर रहे हैं. महिला आरक्षण बिल और नारी शक्ति वंदन अधिनियम बिल के दोनों सदनों से मंजूरी मिलने के बाद विपक्षी गठबंधन और एनडीए दोनों आगामी चुनाव में महिला हितैषी बताकर भुनाने की कोशिश करेंगे. सदन में बिल को पेश करते समय कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव मल्लिकार्जुन खरगे ने इसमें ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय को जाति आधिरत आरक्षण देने की मांग की थी.

मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगभग 50 फीसदी और छत्तीसगढ़ में लगभग 42 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं. तेलंगाना में 54 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं. सदन में इनके लिए आरक्षण की मांग कर कांग्रेस ने इस वर्ग को साधने की कोशिश की.