मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में स्थित पातालकोट एक रहस्यमयी और सुंदर घाटी है, जो चारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई है। यहां करीब 3000 फीट गहरी घाटी में बसे गांवों में आज भी आदिवासी समुदाय अपनी पारंपरिक जीवनशैली के साथ रहते हैं। पातालकोट को आमतौर पर लोग उसकी खूबसूरत वादियों और छिपे हुए रहस्यों के लिए जानते हैं, लेकिन असल में यह स्थान आयुर्वेद और जड़ी-बूटियों का खजाना है।
जड़ी-बूटियों से होता है गंभीर रोगों का इलाज
पातालकोट को ‘हर्बल वैली’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां की जंगलों में ऐसी दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटियां पाई जाती हैं, जो कई गंभीर बीमारियों का इलाज कर सकती हैं। कुपोषण, गठिया, मधुमेह, त्वचा रोग, अस्थमा जैसी बीमारियों के लिए यहां के वैद्य और जानकार वर्षों से जड़ी-बूटियों से इलाज करते आ रहे हैं। यहां की खासियत यह है कि इन दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और ये पूरी तरह प्राकृतिक होती हैं।
आदिवासी वैद्य आज भी सहेजे हुए हैं सदियों पुराना ज्ञान
पातालकोट में बसे भीमकोल, घोघरी, रातेमा, हर्राखोह जैसे गांवों में रहने वाले भील और भारिया जनजाति के लोग आज भी पारंपरिक जड़ी-बूटी चिकित्सा प्रणाली को अपनाते हैं। यहां के जनजातीय वैद्य अपने पूर्वजों से मिली ज्ञान की विरासत को आज भी जीवित रखे हुए हैं। ये वैद्य जंगलों से जड़ी-बूटियां इकट्ठा करते हैं, उन्हें खास विधियों से तैयार करते हैं और फिर मरीजों को दवाएं देते हैं। बाहरी दुनिया से संपर्क कम होने के कारण यह परंपरा आज भी शुद्ध और प्रभावी बनी हुई है।
सरकार और वैज्ञानिक भी कर रहे हैं शोध
पातालकोट की प्राकृतिक संपदा और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को संरक्षित करने के लिए अब सरकार और कई वैज्ञानिक संस्थाएं भी सक्रिय हो गई हैं। राज्य आयुष विभाग, CSIR और ट्राइबल वेलफेयर डिपार्टमेंट मिलकर यहां की जड़ी-बूटियों पर रिसर्च कर रहे हैं ताकि इनका वैज्ञानिक आधार तैयार किया जा सके और दुनिया भर में इनका उपयोग किया जा सके। पर्यटन विभाग भी पातालकोट को एक हर्बल टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में विकसित कर रहा है।