हिन्दू हिंसक नहीं सहिष्णु है…शेषशैया पर विश्राममुद्रा का विष्णु है

प्रखर वाणी

राहुल गांधी जी… बड़बोलेपन की बेसुध आंधी जी…हिन्दू हिंसक नहीं सहिष्णु है…शेषशैया पर विश्राममुद्रा का विष्णु है…तुम शिव को कितना जानते हो…अपने आप को किस धर्म का दिल से मानते हो…तुम्हारी हरकतों का तीजा पाया हमने देखा है…तुम्हारे हाथ में पीएम पद की नहीं खिंची रेखा है…जब संसद में गरिमामयी पदारूढ़ को आंख मारी थी…तुम्हारे ठिठोली अदा से गले मिलने की देखी खुमारी थी…वो तुम्हारी नहीं तुम्हारे संस्कारों की लाचारी थी…तुमको तब भी बेहुदा हरकतों की बीमारी थी…वास्तव में तुमको राजनीति तश्तरी में परोसकर मिली है…इसलिए तुम्हारी जनहित के मुद्दों पर पकड़ ढीली है…सस्ती लोकप्रियता का ढकोसला तुममें भरा पड़ा है…तुम्हारा अरमान कभी हिन्दू हित में नहीं खड़ा है…हिन्दू जब देश के सर्वांगीण विकास का पहरुआ बनता है क्या तब भी वो हिंसक होता है…संघ दक्ष व संघ आरम का अनुशासक बनता है क्या तब भी वो हिंसक होता है…अलकनन्दा में बहते लोगों की जान को अपनी जान की परवाह किये बगैर बचाता है क्या तब भी वो हिंसक होता है…कोरोनाकाल में पैदल पैदल कोसों दूर से आ रहे मुस्लिमों के आहार – विहार का माध्यम बनता है क्या तब भी वो हिंसक होता है…

बाढ़ की तबाही के बाद विस्थापन की चिंता में रातदिन मददगार बनता है क्या तब भी वो हिंसक होता है…और यदि हम समाजसेवा की राह पर बढ़कर जनसेवा का पथ अंगीकार करते हैं और दुष्टों पर वार करते हैं तो हमें गर्व है कि हम हिंसक हैं…अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु नारी शक्ति के अपमान और उनके साथ अभद्रता पर हम प्रतिकार करते हैं तो हमें गर्व है कि हम हिंसक है…लालच में धर्मांतरण करवाने वालों और गौहत्या करने वालों को रोकने हेतु उनका संहार करते हैं तो हमें गर्व है कि हम हिंसक हैं…लव जिहाद के नाम पर होटलों में बरगलाकर लाई गई कन्याओं की मुक्ति हेतु पप्पू , बबलू , गोलू , मुन्ना से दो – दो चार करते हैं तो हमें गर्व है कि हम हिंसक हैं…हिंदुओं को हिंसक बताने वालों जब इंदिराजी की मौत के बाद सिक्खों पर खूनी प्रहार किए गए थे तब हिंसा कहाँ गई थी…जब पश्चिम बंगाल में देशभक्तों को मौत के घाट उतारने का षड्यंत्र रचा जा रहा था तब हिंसा कहाँ गई थी…जब खरगोन में पलायन करते हिंदुओं को घसीटा जा रहा था तब हिंसा कहाँ गई थी…

जब चुनौती देकर कन्हैया का सर तन से जुदा किया जा रहा था तब हिंसा कहाँ गई थी…जब मुम्बई के राधा बाई की चाल में हिंदुओं को जिंदा जला दिया गया था तब हिंसा कहाँ गई थी…जब कश्मीर से पंडितों का कत्लेआम किया जा रहा था और उनकी बहू बेटियों से बलात्कार हो रहा था तब हिंसा कहाँ गई थी…जब बंटवारे के वक्त हिंदुओं की कटी कुचली लाशें ट्रेन में भरभरकर भेजी जा रही थी तब हिंसा कहाँ गई थी…जब गौहत्या बंदी के लिए दिल्ली में करपात्रे जी महाराज के नेतृत्व में प्रदर्शन कर रहे साधुओं पर इंदिराजी के इशारों पर गोलियां बरसाई गई थी तब हिंसा कहाँ गई थी…हिंसा तो कांग्रेस के भी खून में बसी है…सारी हिंसक गतिविधियों के मूल में राजनीति फंसी है…इसलिए आरोप दूसरों पर मढ़ने से पहले अपने गिरेबान में झांकना जरूरी है…तुमको नेता प्रतिपक्ष बनाना इंडी गठबंधन की मजबूरी है ।