पांडवों के लाक्षागृह पर हिंदुओं को मिला मालिकाना हक

स्वतंत्र समय, बागपत

यूपी में बागपत जिले के बरनावा में बने महाभारत काल के लाक्षागृह पर कोर्ट ने हिंदू पक्ष को मालिकाना हक दिया है। सोमवार को बागपत की सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम शिवम द्विवेदी ने इस मामले में फैसला सुना दिया। पिछले करीब 53 साल से मामले में हिंदू और मुस्लिम पक्ष की ओर से कोर्ट में मुकदमा चल रहा था। मेरठ की कोर्ट में साल 1970 में यह केस दायर किया गया था। 1997 में यह केस बागपत कोर्ट में शिफ्ट हुआ था, तभी से इसकी सुनवाई यहां हो रही थी। यहां मुस्लिम पक्ष मजार और कब्रिस्तान होने का दावा कर रहा था, जिसे कोर्ट ने नकार दिया। फैसला आने के बाद हिंदू पक्ष के लोगों में उत्साह है। जबकि कोर्ट के फैसले के बाद लाक्षागृह पर भारी पुलिस फोर्स तैनात किया गया है। चप्पे-चप्पे पर पुलिसकर्मी नजर रखे हैं।

1970 में मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में डाली थी याचिका

बागपत के लाक्षागृह पर 1970 में बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से मेरठ की कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने लाक्षागृह को बकरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान होने का दावा किया था। लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था। 27 साल बाद यानी 1997 में यह मुकदमा मेरठ से बागपत की कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था। यहां 26 साल तक हिंदू पक्ष ने अपने साक्ष्यों के साथ पक्ष रखा। वहीं, मुस्लिम पक्ष ने भी अपने दावे को सही साबित करने के लिए कोर्ट में सबूत रखे। मगर, कोर्ट ने हिंदू पक्ष को लक्षागृह पर मालिकाना हक दे दिया।

मुस्लिम पक्ष 100 बीघा पर कब्जा करना चाहता था

हिंदू पक्ष के वकील रणवीर सिंह ने बताया कि मुस्लिम पक्ष लाक्षागृह की 100 बीघा भूमि को कब्रिस्तान और मजार बताकर उस पर कब्जा करना चाहता है। उसी को लेकर उन्होंने कोर्ट के सामने सारे सबूत पेश कर दिए। लाक्षागृह का इतिहास महाभारत काल का है। इसके बारे में पूरा देश और दुनिया जानती है। लाक्षागृह टीले पर संस्कृत विद्यालय और महाभारत कालीन सुराग भी मौजूद हैं। एएसआई ने यहां खुदाई कर प्राचीन सभ्यता के अवशेष बरामद किए थे। जिनके आधार पर हिंदू पक्ष ने मजार सहित पूरे हिस्से को महाभारत कालीन बताकर कोर्ट से मालिकाना हक दिए जाने की मांग की। हिंदू पक्ष के सबूतों को कोर्ट ने भी माना। सुनवाई के दौरान 10 से ज्यादा हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाही हुई।

1952 में शुरू हुई थी खुदाई

लाक्षागृह की साल 1952 में एएसआई की देख-रेख में खुदाई शुरू हुई थी। इसमें मिले अवशेष दुर्लभ श्रेणी के थे। खुदाई में 4500 साल पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे। महाभारत काल को भी इसी पीरियड का माना जाता है। लाक्षागृह टीला 30 एकड़ में फैला हुआ है। यह 100 फीट ऊंचा है। इस टीले के नीचे एक गुफा भी मौजूद है। साल 2018 में एएसआई ने इस स्थान की बड़े स्तर पर खुदाई शुरू की थी। यहां मानव कंकाल और दूसरे इंसानी अवशेष मिले थे। यहां विशाल महल की दीवारें और बस्ती भी मिली हैं।

खुदाई में मिले थे महाभारत काल के साक्ष्य

मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यहां उनके बदरुद्दीन नाम के संत की मजार थी। इसे बाद में हटा दिया गया। यहां उनका कब्रिस्तान है। वहीं, इतिहासकारों का दावा है कि इस जगह पर जो अधिकतर खुदाई हुई है। उसमें जो साक्ष्य मिले हैं, वे सभी हजारों साल पुराने हैं। जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां पर मिले हुए ज्यादातर सबूत हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब है। इसी जमीन पर गुरुकुल एवं कृष्णदत्त आश्रम चलाने वाले आचार्य का कहना है कि कब्र और मुस्लिम विचार तो भारत में कुछ समय पहले आया। जबकि हजारों सालों से ये जगह पांडव काल की है।

महाभारत काल में बनाया गया था लाक्षागृह

महाभारत में लाक्षागृह की कहानी के बारे में बताया गया है। दावा किया जाता है कि दुर्योधन हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठना चाहता था। उसने पांडवों को जलाकर मारने के लिए साजिश रची। दुर्योधन ने अपने मंत्री से एक लाक्षागृह बनवाया था। यह लाक्षागृह लाख, मोम, घी, तेल से मिलाकर बना था। वार्णावत में इसका निर्माण कराया था। बागपत का बरनावा वही जगह मानी जाती है। दुर्योधन की साजिश के तहत ही धृतराष्ट्र से पांडवों को लाक्षागृह में रुकने का आदेश दिलवाया गया था। मगर, माता कुंती को लाक्षागृह की सूचना महामंत्री विदुर ने दे दी थी। इसके चलते जब वहां आग लगाई गई, तब पांडव बचकर निकल गए थे।