लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक (Waqf Bill) को लेकर जब बहस शुरू हुई, तो कोई नहीं जानता था कि यह मुद्दा 12 घंटे तक खिंचने वाला है। बुधवार दोपहर करीब 12 बजे से शुरू हुई इस बहस ने भारतीय राजनीति में एक इतिहास रचते हुए लोकसभा ने एक नया मोड़ लिया, जब सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक देखने को मिली। आठ घंटे की तय समयसीमा के बाद भी, बहस इतनी उग्र हो गई कि यह रात के 2 बजे जाकर पारित हुआ।
विधेयक पेश होने के बाद का हंगामा
वक्फ संशोधन विधेयक को पेश करते हुए अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने इसकी प्रमुख बातें बताईं, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया, बहस का रुख तीखा होता गया। विपक्ष ने इस बिल पर कई तरह के सवाल उठाए और इसके खिलाफ अपने आक्रोश का इज़हार किया। दिन ढलने के साथ बहस और भी तेज हो गई, और शाम होते-होते मामला और भी गर्म हो गया।
ओवैसी का जबरदस्त विरोध
इस दौरान एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने जब अपनी बात रखी, तो सदन में गहमागहमी का एक नया दौर शुरू हुआ। ओवैसी ने बिल को मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बताया और केंद्र सरकार को जमकर घेरा। उनका कहना था कि यह विधेयक गरीब मुसलमानों के हित में नहीं है, बल्कि यह मदरसों और मस्जिदों को निशाना बनाने की साजिश है। उन्होंने सरकार के दावों को खारिज करते हुए कहा, “सरकार यह कह रही है कि इस बिल से मुसलमानों का भला होगा, लेकिन यह सिर्फ एक छलावा है।”
ओवेसी ने विधेयक को फाड़ कर हवा में उड़ा दिया
ओवैसी ने कहा कि जब गांधी जी को कोई कानून मंजूर नहीं था, तो उन्होंने उसे फाड़ दिया था, और अब मैं भी इसी तरह इस विधेयक का विरोध करता हूं। इसके बाद, उन्होंने विधेयक के पन्नों को एक तरह से फाड़कर इसे विरोध स्वरूप हवा में उछाल दिया। इस कृत्य ने सदन में तगड़ा हंगामा मचाया और यह दृश्य भारतीय राजनीति में शायद ही पहले कभी देखा गया हो।
12 घंटे की बहस में मिला 273 वोटों का समर्थन
चर्चा के दौरान, सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहरी बहस चलती रही, जिसमें कई बार सदन की कार्यवाही अस्थिर हुई, लेकिन अंततः, लगभग 12 घंटे बाद, गुरुवार रात करीब 2 बजे यह वक्फ बिल पारित हो सका। इस दौरान पूरे सदन में अराजकता का माहौल था, लेकिन लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत विधेयक को मंजूरी मिल गई। विधेयक पर 1 घंटे 50 मिनट तक वोटिंग चली। इलेक्ट्रॉनिक पद्धति से मतदान के बाद कुल 464 वोट दर्ज किए गए। विधेयक के पक्ष में 273 और विरोध में 191 मत पड़े।
यह घटना भारतीय राजनीति के इतिहास में एक रोमाचंक पल के रूप में दर्ज हो गई, जब एक विधेयक पर लंबी और उग्र बहस के बाद, रात के अंधेरे में यह पारित हुआ।