Holashtak 2025 Date: होली का पर्व 40 दिन पूर्व वसंत पंचमी से ही उत्साह और उमंग के साथ प्रारंभ हो जाता है। इस दिन से मंदिरों और घरों में होली की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। ठाकुरजी (श्रीकृष्ण) कमर में पीतांबरी बांधकर, हाथों में रंग लिए भक्तों के साथ रंगोत्सव की छटा बिखेरने के लिए तैयार हो जाते हैं। ब्रजभूमि में होली का विशेष महत्व होता है, जहाँ फाग और अबीर-गुलाल की बौछार से संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो उठता है। वृंदावन और बरसाना में राधा-कृष्ण की प्रेमपूर्ण होली का अनोखा रूप देखने को मिलता है। इस प्रकार, वसंत पंचमी से होली तक रंगों और भक्तिभाव से भरी यह परंपरा निरंतर चलती रहती है।
होली का हुड़दंग होलाष्टक लगने, यानी डांडा गढ़ने के साथ ही आरंभ हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि पर प्रतिबंध लग जाता है। इस वर्ष होलाष्टक 7 मार्च से प्रारंभ होंगे, और इसी दिन से किसी भी मांगलिक कार्य को करने की मनाही होगी। यह आठ दिवसीय अवधि होलिका दहन तक चलती है, जिसके बाद रंगों का उल्लासपूर्ण त्योहार होली मनाया जाता है। इस समय को विशेष रूप से भक्ति, साधना और होली की तैयारियों के लिए उपयुक्त माना जाता है।
होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र हो जाते हैं और अनुकूल फल प्रदान नहीं करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस अवधि में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है, जिसके कारण कोई भी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, मुंडन, नामकरण, गृह प्रवेश आदि करना वर्जित माना गया है। यह समय अशुभ प्रभावों से भरा होता है, इसलिए शुभ कार्यों को टाल दिया जाता है। हालाँकि, होलाष्टक के दौरान दान और व्रत का विशेष महत्व होता है। इस समय वस्त्र, अन्न, धन आदि का दान करना शुभ माना जाता है, जिससे व्यक्ति को कष्टों से मुक्ति मिलती है और अनुकूल फल प्राप्त होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस अवधि में किए गए पुण्य कार्य जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाते हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक लाभ मिलता है।
होलाष्टक के दिन कई स्थानों पर होली का डांडा गाढ़ने की परंपरा होती है, जो भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका की स्मृति का प्रतीक माना जाता है। यह डांडा होलिका दहन की तैयारी का प्रथम चरण होता है। इसके चारों ओर लकड़ी, उपले (कंडे) और अन्य दहन सामग्री एकत्र की जाती है, जो होलिका दहन के दिन अग्नि को समर्पित की जाती है।
हर शहर के प्रमुख चौराहों, गली-मोहल्लों में इस परंपरा का पालन किया जाता है। डांडा गाढ़ने के साथ ही होली की तैयारियाँ जोरों पर शुरू हो जाती हैं। लोग रंग-गुलाल, मिठाइयाँ और होली गीतों के साथ इस उत्सव के स्वागत में जुट जाते हैं। होलाष्टक से लेकर होलिका दहन तक का यह समय उल्लास, भक्ति और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन जाता है।