Holi 2023: छत्तीसगढ़ के बस्तर में देवताओं के साथ खेली जाती है होली,जानिए कैसे

Holi 2023: भव्य रियासतकालीन परम्पराओं के साथ खेली जाती है 10 दिन की होली

Holi 2023: छत्तीसगढ़ के दक्षिणी सिरे बस्तर में होली का त्यौहार फागुन मड़ई के स्वरूप में बेहद खास तरीके से मनाया जाता है | इसलिए क्योंकि बस्तर में त्योहारों के सारे रीति रिवाजों में स्थानीय लोक देवी-देवताओं का ही महत्व होता है | बस्तर की प्रमुख आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के सम्मान में यहां सारे तीज त्यौहार मनाए जाते हैं | होली का त्यौहार यहां फागुन मड़ई के रूप में मनाया जाता है और यह फागुन शुक्ल की षष्ठी से लेकर चौदस तक मनाया जाता है |

Holi 2023: पूरे दस दिन की होली

वर्तमान को इतिहास से जोड़ता है यह 10 दिनों तक चलने वाला त्यौहार | फागुन मड़ई के आयोजन की प्रत्येक कड़ियां भव्य रियासतकालीन परम्पराओं के साथ मनाई जाति है |पारंपरिक और ऐतिहासिक महत्व वाले फागुन मड़ई की शुरुआत बसंत पंचमी से होती है | होली के 12 दिनों पहले से मुख्य आयोजन शुरू कर दिए जाते है | दंतेश्वरी माई की पालकी मंदिर से सत्य नारायण मंदिर तक जाती है और पूजा पाठ के बाद वापस मंदिर पहुंचती है |

छत्तीसगढ़ समेत ओडिशा से लोग अपने ईष्ट देव का ध्वज और छत्र लेकर यहाँ दूर दूर से पहुंचते हैं | करीब साढ़े सात सौ देवी-देवताओं का फागुन मड़ई में यहाँ संगम होता है | माई दंतेश्वरी और सभी देवी-देवता यहाँ मौजूद लोगों के साथ होली का त्यौहार मानते है |

बसंत पंचमी के दिन 700 साल पुराना अष्टधातु से निर्मित त्रिशूल स्तम्भ को दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार के सामने स्थापित किया जाता है | इसी दोपहर को आमा मऊड रस्म का निर्वाह भी किया जाता है और इसी दौरान माईजी का छत्र नगर दर्शन के लिए निकाला जाता है और बस स्टैंड के पास स्थित चौक में देवी को आम के बौर अर्पित किए जाते हैं |इसके बाद मड़ई के कार्यक्रमों का आरंभ मेंडका डोबरा मैदान में स्थित देवकोठी में होता है | जहां पूरे विधि-विधान के साथ देवी का छत्र लाया जाता है और जयकारे के शोर में छत्र को सलामी दी जाती है।

Holi 2023: इस रस्म से होता है होलिका दहन

दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया बताते हैं कि इस दिन दीप प्रज्ज्वलन करते हैं और परम्परानुसार कलश की भी स्थापना की जाती है | पटेल द्वारा पुजारी के सिर में भंडारीन फूल से फूलपागा (पगड़ी) बांधा जाता है | आमंत्रित देवी-देवताओं और उनके प्रतीकों, देवध्वज और छत्र के साथ माई जी की पालकी पूरी भव्यता के साथ परिभ्रमण के लिए निकाल दी जाती है और देवी की पालकी नारायण मंदिर में लाई जाती है |

जहां पूजा-अर्चना के बाद सभी वापस दंतेश्वरी माता मंदिर पहुंचते हैं | इसी रात ताड-फलंगा धोनी की रस्म की जाती है | इस रस्म के तहत ताड़ के पत्तों को दंतेश्वरी तालाब के जल से विधि-विधान से धोकर उन्हें मंदिर में रख दिया जाता है, इन पत्तों का प्रयोग होलिका दहन के लिए किया जाता है |

Holi 2023: होलिका दहन की खास परंपरा

दंतेवाड़ा में भी होली रंग और गुलाल से खेली तो जाती है, परंतु यहां दंतेवाड़ा में माई दंतेश्वरी के सम्मान में चलने वाला फागुन मेले के नवे दिन, होलिका दहन से भी जुडी एक अनोखी रस्म हैं | बस्तर की एक राजकुमारी की याद में, जलाई गई होली की राख और दंतेश्वरी मंदिर की मिट्टी से होली खेली ज़ाती हैं | यह अनोखी रस्म ,जौहर करने वाली राजकुमारी के सम्मान में की जाती है |

Holi 2023: सती शिला

एक राजकुमारी ने अपनी इज्जत बचाने के लिए आग में कुदकर जौहर किया था | राजकुमारी का नाम तो मालूम नहीं पर प्रचलित कथा के अनुसार सैकड़ों सालों पहले बस्तर की एक राजकुमारी को किसी हमलावर द्वारा अगवा करने की कोशिश की थी | राजकुमारी ने अपनी अस्मिता बचाने के लिये मंदिर परिसर में आग जलवाई और मां दंतेश्वरी का नाम लेते हुए आग में कूद गई | उस राजकुमारी की कुर्बानी को यादगार बनाने के लिए उस समय के राजा ने एक सती स्तंभ बनवाया जिसमे स्त्री-पुरुष की बड़ी प्रतिमाये बनी हैं, इस स्तंभ को सती शिला कहते हैं |

हजार साल पुरानी इस सती शिला के पास राजकुमारी की याद में होलिका दहन किया जाता हैं | होलिका दहन के लिए ताड़, बेर, साल, पलाश, बांस, कनियारी और चंदन के पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है | सजाई गई लकड़ियों के बीच मंदिर का पुजारी केले का पौधे को रोपकर गुप्त पूजा करता है | यह केले का पौधा राजकुमारी का प्रतीक माना जाता है |

होलिका दहन से आठ दिन पहले ताड़ पत्तों को दंतेश्वरी तालाब (मेनका डोबरा ) में धोकर भैरव मंदिर में रखा जाता है | इसी रस्म को ताड़ फलंगा धोनी कहा जाता है | ग्राम चितालंका के पांच पांडव परिवार के सदस्य ही होलिका दहन करते हैं | दंतेश्वरी मन्दिर में सिंहद्वार के पास इन पांडव परिवार के कुल देवी के नाम पर पांच पांडव मन्दिर भी है |

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