Holi पर्वः रंग प्रदेश के तुकबंदी रंगीन छर्रे

डॉ. आलोक सक्सेना
वरिष्ठ पत्रकार एवं व्यंग्यकार

बहनों और भाइयों, मैं हूं आपका प्रयोगधर्मी दोस्त विसंगतिमार व्यंग्यकार एवं हास्य-कवि कायस्थ रत्न भारत भूषण डॉ. आलोक सक्सेना। लेकर आया हूं फाइटर योद्धा संग रंगप्रदेश के तुकबंदी रंगीन छर्रे। आइए, आइए…! ये बंदूक के नहीं, होली (Holi) के छर्रे हैं। इन्हें जमीं पर बिखरने से पहले अपने-अपने दिलों में सहेजिए, संभालिए। गुदगुदाइए, मीठी-मीठी मुस्कुराहट लिए चुटकियां बजाइए। लय और राग रंग और मस्ती का होली पर्व मनाइए। होली का सुहाग अवसर है। सुहाग समझो या सुनहरा। होली है, लुंगी संग लंगोटा है। होली है, बिलबिलाने और पिलपिलाने का त्यौहार है। बिल्ली बनो या बिलौटा, होली का रंग है सुनहरा। फागुनी रंग-राग में हास्य की फुहार का घोटा है, लोटा है, झोटा है, हर नए पहनावे में आजकल सब छोटा-ही-छोटा है। फटी जींस में मच्छरदानी जैसा जाली बना झमेला है। चादर छोटी मगर मन तंबु बना बैंक ईएमआई का मासिक किस्त रेला है। लुटिया डूबे मगर, जीवन में झूठे दिखावे का वास्तविक चोला है। बच्चा है, बच्ची है, चोला है, चोली है, हर तरफ हो रहा घोटा-घोट घोटाला है। गारंटी है, वारंटी है। रंग हैं तो रंगना मुमकिन है। अंगड़ाई है, जवानी है तो फिसलना आसान और मुमकिन है। नेता हैं, अभिनेता हैं, सबके साथ सूरजमुखी सी पीली बाला है। बाला है, बाली है चारौंतरफ हर व्यक्ति काला है। काला है, काली है, रात मक्खनी, दिन पहाड़ चढ़ जाने वाला है। होली है, होली की टोली है। हर मन, आज अब हर तन रंग लाल-पीला हो जाने वाला है।

Holi रंग का त्यौहार है

लंबू है, लंबा है। फैली है, फैला है। खटमल बैठा है, खटिया खड़ी है। शीशम के दीवान पर हर अंग-अंग चक्कर बन घूमा है। चौराहा है, चौड़ा है, सडक़ चौड़ी है चारों ओर घाट-घाट का पानी फैला है। कहीं बुढ्ढ़ा खांस रहा, कही कोई बुढिय़ा कराह रही। कहीं अब नव बसंती अपना घाघरा उछाल सैक्सी गानों पर नाच रही। सन, सन, सन पवन चले, मन का दीप न बुझ जाए। ‘संदीप’ के संग ‘रजनी’ का भी मन अटका है, लटका है और फटका है। वन, वन, वन…, बंटी दे दे दो, टी ठंड़ी न हो जाए। ‘बंटी’ के संग सुदूर भाग जाने का ‘रागनी’ का रेला है, मेला है और झमेला है। प्रेम पगी छेड़छाड़ है, मिलन की रसगंध लिए, संगीत की फुहार है, उल्लास है थिरकन है, अलौकिक जादुई उत्सव है, होली (Holi) रंग त्यौहार है।

गुस्से की अभिव्यक्ति में भी प्यार है, दुलार है, तरह-तरह के व्यंजन हैं, हास्य-व्यंग्य लेखकों की भरमार है। छक्के छूटे, छर्रे छूटे होली परंपरागत मिलन का त्यौहार है। आम के पेड़ों पर बौर आए, लाल पलाश दहके, फागुनी बयार बहे, कोयल कूके तो जानो होली का त्यौहार है। होली है, बौराना जरूरी है, सताना जरूरी है, किसी के जले पर नमक नहीं, उसे मरहम लगाना जरूरी है। अखाड़े के कोने में, पहलवान की जोर आजमाइश है, वहां भी लंगोट पहने सब दंड पेल होली खेल रहे, ऐसा होली का रंग पोतने और पुतवाने का त्यौहार है। दफ्तर में अफसर है, अफसरनियां हैं, चमचे हैं, चमचियां हैं, रंगपुते हैं सब/ ‘विश यू हैप्पी होली…विश यू हैप्पी होली…रीयली ग्रेट होली’ का सबके मुंह पर भारतीय त्यौहार का एक अंग्रेजी नारा है।

होली है टांग तोडऩी नहीं, अड़ानी है। लखनऊआ बन राग दरबारी गाना है। चौक पर जज्बाती सांड से बचते हुए जाना है। अपना रंग अपनी जेब में संभालकर अगले वर्ष के लिए रख, सामने वाले के रंग से ही उसको रंग लगाना है। चूना लगे उसको, अपना रंग चौखा हुई जाए फिर खइके पान बनारस वाला या फिर, हमको अइसा-बइसा न समझो हम बड़े काम की चीज गीत गाना है। होली है, आओ कुछ मीठा हो जाए, घूरो नहीं, बस प्यार दो, मथुरा के पेड़े संग होली की गुझिया और दही-बड़े भल्ले दो। विसंगतियां और विद्रूपताएं मिटाने का होली का अनोखा त्यौहार है। रंगा-पुता मुखड़ा देखकर शर्माएं फिर रगड़-रगड़ काया को नहलाएं। होली का मौका देख अपने मिलन मचलते अरमान भर एक कवि ने एक हसीना के सामने शेरमय छर्रा उछाल बोले, ‘हमसे तो अच्छी हैं ये बाथरूम की टाइल्स, जो हुस्न को बेनकाब देखती हैं।’ होलीयाना हो हसीना ने भी बम्बमार जवाब दिया, ‘बाथरूम के बाहर मेरी हाई हील सेंडिल रखी है, अभी हील नहीं टूटी है उससे ही अपने अरमानों ही सील तोड़ो। मेरी उस हाई हील को अपने शरीर में चाहें जहां ठोको।’ उधर एक दूसरे कवि ने तान छेड़ी, ‘हुई महंगी बहुत शराब कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो…।’ होलियाना हो दूसरे कवि ने जवाब दिया, ‘कपड़ा हुआ है महंगा कि कच्छे-बनियान में घूमा करो…।’ शेर हो, शायरी हो, अब चाहे भीगे तेरी चुनरिया…चाहे भीगे रे चोला-चोली…खेलेंगे हम होली… आज ना छोड़ेंगे, खेलेंगे हमसब मिलजुल होली।