Holi Festival:- क्यों और कैसे बनाई जाती है, जानिए होली के पीछे की पौराणिक कथा|

Holi Festival:- होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, होली के रंग जिंदगी को खुशियों से भर देते है.और भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में तो ये रंगोत्सव 40 दिनों तक मनाया जाता है तो जानते है होली का इतिहास |

रंग रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलाल
वृंदावन होली हुआ सखियाँ रचें धमाल

होली राधा श्याम की और न होली कोय
जो मन रांचे श्याम रंग, रंग चढ़े ना कोय

Holi Festival:- होली का नाम सुनते ही सबके मन में ख़ुशी और उलास की भावना जाग उठ ती है. बच्चे हो या बड़े,बूढ़े सबको होली का त्यौहार बहुत पसंद आता है, होली का या त्यौहार लोगो की जिंदगी को खुशियों से भर देता है. कहा जाता है की Holi के दिन दुश्मन भी दोस्त बन जाते है. Holi का यह त्यौहार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. भारत के अन्य त्यौहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है हर साल होली के त्यौहार से पहले होलिका दहन किया जाता है । इस साल Holi का त्योहार 8 मार्च को मनाया जाएगा। यह त्योहार देशभर में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। हर त्यौहार की अपनी एक कहानी होती है, जो धार्मिक मान्यताओ पर आधारित होती है. होली के पीछे भी एक कहानी है.

रंगों के साथ होली

होली की पौराणिक कथा-

माना जाता है कि प्राचीन भारत में राक्षस प्रवृत्ति वाला हिरण्यकश्यप नाम का राजा हुआ करता था. हिरण्यकश्यप का छोटा भाई था जिसका वध वाराह रूपी भगवान विष्णु ने किया था।वह भगवान विष्णु से अपनी छोटे भाई की मृत्यु का बदला लेना चाहता था, हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या कर ब्रम्हा जी से वरदान माँगा था की ना वह किसी मनुष्य द्वारा मारा जा सकेगा ना पशु द्वारा, ना दिन में मारा जा सकेगा ना रात में, ना घर के अंदर ना बाहर, ना किसी अस्त्र के प्रहार से और ना किसी शस्त्र के प्रहार से उसक प्राणों को कोई डर रहेगा। इस वरदान की वजह से हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा था.

हिरण्यकश्यप ने देवराज इंद्र का राज-पाठ भी छीन लिया था. वह लोगो को भगवान् की पूजा करने की जगह अपनी पूजा करने को कहता था. हिरण्यकश्यप ने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा करना वर्जित कर रखा था. हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे प्रह्लाद , अनुहल्लाद , संहलाद और हल्लद. प्रह्लाद उनका सबसे बड़ा पुत्र था.और प्रह्लाद  भगवान विष्णु का परम भक्त भी था. हिरण्यकश्यप के बहुत रोकने और प्रताड़ित करने के बावजूद भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति,आराधना करना नही छोड़ा, इस बात से गुस्साए हिरण्यकश्यप ने बहुत बार भक्त प्रह्लाद को चोट पहुचाने और मरने की कोशिश भी की परंतु भगवान ने हर बार अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा कर उसे बचाया है. अत्यधिक क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर जलती आग्नि में बेठ जाये क्योंकि हिरण्यकश्यप की बहन को वरदान प्राप्त था की अग्नि उसका कुछ भी बिगाड़ नही सकती है. जब होलिका ने प्रह्लाद के साथ प्रज्वलित अग्नि में प्रवेश किया तो प्रह्लाद का बाल भी बांका नही हुआ क्योंकि हर बार की तरह भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी परंतु उस अग्नि में होलिका जल कर राख हो गई.

प्रह्लाद को मरने के अंतिम प्रयास में हिरण्यकश्यप ने लोहे के एक खंभे को गर्म कर लाल करवा दिया था, और भक्त प्रह्लाद को उस खम्बे को गले लगाने को कहा और एक बार फिर भगवान विष्णु अपने भक्त को बचाने आये. इस बार भगवान विष्णु उसी खम्बे से नरसिंह का अवतार लेकर प्रकट हुआ, जिस खम्बे से भक्त प्रह्लाद को गले लगने को कहा गया था. भगवान विष्णु ने नरसिंह के अवतार में हिरण्यकश्यप को महल के प्रवेशद्वार की चौखट पर, जो ना घर का बाहर थी ना भीतर थी , गोधूलि बेला में, जब ना दिन था ना रात थी , आधा मनुष्य, आधा पशु जो ना तो नर था ना पशु ऐसे नरसिंह के रूप में अपने लंबे तेज़ नाखूनों से जो ना अस्त्र थे न शस्त्र थे और हिरण्यकश्यप का पेट चीर कर उसे मार डाला। इस तरह घमंडी राजा हिरण्यकश्यप का अंत हो गया. हर साल होलिका दहन के अगले दिन Holi का त्योहार मनाया जाता है। इसी के चलते भारत के कई प्रांतों में Holi से 1 दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन कहते है. यह दिन अच्छाई पर बुराई की जीत की ख़ुशी की याद में मनाया जाता है. होलिका देहन के अगले दिन रंगों के साथ होली खेली जाती है. होली के त्यौहार को मनाने का उद्देश्य एक दूसरे के साथ अच्छे संबंध बनाना, प्रेम और भाईचारे के साथ मिल जुल कर रहना है।

भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार

Holi कैसे मनाई जाती है?

Holi के दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर खुशियां बांटते हैं। इस दिन लोग आपसी भेदभाव को भूलकर एक दूसरे को गुलाल लगाकर होली धूलिया खेलते हैं।सब अपने घर को सजाते हैं, पुताई करवाते हैं। चारों और लोगों के चेहरे पर मुस्कान होती है। लोग पहले से ही एक दूसरे को होली की बधाई देना शुरू कर देते हैं।होली की शुरुआत वसंत पंचमी के बाद होती है, वसंत पंचमी के बाद लोग होलिका दहन के लिए लकड़ियां इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। जिससे Holi को अच्छे से जला सके। होली के 1 दिन पहले Holi को जलाने के लिए लोग एक जगह इकट्ठे होते हैं और नाच गाकर Holi में आग लगा देते हैं। होली जलती रहती है और लोग चारों तरफ नाचते रहते हैं। होली की आग में लोग गहुँ और जौ की बालियों को शेखते हैं। कुछ लोग गन्ना भी लाते हैं और उसे आगज भुन कर खाते हैं। इसी को होलिका दहन कहा जाता है। फिर अगले दिन लोग एक दुसरे को रंग और गुलाल लगाकर Holi की बधाईया देते है. इस दिन घरो में गुजिया और पुरम-पुली बड़े शोक से बनाई और खाई जाती है. और इसी तरह हर्ष और उल्लास के साथ होली का त्यौहार बनाया जाता है.

होलिका दहन

ब्रज की Holi –

Holi हिंदुओं का प्रमुख त्योहार है। पूरे भारत में ये पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन कान्हा की नगरी मथुरा में इसका अलग ही उत्साह देखने को मिलता है।

भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में ये रंगोत्सव 40 दिनों तक मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत वसंत ऋतु के प्रवेश करते ही हो जाती है। वसंत पंचमी पर मथुरा के मंदिरों में और होलिका दहन स्थलों पर होली का ढांडा गाड़े जाने के बाद से ही इस रंगोत्सव की शुरुआत हो जाती है।

परंपरा के अनुसार वसंत पंचमी के दिन बांके बिहारी मंदिर में सुबह की आरती के बाद सबसे पहले मंदिर के पुजारी भगवान बांके बिहारी को गुलाल का टीका लगाकर होली के इस पर्व का शुभारम्भ करते हैं। इस दिन मंदिर में श्रद्धालुओं पर भी जमकर गुलाल उड़ाया जाता है। इसके बाद रंग पंचमी वाले दिन इस रंगोत्सव का समापन होता है।

वसंत का आगमन होते ही ब्रज में पूरे मंदिर को पीले फूलों से सजाया जाता है। ब्रज में 40 दिन तक चलने वाली Holi का आनंद लेने के लिए श्रद्धालु बड़ी संख्या में कान्हा की नगरी पहुंचते हैं। फुलेरा दूज से मथुरा में होली की शुरुआत होती है और इस दिन ब्रज में श्रीकृष्ण के साथ फूलों के संग Holi खेली जाती है। इसके अलावा यहां लड्डू मार और लट्ठमार Holi का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। लट्ठमार होली के दिन लट्ठ की मार खाकर लोग भी खुद को धन्य मानते हैं।

ब्रज में लट्ठमार होली