प्रवीण शर्मा, भोपाल
प्रदेश में किसी बड़ी घटना, दुर्घटना या घोटाले को लेकर सदन में विपक्षी आरोपों से घिरने पर सरकार की ओर से सबसे बड़ा कदम होता है जांच आयोग ( Commission of Inquiry ) का गठन। मगर विधानसभा के आश्वासन पर सीनियर जजों की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन भी केवल सरकार को कठघरे से बचाने का जरिया ही साबित हो रहे हैं। जांच रिपोर्ट पेश होने के बाद सरकार के विभाग ही मामलों को ऐसे भूले कि सदन ही कार्रवाई के इंतजार में बैठा है। बीते 20 सालों में बने 15 में से 6 जांच आयोगों की रिपोर्ट पर विभाग अब तक कोई कार्रवाई नहीं कर सके हैं तो दो साल पुराना एक जांच आयोग की रिपोर्ट ही अब तक सदन को नहीं मिल सकी है।
Commission of Inquiry की जरुरत पर सवाल
जांच आयोगों ( Commission of Inquiry ) की भूमिका और जरूरत पर सवाल खड़े होने की वजह है, इनकी रिपोर्ट को सरकारी विभागों द्वारा कोई महत्व न दिया जाना। सरकार विवाद की स्थिति बनने पर सदन के अंदर या बाहर खड़े होकर जांच आयोग की घोषणा तो कर देती है, लेकिन इनके गठन के बाद न तो पीडि़तों को न्याय मिलता दिख रहा है और न दोषियों को सजा। इसके विपरीत सारे विभाग जांच आयोगों की रिपोर्ट से ही खिलवाड़ करने से नहीं चूक रहे। इनमें ऐसे मामलों में बने जांच आयोग की रिपोर्ट भी शामिल हैं, जिनमें उस समय पूरी सरकार सडक़ से लेकर सदन तक घिरी हुई थी। जांच आयोगों की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने में सबसे सुस्त है गृह विभाग। पंद्रह में से 10 जांच आयोग गृह विभाग के मामलों से ही जुड़े हैं, लेकिन इनमें से पांच में अब तक जांच रिपोर्ट पर विभाग ने क्या कार्रवाई की गई, सदन ही नहीं जानता। अब तक प्रतिवेदन ही पटल पर नहीं पहुंच सका है। ऐसा ही एक मामला सामाजिक न्याय विभाग से जुड़ा है तो गैस राहत विभाग भी 2010 से गैस कांड से जुड़े आयोग की रिपोर्ट दबाकर बैठा है। वहीं अधिकांश मामलों में जांच रिपोर्ट ही पटल तक पहुंचने में 8 से 10 साल लग गए, जबकि महज तीन माह में रिपोर्ट दी जाना थी।
सामाजिक पेंशन घोटाला
इंदौर नगर निगम में सामाजिक सुरक्षा पेंशन एवं राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन में घोटाले की जांच के लिए 2008 में आयोग का गठन किया गया। जस्टिस एनके जैन आयोग की रिपोर्ट चार साल बाद सितंबर 2012 में पटल पर रख दी गई, लेकिन फरवरी 2024 में कांग्रेस के प्रताप ग्रेवाल के प्रश्र के जवाब में सरकार ने ही बताया है कि सामाजिक न्याय विभाग में कार्यवाही चालू है। इस घोटाले के आरोपों से इंदौर के तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय को 2022 में विशेष अदालत से राहत भी मिल चुकी है। सरकार की ओर से अभियोजन की मंजूरी 17 साल बाद भी न मिलने से विशेष अदालत ने केस ही खत्म कर दिया।
पटल को चाहिए इनका प्रतिवेदन…
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भोपाल गैस त्रासदी : न्यायाधीश एसएल कोचर को अगस्त 2010 को जांच का जिम्मा सौंपा गया। आयोग ने फरवरी 2015 में रिपोर्ट पटल पर रख दी। गैस राहत विभाग कार्यवाही नौ साल बाद भी नहीं कर सका। पटल को प्रतिवेदन का इंतजार।
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भिंड में गोली चालन : जस्टिस सीपी कुलश्रेष्ठ को जुलाई 2012 में जांच की जिम्मेदारी सौंपी। आयोग ने 5 साल बाद दिसंबर 2017 में रिपोर्ट रख दी। गृह विभाग में कार्यवाही अभी भी चालू है। प्रतिवेदन का इंतजार।
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मंदसौर गोली कांड : मंदसौर में चुनाव के ठीक पहले किसानों के साथ हुई घटना और फायरिंग की जांच के लिए जून 2017 में रिटायर्ड जस्टिस जेके जैन को जांच सौंपी। अगले ही साल जून 2018 में रिपोर्ट सदन में रख दी गई, लेकिन गृह की कार्रवाई चालू है। प्रतिवेदन ही सदन में नहीं पहुंचा।
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पेटलावद विस्फोट घटना : प्रदेश भर को दहला देने वाली इस घटना की जांच के लिए सितंबर 2015 में हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस आर्येन्द्र कुमार सक्सेना को जांच सौंपी। जस्टिस सक्सेना ने तीन माह में ही जांच पूरी कर रिपोर्ट सदन में रख दी, लेकिन गृह विभाग के प्रतिवेदन का अभी भी इंतजार है।
लटेरी हिंसा की नहीं आई रिपोर्ट
वहीं लटेरी में दो साल पहले एसटी वर्ग के बीच हुई मुठभेड़ मामले पर अगस्त 2022 में जांच आयोग बनाया गया है। जस्टिस वीपीएस चौहान को जांच सौंपी है, लेकिन फिलहाल हर तीन माह में जांच का समय ही बढ़ाया जा रहा है। रिपोर्ट ही अब तक सदन को नहीं मिल सकी है।