BJP ने एक साल में कैसे बदली अपनी बाजी, 5 प्वाइंट्स में समझें

BJP: पिछले साल जब बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने तीसरी बार सत्ता संभाली, तो कम सीटों के कारण कई लोगों को लगा कि यह सरकार ज्यादा दिन नहीं चलेगी। कुछ ने तो 2025 में मध्यावधि चुनाव की भविष्यवाणी भी कर दी थी। लेकिन, एक साल बाद, 11 जून 2025 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने न केवल आलोचकों का मुंह बंद किया, बल्कि तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव जीतकर, महत्वपूर्ण विधेयक पारित करके और गठबंधन सहयोगियों को संतुष्ट रखकर अपनी स्थिति मजबूत कर ली। आइए, पांच बिंदुओं में समझते हैं कि बीजेपी ने यह कमाल कैसे किया।

1. विधानसभा चुनावों में शानदार वापसी

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कम सीटें मिलने के बाद कई लोगों ने पार्टी की ताकत पर सवाल उठाए। लेकिन, बीजेपी ने हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल कर इस धारणा को तोड़ दिया। हरियाणा में, जहां लोकसभा में केवल 5 सीटें मिली थीं, बीजेपी ने अक्टूबर 2024 में 90 में से 48 सीटें जीतकर तीसरी बार सरकार बनाई। महाराष्ट्र में नवंबर 2024 में महायुति गठबंधन ने 288 में से 235 सीटें जीतीं, जिसमें बीजेपी ने अकेले 132 सीटें हासिल कीं। सबसे खास रही दिल्ली, जहां फरवरी 2025 में बीजेपी ने आम आदमी पार्टी का 10 साल का शासन खत्म कर 70 में से 48 सीटें जीतीं। इन जीतों ने मोदी के नेतृत्व को और मजबूत किया।

2. महत्वपूर्ण विधेयकों के साथ दिखाई ताकत

मोदी सरकार ने पिछले एक साल में कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित करके अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाई। अप्रैल 2025 में वक्फ (संशोधन) विधेयक को लंबी बहस और हितधारकों के साथ चर्चा के बाद पारित किया गया। इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाना था। विपक्ष और कुछ मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया, लेकिन बीजेपी ने लोकसभा में 288 और राज्यसभा में 128 वोट हासिल कर इसे पास करा लिया। इसके अलावा, रेलवे, बैंकिंग और एविएशन से जुड़े सुधार विधेयकों को भी आगे बढ़ाया गया। एक साथ चुनाव कराने के विधेयक ने भी सरकार की दीर्घकालिक सोच को दर्शाया।

3. गठबंधन सहयोगियों को रखा एकजुट

कई लोगों ने अनुमान लगाया था कि कम सीटों के कारण एनडीए गठबंधन में दरार पड़ सकती है। लेकिन, बीजेपी ने टीडीपी और जेडी(यू) जैसे सहयोगियों को चतुराई से संभाला। वक्फ विधेयक को लेकर सहयोगियों की चिंताओं को बातचीत और संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की जांच के जरिए दूर किया गया। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं ने बार-बार एनडीए के साथ बने रहने की पुष्टि की। महाराष्ट्र में शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे के साथ तनाव को भी बीजेपी ने दिल्ली में उच्च स्तरीय बैठकों और महत्वपूर्ण मंत्रालय देकर सुलझा लिया।

4. विपक्ष की एकजुटता में दिखी कमी

2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन (इंडिया ब्लॉक) को 235 सीटें मिलने के बावजूद, वह BJP को चुनौती देने में नाकाम रहा। कांग्रेस ने अडानी विवाद पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की, लेकिन तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे सहयोगियों ने संसद में बातचीत की वकालत की। राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी विपक्ष का रुख एकजुट नहीं रहा। ऑपरेशन सिंदूर को विदेश में समर्थन देने के बावजूद, कांग्रेस ने घरेलू स्तर पर इसकी आलोचना की, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे।

5. ऑपरेशन सिंदूर ने बढ़ाया सरकार का कद

पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में शुरू किया गया ऑपरेशन सिंदूर बीजेपी के लिए गेम-चेंजर साबित हुआ। भारतीय सेना ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकी नेटवर्क को सटीक निशाना बनाया। इस ऑपरेशन को न केवल जनता का समर्थन मिला, बल्कि विपक्षी नेता जैसे शशि थरूर और असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसका समर्थन किया। ऑपरेशन सिंदूर ने मोदी को एक मजबूत नेता के रूप में पेश किया और जनता का भरोसा बढ़ाया। इसने विपक्ष की आलोचनाओं को भी कुछ समय के लिए शांत कर दिया।