केला सबसे ज्यादा खाए जाने वाले और सेहतमंद फलों में से एक है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाजार में मिलने वाला चमकदार पीला केला आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है? आजकल ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में व्यापारी कैल्शियम कार्बाइड जैसे प्रतिबंधित केमिकल का इस्तेमाल कर केलों को समय से पहले कृत्रिम रूप से पका रहे हैं।
यह केमिकल सेहत के लिए बेहद हानिकारक है और कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। इसलिए, यह जानना बहुत जरूरी है कि आप जो केला खरीद रहे हैं, वह प्राकृतिक रूप से पका है या केमिकल से।
कैल्शियम कार्बाइड क्यों है एक ‘धीमा जहर’?
कैल्शियम कार्बाइड एक औद्योगिक रसायन है जिसका उपयोग मुख्य रूप से वेल्डिंग के लिए एसिटिलीन गैस बनाने में किया जाता है। जब यह नमी के संपर्क में आता है, तो एसिटिलीन गैस निकलती है, जो फलों को पकाने की प्रक्रिया को तेज कर देती है। भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने खाद्य पदार्थों के लिए इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाया हुआ है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसमें आर्सेनिक और फॉस्फोरस हाइड्राइड जैसे जहरीले तत्व पाए जाते हैं। इन रसायनों से पके फल खाने से सिरदर्द, चक्कर आना, त्वचा पर चकत्ते, पेट दर्द, उल्टी और यहां तक कि कैंसर और लिवर डैमेज जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
कार्बाइड वाले केले की ऐसे करें पहचान
थोड़ी सी सावधानी बरतकर आप आसानी से केमिकल और प्राकृतिक रूप से पके केले के बीच अंतर कर सकते हैं। अगली बार जब आप केले खरीदें तो इन बातों पर जरूर ध्यान दें:
1. केले का रंग देखें
प्राकृतिक रूप से पका केला गहरे पीले रंग का होता है और उस पर काले या भूरे रंग के धब्बे (स्पॉट्स) होते हैं। इसके विपरीत, कार्बाइड से पके केले का रंग एक समान नींबू जैसा पीला (lemon yellow) होता है और उस पर आमतौर पर कोई धब्बे नहीं होते।
2. डंठल पर ध्यान दें
यह पहचान का सबसे आसान तरीका है। अगर केले का डंठल हरा है लेकिन बाकी पूरा फल पीला हो चुका है, तो यह इस बात का संकेत है कि इसे केमिकल से पकाया गया है। प्राकृतिक रूप से पकने पर केले का डंठल भी फल के साथ-साथ काला या गहरा भूरा हो जाता है।
3. बनावट और स्वाद में अंतर
केमिकल से पका केला भले ही दिखने में पका हुआ लगे, लेकिन छूने पर वह अक्सर सख्त महसूस होता है। इसका स्वाद भी प्राकृतिक केले जैसा मीठा नहीं होता और कभी-कभी इसमें हल्का कसैलापन या अजीब सा स्वाद महसूस हो सकता है।
4. शेल्फ लाइफ होती है कम
कृत्रिम रूप से पकाए गए केले बहुत जल्दी खराब होने लगते हैं। खरीदने के एक या दो दिन के अंदर ही वे काले पड़कर गलना शुरू हो जाते हैं, जबकि प्राकृतिक रूप से पका केला धीरे-धीरे पकता है और उसकी शेल्फ लाइफ ज्यादा होती है।
5. एक समान पीलापन
कार्बाइड से पके केले हर तरफ से एक जैसे पीले दिखते हैं। जबकि प्राकृतिक रूप से पकने वाला केला कहीं कम तो कहीं ज्यादा पीला होता है, यानी उसके रंग में असमानता होती है। यह असमानता इस बात का संकेत है कि फल अपनी गति से पका है।
क्या हैं बचाव के उपाय?
विशेषज्ञों की सलाह है कि हमेशा विश्वसनीय और जाने-पहचाने विक्रेताओं से ही फल खरीदें। किसी भी फल को खाने से पहले उसे अच्छी तरह से बहते पानी में धोना बहुत जरूरी है। धोने से फलों की सतह पर लगे केमिकल काफी हद तक हट जाते हैं। अगर संभव हो तो ऑर्गेनिक केले खरीदें, क्योंकि उनमें इस तरह के रसायनों का खतरा नहीं होता है। थोड़ी सी जागरूकता आपको और आपके परिवार को गंभीर स्वास्थ्य जोखिमों से बचा सकती है।