“मैं रुकी नहीं, क्योंकि मैं टूटी नहीं”- नाथुला फतह करने वाली पूजा गर्ग का नाम लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज

अहिल्या बाई होलकर की 300 वीं जन्म त्रिशताब्दी के अवसर पर सघर्ष करके अपना परचम लहराने वाली महिलाओं की सघर्ष के साथ सफलता तक पहुंचने की कहानी को सबके सामने लाया जा रहा है। यहीं दिल्ली की एक बेटी ने इतिहास की रेखाओं पर अपने साहस और संकल्प की अमिट छाप छोड़ दी है। नाम है पूजा गर्ग जो  एक ऐसी शख्सियत है जो न सिर्फ ज़िंदगी से लड़ी, बल्कि ज़िंदगी को नए मायनों में परिभाषित भी कर गई।

कैंसर और स्पाइनल इंजरी को दी टक्कर
इस साहसी महिला ने स्पाइनल इंजरी ने ज़मीन से बांध दिया और फिर कैंसर ने उसके शरीर को चुनौती दी। लेकिन पूजा गर्ग ने इन दोनों से हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने दर्द से दोस्ती की, तकलीफ़ को ताक़त बनाया, और फिर वो कर दिखाया जो शायद ही किसी ने सोचा होगा।  नाथुला पास की बर्फीली, दुर्गम ऊँचाइयों पर, जहां सांसें भी कांपती हैं, वहां वर्ल्ड कैंसर डे पर तिरंगा लहराकर पूरी दुनिया को चौंका दिया।

विश्व की पहली पैरा महिला बनीं
उनकी यह यात्रा महज एक सफर नहीं थी बल्कि  यह एक आंदोलन था। इंदौर से लेकर नाथुला (सिक्किम) तक की यह हौसले की दौड़, 4-व्हीलर बाइक पर की गई। हज़ारों फीट की ऊँचाई, ऑक्सीजन की कमी, सर्द हवाएं और पहाड़ी मोड़। हर कदम पर एक नई चुनौती थी। लेकिन पूजा का हौसला हर चुनौती से ऊँचा था।

मिला “मानव संकल्प का प्रतीक” सम्मान
इस ऐतिहासिक यात्रा को विश्व स्तर पर मान्यता मिली है। लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने पूजा गर्ग को “दुनिया की पहली पैरा महिला” घोषित किया जिन्होंने ऐसी असाधारण परिस्थितियों में यह सफर तय किया है। जिसके चलते रिकॉर्ड कमेटी ने उनके इस मिशन को “मानव शक्ति और संकल्प का प्रतीक” कहा है।

यूके से आया विशेष प्रतिनिधिमंडल
दिल्ली में आयोजित एक भव्य समारोह में पूजा को विशेष सम्मान प्रदान किया गया है। यहीं खुद मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने उन्हें मंच पर बुलाकर “शक्ति की प्रतीक” कहते हुए प्रमाण पत्र सौंपा। इस मौके पर लंदन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स के यूके प्रतिनिधि और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के अधिकारी भी उपस्थित थे। यहां पूजा गर्ग अब इंटरनेशनल पैरा एथलीट हैं, और  कैंसर अवेयरनेस की चैंपियन भी बन गई है जो लाखों लोगो को संघर्ष से सफलता की कहानी कहती है। देवी अहिल्या की 300वीं जयंती पर, पूजा गर्ग की यह कहानी उन सभी बेटियों के लिए एक संदेश है जो मुश्किलों से डरती नहीं, उन्हें चुनौती देती हैं। यह एक महिला की नहीं, पूरे मानव साहस की कहानी है।