सतपुड़ा की रानी पचमढ़ी एक ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनने जा रही है। यहां पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में मंगलवार को कैबिनेट बैठक की विशेष बैठक हो रही है। यह कैबिनेट बैठक पचमढ़ी के राजभवन में आयोजित की गई है। लेकिन ये कैबिनेट बैठक सिर्फ मध्यप्रदेश के मंत्रियों के अहम निर्णय लेने की बैठक ही नहीं है बल्कि पचमंढी के उस वीर योद्धा को समर्पित है जिसने अंग्रेजों के शासन की नींव हिला दी थी। जिनका नाम है राजा भभूत सिंह, जिन्हें ‘नर्मदांचल का शिवाजी’ भी कहा जाता है।
शौर्य की छांव में नीतियों की बैठक
पचमढ़ी की पहाड़ियों में आयोजित इस अनोखी बैठक का उद्देश्य केवल सरकारी योजनाओं की समीक्षा नहीं, बल्कि उस वीर आदिवासी योद्धा को श्रद्धांजलि देना है जिसने 1857 की क्रांति में अपनी धरती के लिए अंग्रेजों से जंग छेड़ दी थी। बैठक के दौरान 33.88 करोड़ रुपए के विकास कार्यों का लोकार्पण और भूमिपूजन किया जाएगा। खास बात यह भी है कि राजा भभूत सिंह की स्मृति में एक भव्य प्रतिमा स्थापित करने और नर्मदांचल क्षेत्र के किसी संस्थान का नाम उनके नाम पर रखने का प्रस्ताव भी इस बैठक में रखा जाएगा।
राजा भभूत सिंह की ऐसी है गाथा
राजा भभूत सिंह का जन्म पचमढ़ी के ठाकुर अजीत सिंह के वंश में हर्राकोट राईखेड़ी शाखा के जागीरदार परिवार में हुआ था। वे गोंड जनजाति के प्रमुख नेता और योद्धा थे। जब 1857 की क्रांति की ज्वाला उठी, तो भभूत सिंह ने अपने इलाके में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका। उनकी रणनीति बिल्कुल छत्रपति शिवाजी महाराज जैसी थी। जो गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे इसके साथ ही भौगोलिक इलाकों की गहरी समझ और दुश्मन पर अचानक वार करना उनका मुख्य हथियार था। अंग्रेज उनसे इतना डरते थे कि उनके खिलाफ मद्रास इन्फेंट्री तक तैनात करनी पड़ी।
तात्या टोपे के साथ शौर्य की रणनीति
भभूत सिंह अकेले नहीं थे। 1857 की क्रांति के महानायक तात्या टोपे के साथ उन्होंने नर्मदा किनारे सांडिया के पास रणनीति बनाई और पचमढ़ी की पहाड़ियों में आठ दिनों तक योजना बनाते रहे। यह जोड़ी अंग्रेजी हुकूमत के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं थी। सबसे निर्णायक लड़ाई देनवा घाटी में हुई, जहाँ राजा भभूत सिंह की सेना ने अंग्रेजों को बुरी तरह शिकस्त दी। वे 1860 तक जंगलों में रहकर लगातार अंग्रेजों से भिड़ते रहे।
जनजातीय चेतना के थे अग्रदूत
राजा भभूत सिंह न केवल एक योद्धा थे, बल्कि जनजातीय समाज के लिए प्रेरणा भी थे। उन्होंने अपने लोगों को संगठित किया इसके साथ ही आत्मसम्मान और स्वतंत्रता की भावना भी जगाई। उन्होंने यह साबित किया कि जंगलों और पहाड़ों में भी आज़ादी की मशाल जल सकती है। इसी कड़ी में आज जब पचमढ़ी में मुख्यमंत्री की कैबिनेट बैठक होगी, तब केवल योजनाएं पारित नहीं होंगी, बल्कि इतिहास के उस छुपे हुए अध्याय को उजागर किया जाएगा जिसे राजा भभूत सिंह ने अपने खून और साहस से लिखा था। यह बैठक नहीं, श्रद्धांजलि है एक महान योद्धा को, जो आज भी नर्मदांचल की हवा में गूंजते हैं।