दुनियाभर में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अमेरिका ने अब तक लगभग 80 देशों में करीब 750 से अधिक सैन्य ठिकानों (Military Bases) पर नियंत्रण बना रखा है। इनमें आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के बेस शामिल हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह संख्या इससे भी अधिक हो सकती है, क्योंकि पेंटागन (Pentagon) ने अपने सभी बेस का डेटा सार्वजनिक नहीं किया है।
अमेरिका के पास लगभग 13 लाख सैनिक हैं, जिनमें से करीब 1.72 लाख सैनिक (13%) विदेशी ठिकानों पर तैनात हैं। अब अमेरिका विश्व स्तर पर अपनी सामरिक शक्ति बढ़ाने के लिए चार नए रणनीतिक बेस बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है।
बगराम एयरबेस
अफगानिस्तान के परवान प्रांत में स्थित बगराम एयरबेस काबुल से लगभग 60 किलोमीटर उत्तर में है। इसे मूल रूप से 1950 के दशक में सोवियत संघ ने बनाया था और 1980 के सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान यह सोवियत सेनाओं का प्रमुख ठिकाना रहा। 9/11 हमलों के बाद अमेरिका ने इस बेस का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और इसे नाटो फोर्सेज का मुख्यालय बना दिया। लगभग 20 साल तक चले युद्ध के दौरान यहां करीब 30 हजार अमेरिकी सैनिक तैनात रहे।
यह बेस तकनीकी और सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है — यहां 11 हजार फीट लंबे दो कंक्रीट रनवे, 100 से अधिक विमान शेल्टर, ईंधन भंडार, अस्पताल और खुफिया केंद्र मौजूद थे। यह एयरबेस दक्षिण, पश्चिम और मध्य एशिया के बीच रणनीतिक रूप से ऐसे स्थान पर स्थित है, जहां से ईरान, पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग प्रांत और रूस पर निगरानी रखना आसान है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में अमेरिका के पास दुनिया भर में करीब 170 एयरबेस हैं।
चाबहार और ग्वादर के पास नया बेस
ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई के सलाहकार अली अकबर वेलयाती ने हाल ही में दावा किया है कि अमेरिका, ईरान के चाबहार बंदरगाह और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के आसपास नए सैन्य ठिकाने बनाने की योजना पर काम कर रहा है। संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका पाकिस्तान के मकरान तट पर पासनी क्षेत्र में अपना एयरबेस या नेवल बेस स्थापित कर सकता है। हालांकि, अमेरिका की ओर से इस पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
अमेरिका के लिए यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अरब सागर और ओमान की खाड़ी के बीच स्थित है — जो दुनिया के ऊर्जा व्यापार और समुद्री मार्गों का केंद्र है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम चीन के ग्वादर में बढ़ते प्रभाव को काउंटर करने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है। इससे अमेरिका ईरान, पाकिस्तान और चीन की गतिविधियों पर सीधी निगरानी रख सकेगा।
गाजा बॉर्डर पर प्रस्तावित मिलिट्री बेस
अमेरिका अब इजराइल के गाजा बॉर्डर के पास एक बड़े सैन्य बेस की योजना पर विचार कर रहा है। इस बेस का उद्देश्य गाजा पट्टी में शांति और संघर्षविराम की निगरानी करना होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बेस को 10,000 सैनिकों की क्षमता के साथ बनाया जाएगा और इसकी लागत लगभग 500 मिलियन डॉलर (करीब ₹4,000 करोड़) होगी।
अमेरिकी सेना एक अस्थायी बेस मॉडल पर भी विचार कर रही है, जो 12 महीनों तक चलने वाला और पूरी तरह आत्मनिर्भर होगा — यानी सैनिकों के रहने, भोजन, संचार और मेडिकल सुविधाओं की संपूर्ण व्यवस्था वहीं होगी। यह कदम इजराइल की नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है क्योंकि अब तक इजराइल अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों में किसी विदेशी सेना की तैनाती की अनुमति नहीं देता था। अमेरिका इस बेस के जरिये न केवल गाजा में स्थिरता बनाए रखने बल्कि ईरान पर दबाव बनाने की दिशा में भी रणनीतिक लाभ लेना चाहता है।
दमिश्क एयरबेस
हाल ही में यह खबर सामने आई कि अमेरिका सीरिया की राजधानी दमिश्क के एयरबेस पर सैनिक तैनात करने की योजना बना रहा है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य इजराइल-सीरिया सुरक्षा समझौते की निगरानी करना बताया जा रहा है। यह बेस निगरानी, लॉजिस्टिक्स, रिफ्यूलिंग और मानवीय सहायता अभियानों (Humanitarian Operations) के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, अमेरिका दमिश्क के दक्षिण-पश्चिम में स्थित मेजेह एयरबेस या ब्लेई एयरपोर्ट का उपयोग कर सकता है। ब्लेई एयरपोर्ट राजधानी से करीब 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और इसमें एक लंबा रनवे है।
वर्तमान में काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्य पूर्व में 40 से 50 हजार अमेरिकी सैनिक 19 स्थानों पर तैनात हैं। इनमें बहरीन, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब और यूएई में मौजूद 8 प्रमुख अमेरिकी बेस शामिल हैं।