इंदौर एक ऐसी जगह है जो अपने अलग-अलग स्थान के लिए बहुत प्रसिद्ध है। इंदौर में कई चमत्कारी मंदिर भी है। इसी में से एक है मातारानी का मंदिर। दरअसल, माता अंबे का भी एक प्रसिद्ध मंदिर है, जहां रात 12 बजे माता की विशेष आरती और भक्ति होती है। यह स्थान इंदौर के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है और भक्तगण यहां मां अंबे की पूजा-अर्चना में लीन रहते हैं। मंदिर का माहौल भक्तिमय होता है, ढोल-नगाड़ों और जयकारों के साथ यहां आने वाला हर व्यक्ति मां अंबे की भक्ति में डूबा हुआ नजर आता है।
भर जाती है सूनी गोद
मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, खासकर वे महिलाएं जो संतान की इच्छा रखती हैं, उनकी गोद भर जाती है। इस मंदिर की आध्यात्मिक महत्ता के कारण लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और मां अंबे का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इंदौर आने वाले पर्यटक इस मंदिर की विशेषता और भक्ति भावना का अनुभव करने के लिए अवश्य आते हैं। इंदौर में स्थित यह मंदिर मां काली को समर्पित है, जिन्हें यहां मां अंबा के रूप में भी पूजा जाता है। मान्यता है कि माता काली यहां एक आम के पेड़ से प्रकट हुई थीं, इसलिए भक्त उन्हें मां अंबा के नाम से भी जानते हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां रात 12 बजे माता की विशेष आरती होती है और ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त सूनी गोद लेकर यहां आते हैं, माता के आशीर्वाद से उनकी गोद भर जाती है।
सभी मनोकामनाएं होती है पूरी
मां काली के आशीर्वाद से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। अपनी मन्नत पूरी करने के लिए भक्त यहां नारियल चढ़ाते हैं, जिसे मंदिर के पेड़ पर चढ़ाया जाता है। नवरात्रि के समय यह मंदिर भक्तों से भरा रहता है, और विशेष रूप से मंगलवार को यहां एक विशेष आरती का आयोजन होता है, जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। यह मंदिर भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक और आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण है सूनी गोद भरने की मान्यता। कहा जाता है कि जो महिलाएं संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर यहां आती हैं, उनकी गोद माता के आशीर्वाद से भर जाती है। हर मंगलवार को विशेष आरती से पहले महिलाएं अपनी मन्नत के प्रतीक स्वरूप पुजारी को नारियल अर्पित करती हैं। इस प्रक्रिया के लिए कुछ नियम भी निर्धारित हैं। मन्नत मांगने वाली महिलाओं को पांच मंगलवार तक मंदिर में आकर हाजिरी लगानी होती है। यदि वे लगातार पांच मंगलवार हाजिरी लगाती हैं, तो उनकी मनोकामना पूरी होने की संभावना प्रबल मानी जाती है।
मंदिर में लगाई जाती है उल्टी परिक्रमा
इस मंदिर की एक विशेष और अनोखी परंपरा उल्टी परिक्रमा की है। अन्य मंदिरों में भक्त भगवान की परिक्रमा सामान्य रूप से उल्टे हाथ से शुरू कर सीधे हाथ पर समाप्त करते हैं, लेकिन इस मंदिर में परिक्रमा सीधे हाथ से शुरू करके उल्टे हाथ पर समाप्त की जाती है। यही नहीं, मन्नत मांगते समय भक्त उल्टा स्वास्तिक भी बनाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में जो भी भक्त उल्टी परिक्रमा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह अनोखी परंपरा इस मंदिर को और भी विशेष बनाती है, जहां भक्त आस्था के साथ अपनी मन्नतें लेकर आते हैं और माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
नारियल का है विशेष महत्त्व
माता काली के इस मंदिर में श्रद्धालु दूर-दूर से मन्नत लेकर आते हैं और अपनी मन्नत पूरी होने की आस में नारियल चढ़ाते हैं। यहां की खासियत यह है कि चढ़ाए गए नारियलों को न तो नदी में प्रवाहित किया जाता है और न ही इन्हें प्रसाद के रूप में तुरंत वितरित किया जाता है। इन नारियलों को पेड़ पर चढ़ाया जाता है। जब नवरात्रि के दौरान भंडारा आयोजित किया जाता है, तो उन्हीं नारियलों को प्रसाद के रूप में उपयोग किया जाता है। इन नारियलों से बनने वाला प्रसाद भक्तों के बीच वितरित किया जाता है, जिसे श्रद्धालु ग्रहण करते हैं। इस अनूठी परंपरा से भक्ति और आस्था का एक विशेष भाव जुड़ा हुआ है, जो इस मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग बनाता है।