उज्जैन की पवित्र नगरी में हर साल चातुर्मास के समापन पर “हरि-हर मिलन” की अद्भुत परंपरा का आयोजन होता है, जो भक्तों के लिए आस्था और उत्साह का केंद्र बनती है। इस परंपरा में भगवान शिव, महाकालेश्वर, अपने भक्तों के संग धूमधाम से सवारी करते हुए भगवान विष्णु के स्वरूप गोपाल जी से मिलने जाते हैं। गुरुवार-शुक्रवार की मध्य रात्रि में, महाकाल और गोपाल जी के इस मिलन का अद्भुत दृश्य श्रद्धालुओं को देखने को मिला, जिसमें महाकाल ने सृष्टि का भार हरि (विष्णु) को सौंप दिया। इस महापर्व में सम्मिलित भजनों, भक्तों के उल्लास, और भक्तिरस से वातावरण गुंजायमान रहा, और आस्थावान लोग मध्य रात्रि तक इस दिव्य दृश्य का साक्षी बनने के लिए प्रतीक्षा में रहे।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने दानवीर राजा बलि को उनके आतिथ्य को स्वीकार करने का वचन दिया था। इस वचन का पालन करने के लिए भगवान विष्णु हर साल चातुर्मास के चार महीनों में पाताल लोक में राजा बलि के यहां अतिथि बनकर निवास करते हैं। इन चार महीनों में, भगवान विष्णु अपनी दिव्य शक्ति के माध्यम से सृष्टि के संचालन का भार भगवान शिव को सौंप देते हैं, ताकि संसार का संतुलन बना रहे। यह परंपरा “हरि-हर मिलन” के दौरान उजागर होती है, जब चातुर्मास समाप्ति पर भगवान शिव, महाकाल के रूप में भगवान विष्णु के गोपाल स्वरूप से मिलने जाते हैं और सृष्टि का भार पुनः हरि को सौंप देते हैं। यह प्रतीकात्मक आयोजन भक्तों के लिए गहरी आध्यात्मिक भावना और समर्पण का संदेश लेकर आता है।
देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन चातुर्मास का समापन होता है, और इसी दिन भगवान विष्णु चार महीने के विश्राम के बाद पुनः वैकुंठ लौटते हैं। इसके तीन दिन बाद, वैकुंठ चतुर्दशी के अवसर पर भगवान शिव वैकुंठ जाते हैं और भगवान श्री हरि विष्णु को पुनः सृष्टि का भार सौंपते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु के इस पवित्र मिलन को “हरि-हर मिलन” कहा जाता है। यह धार्मिक आयोजन, जो विशेष रूप से उज्जैन में आयोजित होता है, भक्तों के लिए अत्यंत भावपूर्ण होता है और हरि-हर की अद्वितीय भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
ज्योतिषाचार्य पं. अमर डब्बावाला के अनुसार, श्री शिव महापुराण और विष्णु पुराण में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी की संधि काल में “हरि-हर मिलन” की विशेष मान्यता बताई गई है। इस कारण से अवंतिका (उज्जैन) तीर्थ क्षेत्र में हरि-हर मिलन का महत्व और प्रभाव अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक दिखाई देता है।
उज्जैन में यह महत्व इसलिए विशेष हो जाता है क्योंकि यहां भगवान शिव का एक प्रमुख ज्योतिर्लिंग (महाकालेश्वर) स्थित है, और भगवान नारायण के नौ स्वरूप भी “सप्त सागर” के साथ विराजमान हैं। इन दोनों दिव्य स्थलों की उपस्थिति के कारण अवंतिका तीर्थ पर हरि-हर मिलन की यह परंपरा विशिष्ट रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
महाकाल मंदिर के पुजारी पं. महेश पुजारी के अनुसार, सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट के अंतर्गत श्री द्वारकाधीश गोपाल मंदिर में हरि-हर मिलन की परंपरा सौ साल से भी अधिक पुरानी है। इस परंपरा का निर्वहन सिंधिया स्टेट के समय से किया जा रहा है। हर साल कार्तिक मास में मध्य रात्रि 12 बजे भगवान महाकाल और भगवान विष्णु के स्वरूप गोपालजी का मिलन कराया जाता है। पूजा-अर्चना के उपरांत, भगवान महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर से वापस महाकाल मंदिर के लिए रवाना होती है। यह अनुष्ठान न केवल एक धार्मिक परंपरा है, बल्कि उज्जैन के श्रद्धालुओं के लिए एक विशिष्ट और दिव्य अनुभव भी है।