भारत ने जम्मू-कश्मीर बांध परियोजनाओं पर मध्यस्थता न्यायालय के ‘फैसले’ को खारिज किया

भारत ने जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं पर तथाकथित मध्यस्थता न्यायालय के “पूरक फैसले” को सिरे से खारिज कर दिया है। सिंधु नदी प्रणाली की सहायक नदियों पर स्थित इन परियोजनाओं को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से विवाद चला आ रहा है। भारत ने इस मध्यस्थता न्यायालय को अवैध करार देते हुए कहा कि इसका गठन ही सिंधु जल संधि (IWT) का उल्लंघन करता है और भारत न तो इस न्यायालय को मान्यता देता है और न ही इसके किसी निर्णय को स्वीकार करता है।

विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “यह तथाकथित मध्यस्थता न्यायालय, जिसे कथित तौर पर 1960 की सिंधु जल संधि के तहत गठित किया गया था, लेकिन इसका स्पष्ट उल्लंघन करते हुए, ने भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में अपनी योग्यता पर ‘पूरक फैसला’ जारी किया है।” मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि इस न्यायालय के समक्ष कोई भी कार्यवाही और इसके फैसले “अवैध और स्वयं में शून्य” हैं।

यह बयान उस समय आया है, जब भारत ने अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 लोगों की जान गई थी, सिंधु जल संधि को निलंबित करने का फैसला किया। भारत ने अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अपने संप्रभु अधिकारों का उपयोग करते हुए कहा कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन करने से “विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से” पीछे नहीं हटता, तब तक वह इस संधि के दायित्वों को निलंबित रखेगा। इस निलंबन के दौरान भारत का कहना है कि वह संधि की शर्तों से बाध्य नहीं है।

विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा, “कोई भी मध्यस्थता न्यायालय, विशेष रूप से यह अवैध रूप से गठित निकाय, जिसका कानून की नजर में कोई अस्तित्व नहीं है, भारत के संप्रभु अधिकारों के तहत की गई कार्रवाइयों की वैधता की जांच करने का क्षेत्राधिकार नहीं रखता।”\

भारत ने इस मध्यस्थता प्रक्रिया में पाकिस्तान की भूमिका की कड़ी आलोचना की और इसे “नवीनतम नाटक” और “आतंकवाद के समर्थन में अपनी कथित भूमिका से ध्यान भटकाने की हताश कोशिश” करार दिया। भारत का यह रुख न केवल इन जलविद्युत परियोजनाओं के संबंध में उसकी स्थिति को मजबूत करता है, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा और संप्रभुता के प्रति उसकी दृढ़ता को भी दर्शाता है।