Indian Economy: आर्थिक मोर्चे पर भारत को लगा बड़ा झटका, दो साल के निचले स्तर पर आई देश की GDP

Indian Economy: भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष 2024-25 की जुलाई-सितंबर तिमाही में गिरकर 5.4% पर आ गई है, जो पिछले दो वर्षों में सबसे कम स्तरों में से एक है। इस गिरावट का मुख्य कारण विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र का कमजोर प्रदर्शन बताया गया है। सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के अनुसार, यह आर्थिक वृद्धि दर एक साल पहले की समान अवधि में 8.1% थी। इससे पहले, आर्थिक वृद्धि का सबसे निचला स्तर वित्त वर्ष 2022-23 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 4.3% दर्ज किया गया था।

भारत की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में स्थिति

हालांकि भारत अभी भी विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। इसकी तुलना में चीन की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 4.6% रही।

मुख्य क्षेत्रीय प्रदर्शन

  • कृषि क्षेत्र:
    • कृषि क्षेत्र ने जुलाई-सितंबर तिमाही में 3.5% की वृद्धि दर्ज की, जबकि पिछले वर्ष की समान अवधि में यह वृद्धि मात्र 1.7% थी।
  • विनिर्माण क्षेत्र:
    • विनिर्माण क्षेत्र में विकास दर में बड़ी गिरावट आई है। पिछले वर्ष की इसी तिमाही में यह क्षेत्र 14.3% की दर से बढ़ा था, लेकिन इस बार यह केवल 2.2% तक सीमित रह गया।

पहली छमाही में आर्थिक स्थिति

चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही (अप्रैल-सितंबर) में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 6% रही। इसकी तुलना में पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में वृद्धि दर 8.2% दर्ज की गई थी। वहीं, चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.7% थी।

राजकोषीय घाटे की स्थिति

वित्त वर्ष 2024-25 के पहले सात महीनों (अप्रैल-अक्टूबर) में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा पूरे साल के बजट लक्ष्य का 46.5% तक पहुंच गया। यह घाटा 7,50,824 करोड़ रुपये का रहा। यह पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि के 45% के स्तर से थोड़ा अधिक है।

राजकोषीय घाटा सरकार के खर्च और आय के बीच का अंतर होता है। सरकार ने इस वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.9% तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा है। इस हिसाब से पूरे साल का राजकोषीय घाटा 16,13,312 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।

सरकार राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने और आर्थिक वृद्धि को स्थिर रखने के लिए विभिन्न प्रयास कर रही है। हालांकि, विनिर्माण क्षेत्र की धीमी प्रगति और राजकोषीय घाटे में वृद्धि के कारण सरकार के सामने चुनौतियां बनी हुई हैं।