Ind Vs Eng: जब 1971 में इंग्लैंड में सूर्योदय हुआ था भारत का क्रिकेट, यहीं से बदल गई थी कहानी

Ind Vs Eng: 54 साल पहले, 1971 में, भारतीय क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड की धरती पर एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी, जिसे आज भी ‘द ओवल मिरेकल’ के रूप में याद किया जाता है। अजीत वाडेकर की कप्तानी में भारतीय टीम ने न केवल सभी आशंकाओं को गलत साबित किया, बल्कि विश्व क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत की। यह जीत भारतीय क्रिकेट के लिए एक मील का पत्थर थी, जिसने न केवल टीम का आत्मविश्वास बढ़ाया, बल्कि यह भी दिखाया कि भारत अब क्रिकेट के वैश्विक मंच पर एक ताकतवर दावेदार बन सकता है।

Ind Vs Eng:  चुनौतियों से भरा सफर

1971 का इंग्लैंड दौरा शुरू होने से पहले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) कई विवादों और आलोचनाओं के घेरे में था। टीम चयन को लेकर अनिश्चितता थी और समय की कमी के कारण तैयारियों में देरी हो रही थी। 17 जून 1971 को तय प्रस्थान तिथि से पहले खिलाड़ियों का चयन और प्रशिक्षण शिविर का आयोजन एक बड़ी चुनौती था। उस समय बीसीसीआई के सामने एक और बड़ा सवाल था—टीम में 16 या 17 खिलाड़ी शामिल किए जाएं। उस दौर में एक अतिरिक्त खिलाड़ी का चयन भी आर्थिक बोझ था, क्योंकि विदेशी मुद्रा की कमी एक गंभीर समस्या थी। खिलाड़ियों को प्रतिदिन 30 पाउंड का भत्ता दिया जाता था, जो बीसीसीआई के लिए भी आसान नहीं था।

Ind Vs Eng सीरीज के लिए भगवत चंद्रशेखर का विवादास्पद चयन

टीम चयन के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा भगवत चंद्रशेखर के शामिल होने को लेकर हुई। चंद्रशेखर, जिन्होंने 1966-67 के इंग्लैंड दौरे पर शानदार प्रदर्शन किया था, बाद में खराब फॉर्म के कारण ऑस्ट्रेलिया दौरे से बाहर हो गए थे। हालांकि, रणजी और दलीप ट्रॉफी में उनके शानदार प्रदर्शन ने उन्हें फिर से राष्ट्रीय टीम में जगह दिलाई। इंग्लैंड की लेग स्पिन के खिलाफ कमजोरी को देखते हुए चंद्रशेखर का चयन एक रणनीतिक फैसला था। कई विशेषज्ञों का मानना था कि अगर इंग्लैंड के डेरेक अंडरवुड गीली पिचों पर अपनी तेज स्पिन से कहर बरपा सकते हैं, तो चंद्रशेखर, जिनके पास अधिक विविधता और क्षमता थी, निश्चित रूप से बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे।

हालांकि, चयन के बाद चंद्रशेखर को बीसीसीआई के चयन समिति अध्यक्ष विजय मर्चेंट की एक टिप्पणी का सामना करना पड़ा। मर्चेंट ने पूरी टीम के सामने कहा कि अगर चंद्रशेखर इस दौरे पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करेंगे, तो यह उनका आखिरी दौरा हो सकता है। इस टिप्पणी से चंद्रशेखर नाराज और अपमानित महसूस कर रहे थे। उन्होंने तो दौरे से हटने तक का विचार कर लिया था। लेकिन इस आलोचना ने उनके अंदर एक नई आग जलाई, जिसका परिणाम ओवल टेस्ट में देखने को मिला।

Ind Vs Eng में ओवल का चमत्कार

1971 की भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज में ओवल टेस्ट एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ। यह जीत उसी तरह यादगार थी जैसे 2001 में ईडन गार्डन्स में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की जीत। इंग्लैंड उस समय मजबूत स्थिति में था, लेकिन भारतीय टीम ने हार नहीं मानी। भगवत चंद्रशेखर ने मात्र ढाई घंटे में इंग्लिश बल्लेबाजी को तहस-नहस कर दिया। उनकी शानदार लेग स्पिन ने इंग्लैंड की पारी को ध्वस्त कर भारत के सामने एक ऐतिहासिक रन चेज का लक्ष्य रखा।

यह जीत न केवल एक खेल उपलब्धि थी, बल्कि भारतीय क्रिकेट के लिए एक नई शुरुआत थी। इसने अजीत वाडेकर और विजय मर्चेंट की जोड़ी को मजबूत किया। वाडेकर की कप्तानी अब निर्विवाद थी, और मर्चेंट ने साल के अंत में चयन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, एक ऐसी विरासत छोड़कर जिसे दोहराना मुश्किल था।

चंद्रशेखर का जवाब

चंद्रशेखर का प्रदर्शन इस दौरे का सबसे चमकता सितारा था। उनके लिए ओवल टेस्ट ( Ind Vs Eng )न केवल एक खेल था, बल्कि अपनी आलोचनाओं का जवाब देने का मौका था। सुनील गावस्कर, गुंडप्पा विश्वनाथ और वाडेकर जैसे सहयोगियों ने इसे चंद्रशेखर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन बताया। यह उनके करियर का सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट था, जहां उन्होंने साबित किया कि वह भारत के सबसे महान लेग स्पिनरों में से एक हैं।