प्रकृति की रचनाओं में रंगों का ऐसा अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है, जो इंसान की कल्पनाओं से भी परे है। ऐसा ही एक नायाब उदाहरण है ‘इंडियन गोल्डन ओरिओल’ (Indian Golden Oriole), जिसे आम बोलचाल में ‘पीलक’ के नाम से जाना जाता है। अपने सुनहरे पीले रंग और अनोखी शारीरिक बनावट के कारण यह पक्षी बरबस ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है।
पीलक का रंग इतना गहरा और चमकदार पीला होता है कि कई लोग इसकी तुलना गेंदे के फूल (मैरीगोल्ड) से करते हैं। इसके शरीर के सुनहरे कैनवास पर प्रकृति ने कुछ ऐसे विरोधाभासी रंग भरे हैं जो इसे और भी आकर्षक बनाते हैं। इसकी आंखें माणिक जैसी लाल होती हैं, जिसके चारों ओर एक गहरी भूरी (ब्लैकिश ब्राउन) पट्टी होती है। यही गहरा भूरा रंग इसके पंखों पर भी दिखाई देता है।
अनोखा रंग संयोजन और पहचान
इस पक्षी की सबसे खास बात रंगों का वह अनूठा मेल है, जो आम तौर पर किसी ‘मैचिंग’ या ‘कंट्रास्ट’ के नियमों को नहीं मानता। सुनहरे पीले शरीर और काले-भूरे पंखों के बीच इसकी गुलाबी चोंच एक अलग ही छटा बिखेरती है। प्रकृति का यह बेजोड़ रंग संयोजन इसे अन्य पक्षियों से बिल्कुल अलग कतार में खड़ा करता है।
विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नाम
भारत की भाषाई विविधता की तरह इस पक्षी के भी कई नाम हैं। मराठी भाषा में इसे ‘हल्दिया’ कहा जाता है, जो इसके हल्दी जैसे पीले रंग को दर्शाता है। वहीं, गुजराती में इसे ‘सोनेरी पीलक’ के नाम से पुकारा जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे ‘सुवर्णा’ भी कहा जाता है।
लोक मानस का ‘स्वप्न पाखी’
गोल्डन ओरिओल केवल अपनी सुंदरता तक सीमित नहीं है, बल्कि लोक मानस में इसका गहरा स्थान है। इसे ‘स्वप्न पाखी’ भी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, यह वह पक्षी है जिसे देखने मात्र से मन में आशा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसे सपनों का पक्षी कहा जाता है, लेकिन यह सपनों की तरह दुर्लभ नहीं है।
आवास और संरक्षण
यह पक्षी भारत के साथ-साथ पूरे मध्य एशिया में पाया जाता है। इसकी उपस्थिति केवल घने जंगलों तक सीमित नहीं है। यह गांवों, कस्बों और यहां तक कि शहरी पार्कों में भी आसानी से देखा जा सकता है। अक्सर यह रिहायशी इलाकों में घर के आसपास के पेड़ों पर भी नजर आ जाता है। हालांकि, यह रोज दिखाई देने वाला पक्षी नहीं है, लेकिन समय-समय पर इसके दर्शन हो ही जाते हैं।
पर्यावरणविदों और पक्षी प्रेमियों का मानना है कि ऐसे सुंदर जीवों का अस्तित्व तभी तक सुरक्षित है, जब तक हम उनके आवास को बचाएंगे। पेड़, पहाड़, नदी और तालाबों का संरक्षण ही इन ‘स्वप्न पाखियों’ को हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बचाकर रख पाएगा।