भारत में सोने की चमक सिर्फ आभूषणों तक सीमित नहीं है, यह देश की आर्थिक स्थिरता और सांस्कृतिक परंपरा दोनों का प्रतीक बन चुका है। हाल ही में वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल (WGC) ने एक चौंकाने वाला आंकड़ा जारी किया है, जिसके मुताबिक भारत के घरों और मंदिरों में कुल लगभग 25,000 टन सोना संग्रहित है।
इस सोने की मौजूदा अंतरराष्ट्रीय बाजार कीमत करीब 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई है, जो कि भारत की वित्त वर्ष 2026 की अनुमानित नॉमिनल जीडीपी का 56% हिस्सा है।
पाकिस्तान की पूरी इकोनॉमी से 6 गुना ज्यादा है भारत के पास सोना
WGC की इस रिपोर्ट में यह खुलासा भी हुआ है कि भारत के घरों और मंदिरों में मौजूद यह सोना पाकिस्तान की कुल जीडीपी से करीब 6 गुना ज्यादा मूल्य का है। जहां पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था अभी 400 अरब डॉलर के आसपास है, वहीं अकेले भारतीयों के पास पड़ा हुआ सोना ही 2400 अरब डॉलर से ऊपर का है। यह तुलना भारत की पारंपरिक संपत्ति की शक्ति और उसकी वैश्विक आर्थिक स्थिति को दर्शाती है।
पारिवारिक धरोहर से राष्ट्रीय संपत्ति तक
भारत में सोना सदियों से पारिवारिक धरोहर के रूप में देखा जाता रहा है। चाहे शादी-ब्याह हो या कोई खास त्योहार, सोना खरीदना शुभ माना जाता है। इस परंपरा के चलते आज भारत के सामान्य परिवारों से लेकर विशाल मंदिरों तक में भारी मात्रा में सोना संग्रहित है। यह न केवल सांस्कृतिक दृष्टि से अमूल्य है, बल्कि वैश्विक आर्थिक मंच पर भारत की छवि को भी सशक्त करता है।
आर्थिक विकास के लिए “निष्क्रिय संपत्ति” को बनाना होगा “सक्रिय पूंजी”
विशेषज्ञ मानते हैं कि इतनी भारी मात्रा में सोना केवल सजावट या सुरक्षित निवेश के रूप में न रह जाए, बल्कि इसे आर्थिक गतिविधियों में भी शामिल किया जाना चाहिए। यदि इस सोने को विभिन्न योजनाओं और वित्तीय संरचनाओं के माध्यम से बाजार में लाया जाए, तो यह देश की आर्थिक तरलता (liquidity) और विकास दर को एक नया बल दे सकता है।