इंदौर में पार्षद अनवर कादरी की कुर्सी बचाने में कानूनी चूक, पत्नी को हाईकोर्ट से वापस लेनी पड़ी याचिका

Indore News :  विवादित कांग्रेस पार्षद अनवर कादरी की पार्षदी बचाने की एक कोशिश नाकाम हो गई। उनकी पत्नी जुलेखा बी ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी, लेकिन एक बड़ी कानूनी चूक के चलते इसे वापस लेना पड़ा। याचिका में उन मूल आदेशों को ही चुनौती नहीं दी गई थी, जिनके तहत कादरी की सदस्यता समाप्त की गई थी।

शुक्रवार को जैसे ही यह मामला हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए आया, कादरी के वकील ने गलती का अहसास होने पर याचिका वापस लेने का आवेदन प्रस्तुत कर दिया। इसके बाद अदालत ने याचिका को निराकृत कर दिया।

याचिका में क्या थी बड़ी चूक?

दरअसल, कादरी की पत्नी द्वारा दायर याचिका में संभागायुक्त द्वारा सितंबर में और महापौर परिषद द्वारा अक्टूबर में जारी किए गए नोटिस को चुनौती दी गई थी। लेकिन इन नोटिसों के आधार पर 10 नवंबर को संभागायुक्त डॉ. सुदाम खाड़े द्वारा जारी पार्षदी खत्म करने के अंतिम आदेश को चुनौती देना भूल गए।

इसी तरह, 9 अक्टूबर को नगर निगम परिषद द्वारा दो-तिहाई बहुमत से कादरी को हटाने के लिए पारित प्रस्ताव को भी याचिका में चुनौती नहीं दी गई थी। कानूनी तौर पर मूल आदेश को चुनौती दिए बिना सिर्फ नोटिस को चुनौती देने का कोई औचित्य नहीं था।

क्यों गई थी अनवर कादरी की पार्षदी?

इंदौर के वार्ड 58 से कांग्रेस पार्षद अनवर कादरी उर्फ डकैत पर ‘लव जिहाद’ के लिए फंडिंग करने का गंभीर आरोप है। इसी मामले में महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने संभागायुक्त को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की थी। इसके बाद संभागायुक्त ने नगर निगम एक्ट 1956 की धारा 19 के तहत कार्रवाई करते हुए 10 नवंबर को कादरी की पार्षदी समाप्त करने का आदेश जारी किया था।

इस आदेश के तहत कादरी अगले पांच साल तक चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे, जिससे वार्ड 58 में पार्षद का पद रिक्त हो गया है। हालांकि, कादरी के पास आदेश के खिलाफ 30 दिन के भीतर राज्य शासन के समक्ष अपील करने का विकल्प है।

आरोपों और कार्रवाई का घटनाक्रम

महापौर के पत्र के बाद तत्कालीन संभागायुक्त दीपक सिंह और फिर डॉ. सुदाम खाड़े ने कादरी को जवाब देने के लिए कई नोटिस जारी किए, लेकिन उनकी तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया। कादरी पर बाणगंगा थाने में दो एफआईआर दर्ज हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत भी कार्रवाई की गई है।

मामला तूल पकड़ने पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे। फरार चल रहे कादरी पर पुलिस ने 40 हजार रुपये तक का इनाम घोषित किया था। बाद में 29 अगस्त को उसने सरेंडर कर दिया था, जिसके बाद उसे जेल भेज दिया गया।