इंदौर में diary का ‘डायरिया’

राजेश राठौर, इंदौर

इंदौर में कालोनाइजर से पीड़ित डायरी ( diary ) पर प्लाट खरीदने वालों को ‘डायरिया’ हो गया है। जिस तरह से पहले किसी को उल्टी-दस्त होते हैं और फिर ज्यादा होने पर डायरिया बीमारी हो जाती है, ठीक उसी तरह। ‘पानी पर मलाई’ जमाने की तरह किसान को जमीन के एक टुकड़े की तरह कुल कीमत का एक टुकड़ा पकड़ा देते हैं। उसके बाद कालोनाइजर डायरी का खेल शुरू कर देते हैं।

diary में प्लाट की साइज और नंबर लिखा रहता है

यह डायरी ( diary  ) का खेल बड़ा विचित्र है, जिस तरह से गंदी बस्तियोंं में चाय की गुमठी वाला उधारी पर चाय पिलाने के लिए लाल-हरे रंग की डायरियां रखते हैं, ठीक उसी तरह से धोखेबाज कालोनाइजर कॉलोनी की प्री-लॉचिंग के नाम पर इंवेस्टर्स को डायरी बेचना शुरू कर देते हैं। डायरी में प्लाट की साइज और नंबर लिखा रहता है। 2 लाख रुपए को 2 लिखते हैं। कालोनाइजर उस डायरी पर अपनी वास्तविक सिग्नेचर करने की बजाय फर्जी साइन कर देते हैं। इंवेस्टर उस पर डायरी को लेकर बैठ जाते हैं, तीन-चार महीने बाद कालोनाइजर 200-300 रुपए स्क्वेयर फीट के हिसाब से प्लाट की नकली कीमत बढ़ाने का खेल शुरू करता है। कुछ लोग इन डायरियों पर भी ब्याज माफियाओं से उधार पैसे ले लेते हैं। कभी-कभी कालोनाइजर भी किसान को पैसा देने के लिए इन डायरियों को बेच देता है या गिरबी रख देता है। इन डायरियों के कारण आज की तारीख में इंदौर में लगभग 25 हजार लोगों को ‘डायरिया’ की बीमारी हो गई है, क्योंकि इन डायरियों के भाव बुकिंग के रेट से भी कम होते जा रहे हैं। डायरी वाले कुछ लोग तो हिम्मत करके अफसरों को शिकायत करने पहुंच जाते हैं लेकिन बाकी लोग, इस उम्मीद से रहते हैं कि आज नहीं तो कल प्लाट के भाव बढ़ जाएंगे। ‘पानी पर मलाई’ जमाने वाले कालोनाइजर झूठे ‘दिलासे’ डायरी वाले को देते रहते हैं और डायरी लेने वाले दिन-ब-दिन बीमार होते जा रहे हैं।
सवाल इस बात का है, कि कालोनाइजर के लुभावने झांसों में लोग क्यों फंस जाते हैं, क्योंकि उनको भी ‘हराम की कमाई’ की आदत पड़ जाती है। डायरी पर प्लाट खरीदने वाले लोग, लालच के कारण कालोनाइजर से टाउन कंट्री प्लानिंग या कलेक्ट्रेट के कालोनी सेल की अनुमति की कॉपी भी नहीं मागंते। इसी लालच का फायदा कालोनाइजर इंदौर में उठा रहे हैं, जो महंगी कारों में धूम रहे हैं, करोड़ों के बंगले बना रहे हैं और अपने बेटे-बेटियों की शादी में करोड़ों रुपए खर्च कर रहे हैं। ऐसे लोगों के लिए, प्रशासन के अधिकारियों को भी यह कहने का मौका मिल जाता है कि कोई भी व्यक्ति प्लाट खरीदता है, तो रेरा से लेकर तमाम अुनमतियों के बारे में कालोनाइजर से सवाल क्यों नहीं करता।