Indore News : कर्मचारी गृह निर्माण संस्था की वर्षों से विवादित वरीयता सूची एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार सहकारिता विभाग पर भूमाफिया दीपक मद्दा के साथ मिलीभगत कर हाईकोर्ट को गुमराह करने और इंदौर विकास प्राधिकरण (आईडीए) को फंसाने का गंभीर आरोप लगा है। विभाग ने चालाकी से एक मामले की आड़ में विवादित सूची कोर्ट में पेश कर दी, जिसके आधार पर अब हाईकोर्ट ने आईडीए को 24 नवंबर तक प्लॉट आवंटित करने का आदेश दिया है।
सूत्रों के मुताबिक, इस पूरी प्रक्रिया में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में चल रही जांच और अन्य लंबित मामलों को जानबूझकर छिपाया गया। सहकारिता विभाग ने कोर्ट के सामने यह तथ्य उजागर नहीं किया कि यह सूची पहले से ही कई स्तरों पर विवादित है और इसकी जांच चल रही है। अब आईडीए इस मामले में फंस गया है, क्योंकि उसे एक ऐसे आदेश का पालन करना है जिसकी बुनियाद ही सवालों के घेरे में है।
अदालती दांव-पेंच और आईडीए की उलझन
यह मामला 1990 में शुरू हुआ था, जब आईडीए और कर्मचारी गृह निर्माण संस्था के बीच अनुबंध हुआ था। संस्था को आईडीए में राशि जमा करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं होने पर आईडीए ने अनुबंध निरस्त कर दिया। मामला हाईकोर्ट पहुंचा, जिसने अनुबंध बहाल करने का आदेश दिया। इसके खिलाफ आईडीए सुप्रीम कोर्ट गया, लेकिन वहां से भी अनुबंध बहाल करने के निर्देश मिले, क्योंकि जमीन का मालिकाना हक संस्था का था।
इसके बाद हाईकोर्ट में आईडीए द्वारा आदेश का पालन न करने की याचिका लगी। इसी बीच सहकारिता विभाग ने मौके का फायदा उठाते हुए विवादित वरीयता सूची सीधे हाईकोर्ट में पेश कर दी। अब हाईकोर्ट ने इसी सूची को आधार मानकर आईडीए को 24 नवंबर तक प्लॉट आवंटन करने का निर्देश दिया है।
भूमाफिया और अधिकारियों की मिलीभगत का आरोप
सूत्रों का दावा है कि इस पूरे खेल के पीछे भूमाफिया दीपक मद्दा और सहकारिता विभाग के पूर्व उप अंकेक्षक आनंद पाठक की मुख्य भूमिका है। आरोप है कि डीआर (उपायुक्त) ने दीपक मद्दा से मिलीभगत कर यह सूची कोर्ट में पेश की। आनंद पाठक वही अधिकारी हैं, जिन्होंने विवादों में आने के बाद नौकरी छोड़ दी थी और अब भूमाफियाओं के साथ मिलकर जमीनों के सौदे निपटा रहे हैं।
संस्था के एक सदस्य बालेश चौरसिया ने इस सूची को अवैधानिक बताते हुए उपायुक्त, संयुक्त आयुक्त और आईडीए सीईओ को पत्र लिखकर आपत्ति भी दर्ज कराई है। उन्होंने अपने पत्र में अन्य अदालती प्रकरणों का हवाला देते हुए इस सूची के आधार पर आवंटन न करने की मांग की, लेकिन उनकी आपत्ति को नजरअंदाज कर दिया गया।
EOW की जांच और 20 लाख की वसूली
इस मामले में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) में एक प्रकरण पहले से दर्ज है। ईओडब्ल्यू ने 23 सितंबर को सहकारिता विभाग के कई मौजूदा और सेवानिवृत्त अधिकारियों को नोटिस जारी कर बयान के लिए भोपाल बुलाया था। वरीयता सूची को अंतिम रूप देते समय इस महत्वपूर्ण जांच की भी अनदेखी की गई।
चर्चा यह भी है कि सूची में नाम शामिल करने के लिए हर सदस्य से 20-20 लाख रुपए वसूले गए हैं। यह वसूली भूमाफिया दीपक मद्दा, उसके गुर्गों और सहकारिता विभाग के कुछ अधिकारियों के नाम पर की गई है।
अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर किया काम
जानकारों के अनुसार, सहकारिता विभाग के एक सर्कुलर के मुताबिक डीआर को वरीयता सूची जारी करने का अधिकार ही नहीं है। जेआर (संयुक्त आयुक्त) ने इस संबंध में एक सर्कुलर भी जारी किया था, लेकिन डीआर ने उसकी भी परवाह नहीं की। पूर्व में जब आरपी अहिरवार आईडीए सीईओ थे, तो उन्होंने इस मामले की पेचीदगियों को समझते हुए खुद को इससे दूर रखा था। लेकिन नए सीईओ के आते ही सहकारिता विभाग के अधिकारियों को अपना खेल करने का मौका मिल गया।