इंदौर में 2.39 लाख नसबंदी के दावे पर हाईकोर्ट की फटकार, 12 जनवरी तक कार्रवाई के निर्देश

Indore News : इंदौर में आवारा कुत्तों की समस्या पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाते हुए नगर निगम की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि शहर में आवारा कुत्तों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और लोगों का सुरक्षित निकलना मुश्किल हो गया है, जबकि निगम इससे उलट आंकड़े पेश कर रहा है।
यह मामला सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़ा है, जिस पर कोर्ट ने पहले स्वतः संज्ञान लिया था। 25 नवंबर को भी निगम को व्यापक अभियान चलाने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन अदालत के अनुसार जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं दिखा।
सुनवाई के दौरान निगम ने दावा किया था कि अब तक 2.39 लाख से अधिक स्ट्रीट डॉग्स की नसबंदी की जा चुकी है। इस पर कोर्ट ने इन आंकड़ों को संदेहास्पद बताते हुए कहा कि शहर में हालात बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
बेंच में शामिल प्रशासनिक जज विजयकुमार शुक्ला और जस्टिस बीके द्विवेदी ने कहा कि कॉलोनियों में बच्चों का घर से बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है और यह उनके सामाजिक विकास को प्रभावित कर रहा है। अदालत ने नसबंदी अभियान को लेकर हो रहे खर्च और उसके परिणामों पर भी गंभीर सवाल उठाए।

“नसबंदी और आंकड़े बताना एक बड़ा घोटाला है। शहर में हर जगह आवारा कुत्ते दिखते हैं।” — जस्टिस विजयकुमार शुक्ला

कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि प्रति श्वान लगभग दो हजार रुपए का खर्च दिखाया जा रहा है, लेकिन इसका प्रभाव शहर की सड़कों पर नजर नहीं आता।
निगम के दावों पर सवाल
नगर निगम का पक्ष रखते हुए अधिकारियों ने कहा कि शहर में दो स्थानों पर स्टरलाइजेशन कैंप चल रहे हैं। उनके अनुसार जहां से भी शिकायत आती है, वहां से कुत्तों को उठाकर रैबीज इंजेक्शन दिए जाते हैं और नसबंदी की जाती है।
अदालत ने इस दावे पर कहा कि यदि इतनी बड़ी संख्या में अभियान चलाया गया है तो सड़क पर कुत्तों की संख्या कम क्यों नहीं हो रही। कोर्ट ने पैदल चलने वालों, बाइक और स्कूटर चालकों पर कुत्तों के हमलों की बढ़ती घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि हालात गंभीर होते जा रहे हैं।
अगली सुनवाई से पहले कार्रवाई के निर्देश
हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि निगम ने अब भी प्रभावी कार्रवाई नहीं की तो नसबंदी और स्टरलाइजेशन अभियान की न्यायिक जांच का आदेश दिया जा सकता है। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 12 जनवरी तय की है।
तब तक नगर निगम को शहर के प्रमुख स्थानों से आवारा कुत्तों को हटाने और अभियान की वास्तविक प्रगति अदालत के समक्ष रखने के निर्देश दिए गए हैं।
कोर्ट ने मामले में सीनियर एडवोकेट पीयूष माथुर को न्यायमित्र नियुक्त किया है, जबकि एडवोकेट मनीष यादव इंटरविनर के रूप में पेश हो रहे हैं।
अदालत ने कहा कि यह मुद्दा केवल प्रशासनिक लापरवाही का नहीं, बल्कि जनता की सुरक्षा और स्वास्थ्य से सीधे जुड़ा है, इसलिए इसमें जल्द और प्रभावी हस्तक्षेप अनिवार्य है।