Indore News : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए चोइथराम चैरिटेबल ट्रस्ट (CCT) से जुड़े अरबों रुपये के वित्तीय विवाद में रजिस्ट्रार, लोक न्यास की कार्रवाई को सही ठहराया है।
यह मामला ट्रस्ट के हक की लगभग 21,000 करोड़ रुपये की राशि से जुड़ा है, जिसे कथित तौर पर ट्रस्ट तक पहुंचने से रोका गया। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद अब ट्रस्ट की संपत्तियों और फंडिंग की विस्तृत जांच का रास्ता साफ हो गया है।
यह विवाद चोइथराम इंटरनेशनल फाउंडेशन (CIF) के फंड को लेकर है, जिसकी स्थापना ट्रस्ट के संस्थापक स्वर्गीय ठाकुरदास चोइथराम पगारानी ने विदेशों में की थी। इसका उद्देश्य भारत में चल रहे चैरिटेबल कार्यों को वित्तीय मदद देना था।
क्या है पूरा मामला?
चोइथराम चैरिटेबल ट्रस्ट 1972 से इंदौर में स्कूल, कॉलेज और अस्पताल संचालित कर रहा है। ट्रस्ट के चेयरमैन और मैनेजिंग ट्रस्टी सतीश मोतीयानी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि CIF के पास अरबों रुपये का फंड और निवेश है। इसमें CCT का हिस्सा लगभग एक-चौथाई यानी करीब 21,000 करोड़ रुपये अनुमानित है।
आरोप है कि यह राशि कभी इंदौर स्थित ट्रस्ट तक नहीं पहुंची। शिकायत में चार व्यक्तियों—लेखराज पगारानी, किशोर पगारानी, रमेश थानवानी और दयाल दतवानी—पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इन लोगों पर आरोप है कि ट्रस्टी या पूर्व ट्रस्टी रहते हुए उन्होंने CIF से जुड़ी जानकारियां छिपाईं और संपत्तियों का ब्यौरा नहीं दिया। साथ ही, ‘Choithram’ जैसे महत्वपूर्ण ट्रेडमार्क को विदेशी कंपनियों के नाम पर दर्ज कराने की बात भी सामने आई है।
आरोपियों की दलील और कोर्ट का रुख
इन चारों व्यक्तियों ने इंदौर के रजिस्ट्रार (लोक न्यास) द्वारा शुरू की गई जांच को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। उनकी दलील थी कि मामला विदेशी संपत्तियों से जुड़ा है, इसलिए यह रजिस्ट्रार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और कार्रवाई अमान्य होनी चाहिए।
हालांकि, हाईकोर्ट ने 5 दिसंबर 2025 को जारी अपने विस्तृत आदेश में इन सभी आपत्तियों को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:
यह कार्यवाही मध्य प्रदेश पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट, 1951 की धारा 26 के तहत पूरी तरह वैध है।
एक कार्यकारी ट्रस्टी द्वारा शिकायत दायर करना कानून सम्मत है।
लगाए गए आरोप बेहद गंभीर हैं, इसलिए रजिस्ट्रार को अपनी वैधानिक प्रक्रिया जारी रखनी चाहिए।
विदेशी संपत्ति का तर्क देकर प्रारंभिक जांच को नहीं रोका जा सकता।
आगे की राह
इस फैसले के बाद अब मामला धारा 26 और 27 के तहत रजिस्ट्रार के पास वापस जाएगा। रजिस्ट्रार अपनी जांच आगे बढ़ाएंगे और यदि आवश्यक हुआ, तो मामले को विस्तृत सुनवाई के लिए जिला न्यायालय भेजा जा सकता है। कानूनी जानकारों के मुताबिक, ट्रस्ट की संपत्तियों में पारदर्शिता लाने और जनहित में चल रहे संस्थानों के संरक्षण की दिशा में हाईकोर्ट का यह निर्णय मील का पत्थर साबित होगा।