इंदौर हाईकोर्ट की एरोड्रम पुलिस पर तल्ख टिप्पणी, दो करोड़ राशि वसूल करवाने आउट ऑफ द वे जाकर की मदद, एफआईआर निरस्त

स्वतंत्र समय, इंदौर

इंदौर की पुलिस के जमीन संबंधी मामले हो या लेन-देन के विवाद हो, इसमें मांडवली कराने के लगातार आरोप लग रहे हैं। एफआईआर करना या नहीं करना, यह भी पुलिस मेरिट स्तर की जगह अपने स्तर पर ही देख रही है। इस मामले में अब इंदौर हाईकोर्ट बेंच ने भी तल्ख टिप्पणी की है। एरोड्रक थाने में दर्ज एक केस को लेकर हाईकोर्ट ने कहा कि राशि वसूल करवाने के लिए पुलिस ने आउट ऑफ द वे जाकर मदद की है।

एफआईआर निरस्त करने के आदेश

दिल्ली निवासी सरिता ललवानी और अमेरिका निवासी उनके पुत्र सौरभ ललवानी की 482 सीपीआरसी की अर्जी स्वीकार करते हुए पुलिस अन्नपूर्णा द्वारा दर्ज 420, 467, 468, 471, 120 की एफआईआर को निरस्त करने के आदेश हाईकोर्ट ने दिए हैं।

इनके कहने पर दर्ज हुई थी एफआईआर

संजय कोडवानी ने वर्ष 2021 में एरोड्रम थाने में लालवानी के खिलाफ शासकीय भूमि बेचने का आरोप लगाते हुए 420, 467, 468, 471, 120 -ब समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करवाया था। आरोप लगाया था कि रोशन लालवानी उसका नजदीकी रिश्तेदार है, उसने फरियादी से वर्ष 2012 से 2018 तक निवेश के नाम पर 2 करोड़ रुपय ले लिए, जब पैसे वापस मांगे तो छोटा बांगड़दा स्थित शासकीय भूमि को अपना बता कर अनुबंध कर लिया।

अधिवक्ताओं ने हाईकोर्ट के सामने रखे तर्क

बहस के दौरान याचिकाकर्ता लालवानी की ओर से अधिवक्ता मनीष यादव, महेंद्र दुलाने ने तर्क रखे। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता दिल्ली के मूल निवासी हैं फरियादी कोडवानी स्वयं इंदौर के मूल निवासी हैं और प्रापर्टी का व्यवसाय करते हैं। जिस अनुबंध के आधार पर प्रकरण दर्ज हुआ है उसे रायपुर का बताया है। यह मामला पूरी तरह झूठा है। फरियादी कोडवानी याचिकाकर्ता का रिश्तेदार है। 2 करोड़ किस माध्यम से दिए ये कहीं उल्लेख नहीं है।

हाईकोर्ट ने आदेश में पुलिस की कार्रवाई को लेकर कहा-

जस्टिस विवेक रूसिया की कोर्ट ने 482 की अर्जी स्वीकार कर ली और आदेश में स्पष्ट लिखा कि शिकायतकर्ता ने 2012 से पैसा देना बताया, सिविल न्यायालय में कोई दावा तक पेश नहीं किया। दो करोड़ की जमीन का अनुबंध करते समय उसके दस्तावेज तक नहीं देखे और एक सिविल मामले को आपराधिक रंग दिया गया है। पूरा प्रकरण सिविल प्रकृति या लेनदेन का प्रतीत होता है। न्यायालय ने अपने फैसले में यहां तक लिखा कि प्रथमदृष्टया यह प्रतीत होता है कि एरोड्रम थाना पुलिस ने फरियादी की राशि वसूलने में इस हद तक मदद की है कि ये जानने तक का प्रयास नहीं किया कि प्रापर्टी का सौदा जब इंदौर का है, बेचवाल दिल्ली निवासी है तो फिर रायपुर के 100 रुपए के बिना नोटराइज्ड किए अनुबंध पर 2 करोड़ की जमीन का सौदा कैसे किया जा सकता है? यही नहीं पुलिस के द्वारा फरियादी के कहने पर बार-बार जमानता निरस्त करने का आवेदन तक लगाया। याचिकाकर्ता का पासपोर्ट तक फ्रिज करवा दिया। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि पुलिस ने फरियादी के पैसा वसूलने के उद्देश्य से आउट ऑफ वे जाकर मदद की और प्रकरण दर्ज किया।