इंदौर में कबूतरों से जानलेवा खतरा, फेफड़ों की गंभीर बीमारी ‘हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस’ के मामले बढ़े

इंदौर। शहर में कबूतरों की बढ़ती संख्या अब एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता का विषय बन गई है। जिन्हें शांति का प्रतीक माना जाता है, वे अब एक जानलेवा बीमारी का कारण बन रहे हैं। डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कबूतरों के संपर्क में आने से ‘हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस’ (HP) नामक फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी फैल रही है, जो समय पर इलाज न मिलने पर घातक साबित हो सकती है।

यह बीमारी कबूतरों की सूखी बीट और पंखों के धूल कणों के सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचने से होती है। शुरुआत में इसके लक्षण सामान्य सर्दी-खांसी जैसे होते हैं, लेकिन धीरे-धीरे यह फेफड़ों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकती है, जिसे फाइब्रोसिस कहते हैं।

क्या है हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस?

एमजीएम मेडिकल कॉलेज के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. सलिल भार्गव के अनुसार, यह एक प्रकार की एलर्जी है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कबूतरों की बीट में मौजूद प्रोटीन के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रिया करती है। इस कारण फेफड़ों की वायु थैलियों (एल्वियोली) में सूजन आ जाती है। यदि यह सूजन लंबे समय तक बनी रहे, तो फेफड़े स्थायी रूप से सिकुड़ जाते हैं और उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है।

डॉ. भार्गव ने स्थिति की गंभीरता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनके पास आने वाले इंटरस्टीशियल लंग डिसीज (ILD) के 10 से 15 प्रतिशत मरीजों में यह बीमारी कबूतरों के कारण ही पाई जा रही है।

ऊंची इमारतों में रहने वाले ज्यादा खतरे में

विशेषज्ञों का कहना है कि ऊंची इमारतों और अपार्टमेंट में रहने वाले लोग इस बीमारी के सबसे अधिक जोखिम में हैं। कबूतर अक्सर बालकनियों, खिड़कियों और एयर कंडीशनर के बाहरी यूनिट्स पर घोंसले बना लेते हैं। इन जगहों पर उनकी बीट और पंख जमा होते रहते हैं, जिनकी धूल हवा के साथ घरों में प्रवेश कर जाती है और लोग अनजाने में सांस के जरिए इसे अंदर ले लेते हैं।

हाल ही में इंदौर की एक महिला में इस बीमारी की पुष्टि हुई है, जिनकी हालत गंभीर है और उन्हें लगातार ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया है। यह मामला शहर में इस बीमारी से जुड़े खतरों की गंभीरता को रेखांकित करता है।

बीमारी के लक्षण और पहचान

हाइपरसेंसिटिविटी न्यूमोनाइटिस के शुरुआती लक्षण काफी सामान्य होते हैं, जिस वजह से लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं। इनमें शामिल हैं:

  • लगातार सूखी खांसी
  • सांस लेने में तकलीफ
  • बुखार और थकान
  • जोड़ों में दर्द

चूंकि ये लक्षण सामान्य वायरल संक्रमण से मिलते-जुलते हैं, इसलिए सही निदान में अक्सर देरी हो जाती है। बीमारी की पुष्टि के लिए छाती का हाई-रिजॉल्यूशन सीटी स्कैन (HRCT) करवाना आवश्यक होता है।

बचाव ही एकमात्र उपाय

डॉक्टरों का स्पष्ट कहना है कि इस बीमारी से बचाव ही सबसे प्रभावी तरीका है। एक बार फेफड़ों में फाइब्रोसिस हो जाने के बाद इसे ठीक नहीं किया जा सकता। बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए:

  • कबूतरों को दाना खिलाने से बचें, क्योंकि इससे उनकी आबादी बढ़ती है।
  • बालकनियों और खिड़कियों पर जालियां लगवाएं ताकि कबूतर अंदर न आ सकें।
  • जहां कबूतरों की बीट हो, उस जगह को साफ करते समय हमेशा मास्क पहनें।
  • सफाई से पहले सूखी बीट पर पानी का छिड़काव करें ताकि धूल हवा में न उड़े।

यह समस्या केवल इंदौर तक ही सीमित नहीं है। कुछ समय पहले मुंबई में एक महिला की इसी बीमारी के कारण मौत हो गई थी, जो इस खतरे की गंभीरता को दर्शाता है। नगर निगम और प्रशासन के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के चलते कई लोग कबूतरों को दाना डालना बंद नहीं करते।