इंदौर रियल एस्टेट में बड़ी मंदी, 100 से ज्यादा कॉलोनियों की फाइलें अटकीं, रजिस्ट्री से राजस्व लक्ष्य 400 करोड़ पीछे

इंदौर: मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर का रियल एestate सेक्टर गंभीर मंदी के दौर से गुजर रहा है। एक तरफ जहां 100 से ज्यादा नई कॉलोनियों के लाइसेंस की फाइलें सरकारी दफ्तरों में धूल फांक रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार अपने ही राजस्व लक्ष्य को पाने में नाकाम रही है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में संपत्ति की खरीद-बिक्री से होने वाली आय लक्ष्य से 400 करोड़ रुपए कम रही, जो बाजार में छाई सुस्ती को साफ दर्शाता है।

जिला प्रशासन को उम्मीद थी कि इस साल रजिस्ट्रियों से 3400 करोड़ रुपए का राजस्व मिलेगा, लेकिन साल के अंत तक केवल 3000 करोड़ रुपए ही सरकारी खजाने में आ सके। इस बड़े अंतर ने न केवल प्रशासनिक अधिकारियों की चिंता बढ़ा दी है, बल्कि यह रियल एस्टेट कारोबारियों के लिए भी एक बड़ा झटका है।

लाइसेंस प्रक्रिया में उलझे डेवलपर्स

शहर के विस्तार के लिए नई कॉलोनियों का विकास बेहद जरूरी है, लेकिन यह प्रक्रिया फिलहाल ठप पड़ी है। जानकारी के मुताबिक, 100 से भी अधिक कॉलोनियों के अनुमोदन के मामले एक साल से ज्यादा समय से लंबित हैं। ये फाइलें टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (T&CP), रेरा (RERA) और कलेक्टर कार्यालय के बीच फंसी हुई हैं।

डेवलपर्स का कहना है कि उन्होंने प्रोजेक्ट्स में करोड़ों रुपए का निवेश कर दिया है, लेकिन अंतिम मंजूरी (लाइसेंस) न मिलने के कारण वे काम शुरू नहीं कर पा रहे हैं। इस देरी से उनकी लागत बढ़ रही है और पूरा प्रोजेक्ट आर्थिक संकट में घिरता जा रहा है।

क्यों हो रही है देरी?

रियल एस्टेट कारोबारियों के अनुसार,审批 प्रक्रिया पहले से कहीं ज्यादा जटिल हो गई है। विभागों के बीच तालमेल की कमी और नए मास्टर प्लान को लेकर बनी भ्रम की स्थिति ने मामलों को और उलझा दिया है। कई डेवलपर्स ने आरोप लगाया है कि अधिकारी जिम्मेदारी लेने से बच रहे हैं, जिसके चलते फाइलों को जानबूझकर आगे नहीं बढ़ाया जा रहा है।

प्रशासनिक सुस्ती का आलम यह है कि T&CP और रेरा से मंजूरी मिलने के बाद भी अंतिम लाइसेंस के लिए फाइलें कलेक्टर कार्यालय में महीनों तक पड़ी रहती हैं। इस वजह से न तो नए प्रोजेक्ट शुरू हो पा रहे हैं और न ही बाजार में नई संपत्तियां आ रही हैं, जिसका सीधा असर रजिस्ट्री से होने वाली आय पर पड़ रहा है।

अर्थव्यवस्था पर चौतरफा असर

रियल एस्टेट में आई यह मंदी सिर्फ डेवलपर्स या सरकार के लिए ही चिंता का विषय नहीं है। इसका असर रोजगार और इससे जुड़े अन्य उद्योगों पर भी पड़ रहा है। सीमेंट, सरिया, लेबर और ट्रांसपोर्ट जैसे कई सेक्टर सीधे तौर पर रियल एस्टेट से जुड़े हैं। बाजार में सुस्ती का मतलब है कि इन सभी क्षेत्रों में भी मांग घटेगी, जिससे अर्थव्यवस्था की गति धीमी होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द ही审批 प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित और तेज नहीं किया गया, तो इंदौर के रियल एस्टेट बाजार को उबरने में लंबा समय लग सकता है।