स्वाद के शौकीनों के लिए मशहूर इंदौर की सराफा चौपाटी पर अब दुकानों की संख्या सीमित की जाएगी। इंदौर नगर निगम ने एक नई नीति के तहत यहां केवल 69 दुकानों को ही अनुमति देने का फैसला किया है, जबकि वर्तमान में यहां 100 से ज़्यादा दुकानें लगती हैं। निगम के इस फैसले से उन दुकानदारों में भारी नाराजगी है जो पीढ़ियों से यहां अपना व्यवसाय कर रहे हैं।
नगर निगम प्रशासन ने चौपाटी को व्यवस्थित करने के लिए यह कदम उठाया है। नई नीति के अनुसार, इन 69 दुकानों का आवंटन लॉटरी सिस्टम के जरिए किया जाएगा। इस फैसले के बाद कई पुराने दुकानदारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है, जिसके चलते उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है।
क्या है नगर निगम की नई नीति?
सराफा चौपाटी में व्यवस्था सुधारने के उद्देश्य से नगर निगम ने यह नई पॉलिसी तैयार की है। इसके तहत अब केवल 69 अधिकृत दुकानदारों को ही व्यापार करने की इजाजत होगी। इन दुकानदारों का चयन लॉटरी निकालकर किया जाएगा। जो दुकानदार लॉटरी में नहीं चुने जाएंगे, उन्हें वेटिंग लिस्ट में रखा जाएगा। निगम का तर्क है कि इससे चौपाटी में भीड़ का प्रबंधन बेहतर होगा और स्वच्छता बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।
दुकानदारों का विरोध और चिंताएं
नगर निगम के इस फैसले के खिलाफ सराफा चौपाटी के दुकानदार लामबंद हो गए हैं। सराफा चौपाटी एसोसिएशन के बैनर तले दुकानदारों ने महापौर पुष्यमित्र भार्गव से मुलाकात कर अपनी चिंताएं जाहिर कीं। दुकानदारों का कहना है कि वे 50-60 सालों से यहां व्यापार कर रहे हैं और यह उनकी पीढ़ियों की विरासत है।
उन्होंने कहा कि लॉटरी सिस्टम से कई पुराने और स्थापित व्यापारियों का व्यवसाय छिन जाएगा। दुकानदारों ने मांग की है कि सभी मौजूदा व्यापारियों को इस नीति में समायोजित किया जाए और किसी को भी बेरोजगार न किया जाए। उनका कहना है कि अगर निगम को व्यवस्था बनानी है तो सभी को साथ लेकर कोई रास्ता निकालना चाहिए।
महापौर ने दिया आश्वासन
दुकानदारों के विरोध के बाद महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने उन्हें मामले का समाधान निकालने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि निगम का उद्देश्य किसी की रोजी-रोटी छीनना नहीं, बल्कि सराफा चौपाटी को एक बेहतर और व्यवस्थित स्वरूप देना है। महापौर ने कहा,
“यह नीति सराफा की बेहतर ब्रांडिंग और व्यवस्था के लिए है। किसी भी दुकानदार का हक नहीं छीना जाएगा। हम सभी के साथ बैठकर एक सर्वमान्य हल निकालेंगे।”
फिलहाल, इस मामले पर गतिरोध बना हुआ है। एक तरफ नगर निगम अपनी नई नीति पर कायम है, तो वहीं दूसरी ओर दुकानदार अपने दशकों पुराने व्यवसाय को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अब देखना यह होगा कि प्रशासन और दुकानदारों के बीच इस मुद्दे पर क्या सहमति बनती है।