ताजमहल, जिसे मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में बनवाया था, न केवल भारत की एक ऐतिहासिक धरोहर है, बल्कि यह दुनियाभर में सात अजूबों में भी शामिल है। लेकिन पिछले कुछ सालों से ताजमहल के मालिकाना हक को लेकर विवाद चल रहा है। यह विवाद 2005 में शुरू हुआ, जब उत्तर प्रदेश के सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने ताजमहल को अपनी संपत्ति बताने का दावा किया। यह मामला बाद में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां कोर्ट ने वक़्फ़ बोर्ड के दावे को खारिज कर दिया और ताजमहल को भारत सरकार की संपत्ति घोषित कर दिया।
ताजमहल को वक़्फ़ संपत्ति मानने की मांग
2005 में सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने ताजमहल को अपनी वक़्फ़ संपत्ति के रूप में रजिस्टर करने का दावा किया। उनका तर्क था कि शाहजहाँ एक मुस्लिम शासक थे और ताजमहल के परिसर में मस्जिद मौजूद है, जो इसे इस्लामी रीति रिवाजों के अनुसार वक़्फ़ संपत्ति बनाता है। बोर्ड का यह भी कहना था कि मुग़ल काल में ऐसी कई इमारतें बनीं, जिन्हें वक़्फ़ संपत्ति के रूप में मान्यता दी गई थी। हालांकि, बोर्ड के पास ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं था जो यह साबित करता हो कि शाहजहाँ ने ताजमहल को वक़्फ़ संपत्ति के तौर पर सौंपा था।
सुप्रीम कोर्ट में ताजमहल का मालिकाना हक
इस विवाद के बाद मामला 2018 में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। कोर्ट ने वक़्फ़ बोर्ड से यह सवाल किया कि क्या शाहजहाँ ने किसी दस्तावेज पर साइन करके यह प्रमाणित किया था कि ताजमहल वक़्फ़ संपत्ति है? बोर्ड की तरफ से कोई ठोस प्रमाण या दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया जा सका। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि बिना किसी ऐतिहासिक दस्तावेज या सबूत के ताजमहल को वक़्फ़ संपत्ति नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने वक़्फ़ बोर्ड को फटकार लगाते हुए यह भी पूछा कि उन्होंने पहले यह दावा क्यों नहीं उठाया था।
फैसला: ताजमहल भारत सरकार की संपत्ति
आखिरकार वक़्फ़ बोर्ड ने अपना दावा वापस ले लिया, और सुप्रीम कोर्ट ने ताजमहल को भारत सरकार की संपत्ति घोषित कर दिया। अब ताजमहल का संरक्षण और देखभाल आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) द्वारा किया जाता है। यह फैसला ताजमहल के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को बरकरार रखते हुए, इस पर सभी विवादों को समाप्त करने का प्रयास था।
ताजमहल और इसके ऐतिहासिक महत्व पर उठे सवाल
ताजमहल का यह विवाद केवल एक कानूनी लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह भारत के इतिहास, संस्कृति और धर्म से जुड़ी एक महत्वपूर्ण बहस का हिस्सा था। जहां एक ओर वक़्फ़ बोर्ड ने इसे धार्मिक संपत्ति के रूप में प्रस्तुत किया, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने इसे ऐतिहासिक धरोहर और भारत सरकार की संपत्ति मानते हुए इसके संरक्षण और सुरक्षा की अहमियत को रेखांकित किया।