“ मेरी नसों में लहू नहीं, गर्म सिंदूर बह रहा है- मोदी ” – आइए जानते है सिंदूर जब लहू में बहता है तो कैसा असर दिखाता है?

ऑपरेशन सिंदूर के नाम ने सुहाग के प्रतीक सिंदूर की याद दिलाई। पहलगाम में जब कई महिलाओं की मांग से आतंकवादियों ने सिंदूर उजाड़ दिया तो देश की मोदी सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया और आतंक को खत्म करने की ओर ठोस कदम उठाया।
इसके बाद सिंदूर शब्द एक फिर सुर्खीयों में आया जब पीएम मोदी बीकानेर में हुई जनसभा में “ दहाड़े कि मेरी नसों में लहू नहीं,गर्म सिंदूर बह रहा है” इन शब्दों की गुंज भारतमाता का गौरव बढ़ा रही है तो कई लोग इस भाषण के बाद सोशल मीडिया पर मिम करके सिंदूर ओर मोदी को जोड़ते हुए अपने विचारों की अभिव्यक्त करने में लग गए है। आइए आज हम जानते है कि सिंदूर शरीर के अंदर जाकर कैसा असर करता है। तो सबसे पहले बता दें कि वर्तमान में दो तरह के सिंदूर का प्रयोग किया जाता है पहला प्राकृतिक सिंदूर और दुसरा रासायनिक सिंदूर, पर असली शुद्ध सिंदूर एक पौधे से बनता है, जिसमें सौंदर्य के साथ-साथ औषधीय गुण भी हैं।
African Journal of Biomedical Research के अनुसार, इस पौधे में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण मौजूद होते हैं। इसके बीजों से निकला Bixin नामक तत्व औषधीय और खाद्य रंगों में बेहद उपयोगी है। दस्त, बुखार और त्वचा संक्रमण जैसी बीमारियों में इसके पत्ते और बीज उपयोगी माने जाते हैं।

पुराने घावों को साफ कर देंता है सिंदूर

आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार सिंदूर या कमीला का पौधा भी कहते है, इसके कई हिस्से हमारी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद बताए गए हैं। इसके बीज, पत्ते, फल और छाल को कई बीमारियों में दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है,  सिंदूर से कोढ़, झाइयाँ, फुंसियाँ, खुजली, दाद जैसी चमड़ी की बीमारियाँ ठीक करने में फायदा मिलता है। चमड़ी के इन्फेक्शन और घावों पर इसका लेप लगाते हैं। घाव और जले हुए हिस्सों पर इसके फल के रेशों को नारियल तेल में मिलाकर लगाने से आराम मिलता है। इसका तेल पुराने घावों को साफ करने में भी काम आता है। शायद इसकी यहीं घाव साफ करने की प्रवृत्ति के कारण भी ऑपरेशन सिंदूर का नाम सार्थक होता है।

पेट और पाचन तंत्र को करता है दुरूस्त
पेट से जुड़ी दिक्कतें जैसे कब्ज, गैस, पेट के कीड़े (टेपवर्म), अल्सर, दस्त और पेट की दूसरी बीमारियों में इसके बीज, पत्ते या छाल उपयोगी हैं। यह पेट साफ करने में भी मदद करता है। अंदरूनी चोट या ब्लीडिंग में भी इसका उपयोग बताया गया है। खाँसी, जुकाम (फ्लू), ब्रोंकाइटिस (साँस की नली की सूजन), गले की तकलीफ़ों और टीबी (तपेदिक) जैसी फेफड़ों और गले की बीमारियों में भी इसके पत्तों और फूलों का रस या अर्क फायदेमंद बताया गया है।  गुर्दे की पथरी, प्लीहा (spleen) बढ़ने, और आँखों की समस्याओं में भी यह उपयोगी है। टाइफाइड और दिमागी बुखार (मेनिनजाइटिस) के इलाज में भी इसकी छाल काम आती है। पारंपरिक तौर पर रेबीज में भी इसका इस्तेमाल बताया गया है। इसके पत्तों और फूलों के अर्क में दर्द कम करने वाले गुण भी होते हैं।