विचारणीय है ये वो ही कांग्रेस है जिसकी मुखिया इंदिरा गांधी थी, भारत ही नहीं पूरे विश्व में जिनके पराक्रम की चलती तीव्र आंधी

प्रखर – वाणी

वर्षों सत्ता में रही कांग्रेस अनुशासन की सीख नहीं दे पाई…प्रदेश सहप्रभारी की मौजूदगी में ही हो गई कुटाई…लात – जूते चलना अब वहां आम बात और पिट जाता वही जो रहता साथ है…हाथ को हराने में ही लगा रहता उनके लोगों का हाथ है…कभी सत्ता की धुरी बनकर अपने दबदबे से वक्त को बदल देने वाले अब खामोश हैं…अपनी हकीकत को अपने ही अंतर्मन में झांककर देखना चाहिए ताकि पता चले क्या दोष है…स्थानीय से लगाकर प्रदेश व देश की हुकूमत जिनके इशारों की दासी रही…आज उनके कुनबे में क्यों इतनी भारी उदासी रही…ये चिंता व चिंतन का विषय है…क्यों होता जा रहा पार्टी का क्षय है…विचारणीय तो यह तथ्य है कि ये वो ही संगठन है कभी जिसकी मुखिया इंदिरा गांधी थी…भारत ही नहीं पूरे विश्व में जिनके पराक्रम की चलती तीव्र आंधी थी…अपनी कूटनीतिक सूझबूझ से जिसने कांग्रेस को खड़ा किया…भारत के चप्पे चप्पे पर जिसने अपना संगठन बड़ा किया…

आज उसी की पीढ़ी उसे तहस नहस कर रही है…समाज को जोड़ने के बजाय नफरत की तृष्णा भर रही है…एक नेता जो हर हार का कारण बना उसका आज भी डंका है…जहर उगलने वाली वाणी के कब्जे में दिग्विजय लंका है…सड़क पर आंदोलन के लिए लोग नहीं हर कोई नेता है…जिनको भाषा का ज्ञान नहीं वो ही प्रखर भाषण देता है…पार्टी छोड़कर जाने वालों की बाढ़ सी आ गई है…वर्षों से निष्ठावान रहे उनमें भी अब कमल घटा छा गई है…नेतृत्व शून्य और नैराश्य के इस विकट काल में भी आशा की किरण है…सत्ता की चमकीली दौड़ ऐसी है जैसे वन वन भागता स्वर्ण हिरण है…संगठन की मजबूती से ही सत्ता की सीढ़ी चढ़ते हैं…राजनीति विज्ञान के छात्र सदैव यही पाठ पढ़ते हैं…जहाँ जहाँ उनकी सत्ता कब्जे में थी वो अब बदल गई है…जमीन पर उनकी मौजूदगी दिखती नहीं आसमान में उड़ने की तमन्ना खल गई है…एक एक कर मजबूत कीले ढहाकर वहां विरोधी खड़े हो गए…

कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हुए नए संगठन अब राष्ट्रीय दल से बड़े हो गए…सत्ता प्राप्ति हेतु जो नीति कभी कांग्रेस की पहचान बन गई थी…समर्थन दो फिर टांग खींचो यही जिनकी शान बन गई थी…वो अब घृणा का कारण व बदनामी का ठीकरा है…लंबी रेस का घोड़ा वही रहता जो सौ टँच खरा है…लगातार घटती अपनी दशा और बढ़ती दुर्दशा पर मंथन जरूरी है…तब तक विपक्ष को ही अपना हथियार बनाना हर किसी की मजबूरी है…आत्मावलोकन कर कांग्रेस फिर से नई ऊर्जाओं और शक्तियों को हासिल कर सकती है…वोट बैंक के बजाय देशहित की अपनी नीति से आगे बढ़ सकती है…राममन्दिर के विरोध के बजाय बहुसंख्यकों की किसी भी मांग पर साथ खड़े होकर दिखाए…तभी वापस अपनी छवि सुधारकर हिंदुओं का भी पूर्ण समर्थन पाए…फिर दिन फिरेंगे और सम्पूर्ण भारत पर अपना वर्चस्व जमा सकती है…डूबी हुई कांग्रेस भी ऊबी नहीं है फिर जन जन का समर्थन कमा सकती है ।