जगन्नाथ रथ यात्रा 2025: हिंदू धर्म के सबसे पवित्र और भव्य आयोजनों में से एक जगन्नाथ रथ यात्रा इस वर्ष 27 जून 2025 से प्रारंभ होगी। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की है, जो पुरी (ओडिशा) से निकलकर मौसी गुंडीचा माता के मंदिर तक जाती है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं और भगवान के रथ की रस्सी को छूने की इच्छा रखते हैं।
भगवान के रथ की रस्सी छूने की क्यों होती है होड़?
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भक्तों द्वारा खींची जाने वाली रस्सी को छूना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रथ की रस्सी को हाथ लगाने से भगवान जगन्नाथ की सीधी कृपा प्राप्त होती है। इसे पापों से मुक्ति और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर होने का माध्यम भी कहा गया है। यही कारण है कि हर श्रद्धालु यह चाहता है कि उसका हाथ उस रस्सी पर अवश्य पड़े।
धार्मिक मान्यता: रस्सी छूने से मिलता है मोक्ष का आशीर्वाद
मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा और भक्ति से रथ की रस्सी को छूता है, उसे न केवल ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है, बल्कि वह कर्मबंधन से मुक्त होकर मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि इस रस्सी को छूने से पिछले जन्मों के पाप भी धुल जाते हैं और व्यक्ति को अगला जन्म मानव जीवन के रूप में मिलता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण: आत्मा-परमात्मा के मिलन का अवसर
रथ यात्रा की रस्सी को छूना न केवल धार्मिक रूप से, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इससे व्यक्ति के भीतर आत्मज्ञान की भावना जागृत होती है और वह जीवन के गहरे अर्थ को समझने की दिशा में आगे बढ़ता है। यह आध्यात्मिक उन्नति केवल रस्सी छूने से नहीं, बल्कि उस भावना और समर्पण से आती है जो व्यक्ति अपने भीतर लेकर आता है।
तीन रथों की भव्य यात्रा: बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ
जगन्नाथ रथ यात्रा में कुल तीन विशाल रथ होते हैं:
1. तालध्वज रथ – भगवान बलभद्र का रथ, जो सबसे आगे चलता है।
2. दर्पदलन रथ – माता सुभद्रा का रथ, जो बीच में चलता है।
3. नंदीघोष रथ – भगवान जगन्नाथ का रथ, जो सबसे अंत में होता है।
ये तीनों रथ पुरी से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडीचा मंदिर तक जाते हैं। वहीं भगवान एक सप्ताह तक विश्राम करते हैं, जिसे ‘गुंडीचा यात्रा’ भी कहा जाता है।
रस्सी न छू पाने से रह जाते हैं इन पुण्यों से वंचित
अगर कोई भक्त रथ की रस्सी को छू नहीं पाता, तो धार्मिक मान्यता के अनुसार वह परमात्मा से प्रत्यक्ष जुड़ाव के अनुभव से वंचित रह जाता है। साथ ही, उसे मिलने वाले पुण्य, आध्यात्मिक लाभ और आत्मिक तृप्ति का अनुभव अधूरा रह सकता है। इसलिए भक्त इस प्रयास में रहते हैं कि किसी भी तरह रथ की रस्सी को छू सकें।
निष्कर्ष: आस्था, श्रद्धा और आत्मिक जागृति का पर्व
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आत्मा के परमात्मा से मिलन का प्रतीक है। यह यात्रा हमें जीवन की सच्ची दिशा की ओर प्रेरित करती है और हमें बताती है कि ईश्वर की प्राप्ति केवल मंदिरों से नहीं, बल्कि समर्पण, सेवा और सच्ची भावना से होती है। यदि आप इस वर्ष रथ यात्रा में भाग लेने जा रहे हैं, तो यह न भूलें कि रथ की रस्सी को छूना केवल एक कर्म नहीं, बल्कि ईश्वर से साक्षात्कार का माध्यम है।