Jagannath Rath Yatra: इस वर्ष 2025 में जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ 27 जून को होने जा रहा है। यह यात्रा ओडिशा के पुरी शहर में स्थित प्रसिद्ध श्रीजगन्नाथ मंदिर से निकलती है और भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर, गुंडिचा मंदिर, की ओर प्रस्थान करते हैं। भगवान के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी इस यात्रा में शामिल होते हैं। हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को यह यात्रा आरंभ होती है।
कई महीनों की होती है तैयारी
रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और भव्य आयोजन है, जिसकी तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है। इसमें मंदिर से लेकर सड़क तक और आम जनता से लेकर कारीगरों तक, सभी की सक्रिय भागीदारी होती है। इस अनुष्ठान को सफल बनाने के लिए अनेक लोग दिन-रात परिश्रम करते हैं।
तीन भव्य रथ होते हैं यात्रा में शामिल
रथ यात्रा में भगवान के तीन रथ होते हैं, जिनके नाम और स्वरूप भी अलग-अलग होते हैं। भगवान बलभद्र का रथ “तालध्वज” कहलाता है। माता सुभद्रा का रथ “दर्पदलन” के नाम से जाना जाता है। और भगवान जगन्नाथ का भव्य रथ “नंदीघोष” कहलाता है। प्रत्येक रथ की अपनी विशेष बनावट और सजावट होती है।
रथों का निर्माण – एक सहयोगी प्रक्रिया
इन विशाल रथों का निर्माण कोई एक व्यक्ति या समूह नहीं करता, बल्कि यह कार्य सात विशेष समुदायों की सहभागिता से संपन्न होता है। रथ निर्माण की प्रक्रिया अक्षय तृतीया के पावन दिन से शुरू की जाती है, जो एक शुभ अवसर माना जाता है।
विश्वकर्मा या महाराणा समुदाय की भूमिका
इस समुदाय के कारीगर रथों की मूल बनावट और ऊँचाई का निर्धारण करते हैं। इन्हें ‘महाराणा’ के नाम से भी जाना जाता है और ये रथ के ढांचे की बारीकी से योजना बनाते हैं। उनके अनुभव के आधार पर ही रथ की मजबूती और संतुलन सुनिश्चित किया जाता है।
माली समुदाय की सजावटी भूमिका
फूलों और माला से रथों की सजावट का कार्य माली समुदाय द्वारा किया जाता है। ये लोग रथों को रंग-बिरंगे फूलों से सजाकर उन्हें और अधिक आकर्षक और शुभ बनाते हैं। उनकी सजावट धार्मिकता के साथ-साथ सौंदर्य का भी प्रतिनिधित्व करती है।
दर्जी समुदाय का योगदान
तीनों रथों पर जो कपड़े चढ़ाए जाते हैं, वे दर्जी समुदाय द्वारा बनाए जाते हैं। वे न केवल भगवान के वस्त्र तैयार करते हैं बल्कि रथों के विभिन्न भागों पर सजावट के लिए जो वस्त्र लगाए जाते हैं, उन्हें भी सिलते हैं। उनकी सिलाई का काम बहुत महीन और कलात्मक होता है।
बढ़ई समुदाय का कार्य
लकड़ी से रथों के ढांचे को तैयार करने का महत्वपूर्ण कार्य बढ़ई समुदाय के लोग करते हैं। वे रथों के पहिए, आधार और ढांचे को जोड़ने और मजबूती देने का कार्य करते हैं। उनका कार्य ही रथ की स्थिरता और टिकाऊपन का आधार होता है।
चित्रकार समुदाय की कलात्मक सजावट
रथों को विभिन्न धार्मिक चित्रों और रंगों से सजाने का कार्य चित्रकार समुदाय द्वारा किया जाता है। वे पौराणिक कथाओं, देवी-देवताओं और सांस्कृतिक प्रतीकों को चित्रों में उकेरकर रथों को एक जीवंत रूप देते हैं।
लोहार समुदाय की धातु कला
रथों में जिन स्थानों पर लोहे का उपयोग किया जाता है, जैसे जोड़ या धातु के उपकरण, उनकी जिम्मेदारी लोहार समुदाय के पास होती है। ये लोग लोहे की मजबूती और सही ढंग से फिटिंग सुनिश्चित करते हैं, जिससे रथों की संरचना टिकाऊ बनती है।
कुम्हार समुदाय द्वारा रथ के पहिए
रथों के पहिए, जो इस यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, कुम्हार समुदाय के कारीगरों द्वारा बनाए जाते हैं। इन पहियों का आकार, संतुलन और गति सुनिश्चित करने के लिए वे पूरी कुशलता से कार्य करते हैं।
सामूहिक प्रयास से बनता है आयोजन भव्य
इन सात समुदायों के अलावा भी अनेक लोग रथ यात्रा को सफल बनाने में सहयोग करते हैं, लेकिन रथ निर्माण की नींव इन्हीं समुदायों के परिश्रम और परंपरा पर टिकी होती है। यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।