स्वतंत्र समय, भोपाल
प्रदेश के इंजीनियरों ने पानी में 225 करोड़ रुपए डुबो दिए हैं। यह चौकाने वाली हकीकत प्रधानमंत्री की फ्लैगशिप स्कीम जल जीवन मिशन ( Jal Jeevan Mission ) में पीएचई के इंजीनियरों द्वारा की गई कमीशनखोरी के चक्कर हुई है। गड़बडिय़ों को अंजाम देते हुए इंजीनियरों ने बिना किसी टेंडर या इम्पैनलमेंट के पानी साफ करने वाले ऐसे यंत्र या उपकरण खरीदे, जिससे एक बूंद पानी भी साफ नहीं हुई।
2019 में Jal Jeevan Mission किया था लॉन्च
आईआईटी चेन्नई ने जब इसकी जांच की तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। 15 अगस्त 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जल जीवन मिशन ( Jal Jeevan Mission ) को लॉन्च किया था। इसके तहत मिशन का का टारगेट साल 2024 तक पूरा किया जाना है। इसमें ग्रामीण इलाकों में हर घर नल से जल पहुंचाना। पीएचई ने 17,911 करोड़ रुपए से 27,150 गांवों के लिए स्कीम बनाकर काम शुरू किया। 2024 खत्म होने में चार महीना से भी कम वक्त बचा है लेकिन लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। सूत्रों के मुताबिक, पीएचई इंजीनियरों ने आनन-फानन में डीपीआर और टेंडर जारी कर गांवों में पानी सप्लाई के लिए ट्यूबवेल कराए और फिर टंकियों में पानी स्टोर कर सप्लाई के पाइपलाइन डाली। फिर अचानक ही ठेकेदारों को कहा कि वे पानी की शुद्ध करने के लिए सेंको कंपनी से सिल्वर आयोनाइजेशन वाटर डिसइन्फेक्शन एक्विपमेंट खरीदें।
Jal Jeevan Mission में ऐसे किया इंजीनियरों ने घोटाला
27,150 गांवों में दो से तीन ट्यूबवेल हैं। औसत दो भी मानें तो 45,000 ट्यूबवेल लगाए गए है और इनमें सिल्वर आयोनाइजेशन एक्विटमेंट लगाए गए। इनकी कीमत प्रति उपकरण 35 हजार से 80 हजार रुपए थी। औसत 50 हजार रुपए का एक एक्विमेंट मानें तो इसकी कीमत करीब 225 करोड़ रुपए होती है। इतनी बड़ी राशि के लिए गड़बड़ी के नए-नए तरीके अपनाए गए। पानी की जांच किए बिना सिल्वर आयोनाइजेशन एक्विपमेंट की खरीदी की अनुसंशा ईएनसी ऑफिस ने कर दी। जबकि इसके लिए ना टेंडर किया गया और ना ही पानी की जांच कराई गई।
बिना टेंडर सीधे खरीद लिए अफसरों ने इक्यूपमेंट
वैसे सभी सरकारी विभागों में खरीदी के लिए टेंडर जारी करने का नियम है। इसके अलावा कंपनियों से उपकरण खरीदने हैं तो गुणवत्ता आदि की जांच के बाद उसका इम्पैनलमेंट किया जाता है। इस मामले में यह दोनों ही प्रक्रिया न अपनाकर ठेकेदारों के जरिए सेंको कंपनी से सीधे खरीदी करवा दी गई और इसे नॉन एसओआर आइटम बता कर ठेकेदारों के बिल पास कर दिए गए। खास बात यह है कि नॉन एसओआर आइटम्स के लिए भी सक्षम स्तर से मंजूरी नहीं ली गई। इनकी कीमतें भी बाजार से बहुत ज्यादा है। ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों की वेबसाइट पर जब इनकी कीमत देखी गई तो यह उपकरण पांच हजार से 20 हजार रुपए तक में मिले।
मद्रास आईआईटी की जांच में हुआ खुलासा
मद्रास आईआईटी के एनवायर्नमेंट इंजीनियरिंग डिवीजन को हाइड्रेप्चर टेक्नोलॉजी कंपनी के अनुरोध पर पानी साफ करने वाले उपकरण की जांच का अनुरोध मिला। यह उपकरण सॉल्ट बेस्ड इलेक्ट्रो क्लोरीनेशन सिस्टम पर आधारित था। लिहाजा तीन सदस्यीय टीम ने इसके साथ ही सिल्वर आयोनाइजेशन उपकरण की कम्परेटिव स्टडी की। इस स्टडी में खुलासा हुआ कि सिल्वर आयोनाइजेशन उपकरण का दुनिया भर में सिर्फ 1 प्रतिशत उपयोग किया जाता है, जबकि इलेक्ट्रो क्लोरीनेटर का 98 प्रतिशत। एक मात्र मध्यप्रदेश राज्य ही ऐसा था जिसने क्लोरीनेटर की बजाए सिल्वर आयोनाइजेशन उपकरण को चुना।
नई खरीदी में फिर होगी कमीशनबाजी
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद पीएचई के अफसरों ने सिल्वर आयोनाइजेशन उपकरण की खरीदी बंद कर दी और प्रमुख अभियंता कार्यालय में नया प्रस्ताव तैयार किया। इसमें आईआईटी द्वारा सुझाए गए सॉल्ट बेस्ड क्लोरीनेटर की खरीदी का प्रस्ताव है। इन्हें सिल्वर आयोनाइजेशन उपकरण से रिप्लेस किया जाएगा। तकनीकी समिति इसके इम्पैनेलमेंट के लिए जांच कर रही है। जबकि पहले की खरीदी में तकनीकी समिति ने यह काम नहीं किया था। आईआईटी की रिपोर्ट से यह तो साफ है कि सिल्वर आयोनाइजेशन से बल्क में पानी शुद्ध होने पर संदेह है। इस संबंध में पीएचई के ईएनसी केके सोनगरिया से बात करनी चाही, तो उनका फोन बंद मिला।