History Of Jalebi: जलेबी, जो अपनी सुनहरी रंगत और अंदर की मीठी चाशनी से भरपूर होती है, न सिर्फ हमारी स्वाद की पसंद है, बल्कि बचपन की यादों और हमारी खुशियों का एक हिस्सा भी है। यह मीठी और क्रिस्पी मिठाई हमारे दिलों में गहरी जगह बनाती है। कभी आपने सोचा है कि जलेबी का आकार टेढ़ा-मेढ़ा क्यों होता है? आज हम आपको बताएंगे जलेबी के दिलचस्प इतिहास के बारे में।
जलेबी का इतिहास:
जलेबी की कहानी सदियों पुरानी है और इसकी जड़ें सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं हैं। जलेबी की शुरुआत 10वीं शताब्दी के फारस (ईरान) से हुई थी, जहां इसे ‘जुलाबिया’ के नाम से जाना जाता था। फारसी शब्द ‘जुलाबिया’ या ‘जलाबिया’ से ही जलेबी का नाम आया। यह मिठाई मध्य एशिया और अरब देशों से होते हुए भारत पहुंची। खास बात यह है कि यह मिठाई सिर्फ एक स्वादिष्ट डिश नहीं बल्कि विभिन्न संस्कृतियों और धार्मिक परंपराओं से भी जुड़ी है।
भारत में, जलेबी को विशेष रूप से मुगल काल में प्रसाद के रूप में मंदिरों में अर्पित किया जाता था। धीरे-धीरे यह मिठाई घर-घर में लोकप्रिय हो गई और खासकर सर्दियों के मौसम में चाय के साथ इसका स्वाद लिया जाता है।
क्या हैं जलेबी के अलग-अलग नाम?
भारत के विभिन्न हिस्सों में जलेबी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे बंगाल में इसे ‘चनार’, मध्य प्रदेश में ‘मावा जंबी’, हैदराबाद में ‘खोवा जलेबी’ और आंध्र प्रदेश में इसे ‘इमरती’ या ‘जांगिरी’ कहा जाता है। तो अगली बार जब आप जलेबी का आनंद लें, तो इस मीठी डिश की ऐतिहासिक यात्रा को जरूर याद करें, जिसने न केवल हमारे स्वाद का स्वाद बढ़ाया है, बल्कि हमारी संस्कृति और रिश्तों को भी मधुर किया है!