Javed Akhtar: भारत में दो हाई-प्रोफाइल हत्या के मामलों ने समाज को झकझोर कर रख दिया है। ये मामले हैं सोनम रघुवंशी और मुस्कान रस्तोगी से जुड़े, जिन्हें अपने-अपने पतियों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इन घटनाओं ने न केवल कानूनी और सामाजिक चर्चाओं को जन्म दिया है, बल्कि जनता के बीच गुस्से और आश्चर्य की लहर भी पैदा की है। इस संदर्भ में, प्रसिद्ध लेखक और गीतकार जावेद अख्तर ने समाज के इस चुनिंदा आक्रोश पर सवाल उठाए हैं, जो इन मामलों को लेकर उभरा है।
Javed Akhtar का दृष्टिकोण
जावेद अख्तर ने हाल ही में एक टीवी कार्यक्रम में इन मामलों पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि जब महिलाएं अपने पतियों या ससुराल वालों द्वारा प्रताड़ित होती हैं, जलायी जाती हैं या उनकी जिंदगी नरक बनायी जाती है, तब समाज का यह आक्रोश कहां होता है? अख्तर ने समाज की इस दोहरी मानसिकता पर तंज कसते हुए कहा कि जब दो महिलाओं पर हत्या का आरोप लगा, तब पूरा समाज सदमे में आ गया, लेकिन महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर यह गुस्सा और चिंता गायब क्यों रहती है?
उन्होंने यह भी जोड़ा कि किसी भी हत्या को, चाहे वह पति की हो या किसी और की, उचित नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि, उन्होंने यह सुझाव दिया कि इन मामलों के पीछे की परिस्थितियों को समझना जरूरी है। उदाहरण के लिए, सोनम रघुवंशी के मामले में, जहां उन्होंने अपने पति राजा रघुवंशी की हत्या की साजिश रची, यह जांचना जरूरी है कि क्या यह शादी उनकी मर्जी के खिलाफ थी। अख्तर का मानना है कि अपराध को केवल लिंग के आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उसके पीछे के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारणों को भी समझने की जरूरत है।
जावेद अख्तर ने समाज की इस प्रवृत्ति पर सवाल उठाया कि वह केवल तभी आक्रोशित होता है, जब कोई असामान्य या सनसनीखेज घटना होती है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध, जैसे दहेज हत्या, घरेलू हिंसा, और यौन उत्पीड़न, रोजमर्रा की घटनाएं बन चुकी हैं, लेकिन इन पर समाज का ध्यान उतना नहीं जाता।