JNU की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने हाल ही में भारत की आज़ादी के बाद के ऐतिहासिक दृष्टिकोण पर सवाल उठाते हुए कहा कि स्वतंत्रता के बाद लिखे गए इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। उन्होंने विशेष रूप से नेहरू युग के इतिहासकारों की आलोचना की, जिनके अनुसार मुगलों और अंग्रेजों जैसे आक्रमणकारियों का महिमामंडन किया गया, जबकि भारतीय सभ्यता की सच्चाई को नजरअंदाज किया गया।
‘तथ्यों के आधार पर पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता’
शांतिश्री ने यह बात नागपुर में आयोजित ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली: विज्ञान और इंजीनियरिंग के परिप्रेक्ष्य’ सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान कही। उन्होंने इस अवसर पर भारतीय इतिहास की सही व्याख्या करने और उसे तथ्यों के आधार पर पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता को महसूस किया। उनका कहना था कि जब किसी को अपना इतिहास नहीं पता होता, तो सत्ता में बैठे लोग अपने अनुसार उसे प्रस्तुत कर सकते हैं, और लोग इसे मानने के लिए मजबूर होते हैं। उनका मानना था कि भारत का इतिहास केवल विजेताओं का नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और समाज के योगदान को भी दर्शाता होना चाहिए।
इतिहास के राजनीतिकरण पर चिंता जताई
वीसी ने इतिहास के राजनीतिकरण को लेकर भी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने प्रसिद्ध इतिहासकार रमेश चंद्र मजूमदार का हवाला देते हुए कहा कि इतिहास को अपनी राजनीतिक विचारधारा के अनुसार मोड़ा गया है, और यह केवल नेताओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह अकादमिक क्षेत्र में भी फैल चुका है। उन्होंने जेएनयू और अन्य विश्वविद्यालयों के इतिहासकारों की आलोचना करते हुए कहा कि ये इतिहासकार तथ्यों को छोड़कर अपनी विचारधारा को प्रमुखता देते हैं, जिससे असल घटनाएं और ऐतिहासिक नायक दब जाते हैं।
ब्रिटिश शासनकाल का प्रभाव
धूलिपुड़ी पंडित ने ‘आर्य आक्रमण सिद्धांत’ को पूरी तरह काल्पनिक और औपनिवेशिक षड्यंत्र बताया। उनका कहना था कि अंग्रेजों ने भारतीय सभ्यता को ‘बर्बर’ और स्वयं को ‘सभ्य’ साबित करने के लिए यह सिद्धांत गढ़ा, जबकि असल में भारत एक प्राचीन और समृद्ध राष्ट्र था। उन्होंने ‘धर्म’ की परिभाषा को स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि एक संपूर्ण जीवन जीने की प्रणाली है, जो व्यक्ति, समाज और प्रकृति के बीच संतुलन पर आधारित है।
महिला विरोधी दावों को खारिज किया
उन्होंने कुछ इतिहासकारों के इस दावे को खारिज किया कि प्राचीन भारतीय समाज महिला विरोधी था। उनका कहना था कि भारत दुनिया की सबसे नारीवादी सभ्यता थी, जहां महिलाएं शक्ति (दुर्गा), ज्ञान (सरस्वती) और धन (लक्ष्मी) जैसी प्रमुख अवधारणाओं के रूप में पूजी जाती थीं। भारतीय दर्शन में पुरुष और स्त्री को विरोधी नहीं, बल्कि पूरक माना जाता है, और इसलिए ‘अर्धनारीश्वर’ की अवधारणा प्रचलित रही।
छात्र राजनीति पर विचार
जेएनयू वीसी ने छात्र राजनीति के महत्व को स्वीकार करते हुए कहा कि छात्र आंदोलन सामाजिक और राजनीतिक बदलाव में अहम भूमिका निभाते हैं, लेकिन किसी एक विचारधारा से अत्यधिक प्रभावित होना खतरनाक हो सकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षण संस्थानों में विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि छात्रों को समग्र दृष्टिकोण मिल सके।
मुगलों और अंग्रेजों का महिमामंडन
शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने विशेष रूप से मुगलों और अंग्रेजों के महिमामंडन की आलोचना की। उनका कहना था कि इतिहासकारों ने मुगलों जैसे शासकों को उदार और महान के रूप में प्रस्तुत किया, जबकि भारतीय नायकों जैसे छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप और रानी लक्ष्मीबाई को उचित सम्मान नहीं दिया गया।