भारत में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” (ONOE) के प्रस्ताव पर राजनीतिक और संवैधानिक बहस तेज हो गई है। इस प्रस्ताव को लेकर अब एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) का गठन किया गया है, जो इस पर गहन विचार-विमर्श करेगी और अपने निष्कर्ष सरकार को सौंपेगी। इस बिल को लोकसभा में पास होने के बाद अब जेपीसी के पास भेजा गया है, जहां विभिन्न पक्षों और विशेषज्ञों से विचार लिया जाएगा।
JPC में शामिल महत्वपूर्ण सदस्य
21 members from Lok Sabha; 10 from Rajya Sabha in Joint Parliamentary Committee (JPC) for ‘One Nation One Election’
Priyanka Gandhi Vadra, Manish Tewari, Dharmendra Yadav, Kalyan Banerjee, Supriya Sule, Shrikant Eknath Shinde, Sambit Patra, Anil Baluni, Anurag Singh Thakur named… pic.twitter.com/GaZ1aw3z8m
— ANI (@ANI) December 18, 2024
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में कुल 31 सदस्य शामिल हैं, जिनमें कई प्रमुख नेता और सांसद हैं। इस समिति के अध्यक्ष बीजेपी सांसद पी.पी. चौधरी होंगे, जबकि अन्य सदस्य हैं:
- पी.पी. चौधरी
- अनुराग ठाकुर
- प्रियंका गांधी वाड्रा
- मनीष तिवारी
- सुखदेव भगत
- धर्मेन्द्र यादव
- कल्याण बनर्जी
- सुप्रिया सुले
- डॉ. श्रीकांत एकनाथ शिंदे
- संजय घोष (वरिष्ठ वकील और विशेषज्ञ)
यह समिति “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के प्रस्ताव पर विचार करेगी और सरकार को अपनी सिफारिशें पेश करेगी।
संविधान संशोधन और विशेष बहुमत की आवश्यकता
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक, जो लोकसभा में पास हो चुका है, एक संवैधानिक संशोधन विधेयक है। इसे लागू करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368(2) के तहत, किसी भी संवैधानिक संशोधन को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से अनुमोदित किया जाना चाहिए। इसका मतलब यह है कि सरकार को संसद में इस विधेयक को पारित कराने के लिए काफी समर्थन जुटाना होगा।
जेपीसी का उद्देश्य और कार्य
जेपीसी का मुख्य कार्य इस बिल पर गहन विचार करना है, जिसमें वे विभिन्न पक्षों और विशेषज्ञों से चर्चा करेंगे। इस समिति का उद्देश्य इस प्रस्ताव की कानूनी, संवैधानिक और राजनीतिक प्रभावों की समीक्षा करना है। वरिष्ठ वकील संजय घोष के अनुसार, जेपीसी का दायित्व है कि वह इस विषय पर व्यापक परामर्श करे और भारत के लोगों के विचारों को समझे।
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक पर क्यों हो रही है बहस?
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक ने भारत के संघीय संविधान और लोकतांत्रिक ढांचे पर गंभीर सवाल उठाए हैं। आलोचकों का मानना है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से राज्यों की स्वायत्तता पर खतरा आ सकता है। इस तरह के कदम से सत्ता के केंद्रीकरण का खतरा पैदा हो सकता है, जिससे राज्यों की अधिकारों में कमी आ सकती है।
इसके अलावा, कानूनी विशेषज्ञ यह भी देख रहे हैं कि क्या यह प्रस्ताव भारतीय संविधान की बुनियादी संरचनाओं को प्रभावित करता है, जैसे कि संघीय ढांचा और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व। यदि यह विधेयक पारित होता है, तो यह भारतीय राजनीति और संविधान में एक ऐतिहासिक बदलाव होगा, जिसके दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।