लेखक
राकेश अचल
घुटने जवाब न दे गए होते तो मै भी एक बार कावड़ यात्रा ( Kavad Yatra ) पर जरूर जाता और आरिफ आम वाले से आम लेकर जरूर खाता। कांवड़ यात्रा पर जाना महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि किसानों और बेरोजगारों पर लाठियां बरसाने वाली यूपी सरकार कांवड़ यात्रियों पर हेलीकॉपटर से पुष्पवर्षा करती है। मोहर्रम और मिलाद-उल नवी का जुलूस निकलने वालों को ये सुख हासिल नहीं है। हासिल इसलिए नहीं हैक्योंकि सूबे में सरकार उनकी नहीं है।
Kavad Yatra के रास्ते में दुकान लगाने वाले नाम की पट्टियां लगाएं
मुझे हैरानी हुई जब मैंने मुजफ्फरनगर में पुलिस प्रशासन की और से जारी उस आदेश के बारे में पड़ा, जिसमें कहा गया है कि कावड़ यात्रा ( Kavad Yatra ) के रास्ते में दुकाने लगाने वाले अपनी दुकानों के बाहर अपने नाम की पट्टियां भी लगाएं। मुझे अखबारनवीसी करते हुए चार दशक और लिखते पड़ते पांच दशक हो गए हैं , ऐसा आदेश मैंने पहले देश के किसी हिस्से में नहीं देखा। मुझे लगता है कि यूपी में नौकरशाही पर मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ का असर इतना है कि नौकरशाही भी हिंदुत्व के रंग में रंग कर साम्प्रदायिक हो गयी है।
कहने को मुख्यमंत्री हों या पुलिस अधीक्षक दोनों हिन्दुस्तान के संविधान की शपथ लेकर जनसेवा के लिए अपने आपको प्रस्तुत करते हैं किन्तु दुर्भाग्य ये है कि दोनों में से कोई भी संविधान के तहत चलने के लिए तैयार नहीं है। सबका अपना एजेंडा होता है। यथा राजा,तथा प्रजा अर्थात यदि सरकार का मुखिया साम्प्रदायिक होगा तो नौकरशाही अपने आप साम्प्रदायिक हो जाएगी । कोई भी सौ सिर का हो जाये इसे रोक नहीं सकता। कोई सरकार से सवाल नहीं करता की सरकार कि और से कांवड़ यात्रियों पर सरकारी खर्च से पुष्प वर्षा क्यों कराई जाती है और मोहर्रम के जुलूस या दूसरे धार्मिक जुलूसों के साथ ऐसा सम्मान क्यों प्रकट नहीं किया जाता। दरअसल सरकारों से सवाल करना अब अपराध की श्रेणी में आता है । ये सिलसिला केंद्र की तरफ से शुरू हुआ था और अब देशव्यापी हो गया है। सरकार या सरकारें सबका साथ -सबका विकास का नारा जरूर देतीं हैं लेकिन विकास उसी का करतीं हैं जिसने सरकार का साथ दिया है । असहमत समाज के लिए किसी भी साम्प्रदायिक सरकार के पास कोई सुविधा नहीं है। असहमत समाज के लिए सरकार के पास बुलडोजर है, नौकरशाही के ऊल-जलूल आदेश हैं। सरकारें निरंकुश हैं।
लोकसभा चुनाव के नतीजों से सबक लेने के बजाय वे और आक्रामक और बेलगाम हो रहीं हैं। अल्पसंख्यक समाज की घोषित शत्रु डबल इंजिन की सरकारें अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के खिलाफ जितना कर सकतीं हैं कर रहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार से दो कदम आगे निकलकर असम की भाजपा सरकार ने मुस्लिम विवाह ड़ानून को ही रद्द कर दिया। सरकार तो सरकार है ,कुछ भी कर सकती है भले ही उसे ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार हो या न हो। संविधान डबल इंजिन की सरकारों के ठेंगे पर रहता है। हालाँकि संविधान से डबल इंजिन सरकारों का थोड़ा सा नाता बचा है। वे प्रतिपक्ष के संविधान बचाओ अभियान के जबाब में संविधान हत्या दिवस जरूर मानाने की तैयारी कर रहे हैं। मै अक्सर टीवी की खबरें नहीं देखता,लेकिन कल संयोग से देखी तो मुझे पता चला की मुजफ्फरनगर में कांवड़ यात्रा का करीब 240 किलोमीटर का रूट पड़ता है. इसलिए यह महत्वपूर्ण जिला है. यहां पुलिस के निर्देश के बाद दुकानों ने अपने-अपने नाम के साथ किस चीज की दुकान है, उसका नाम लिखकर पोस्टर लगा लिए हैं. किसी ने अपने ठेले पर आरिफ आम वाला तो किसी ने निसार फल वाला की पर्ची लिखकर टांग ली है। मुझे तो लगता है की सरकार और नौकरशाही से ज्यादा संविधान का सम्मान ये गरीब फल बेचने वाले आल्प्संख्यक करते हैं। इनका सम्मान किया जाना चाहिए।
इस फरमान को लेकर विपक्षी नेता यूपी सरकार और यूपी पुलिस पर निशाना साध रहे हैं. इस बीच पूर्व मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी का सोशल.मीडिया पोस्ट सामने आया है, जिसमें उन्होंने अधिकारियों के आदेश की आलोचना की है। नकवी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट में लिखा, कुछ अति-उत्साही अधिकारियों के आदेश हड़बड़ी में गड़बड़ी वाली अस्पृश्यता की बीमारी को बढ़ावा दे सकते हैं. आस्था का सम्मान होना ही चाहिए, पर अस्पृश्यता का संरक्षण नहीं होना चाहिए. जनम जात मत पूछिए, का जात अरु पात. रैदास पूत सब प्रभु के,कोए नहिं जात कुजात. नकवी के साथ मेरी पूरी सहानुभूति है। वे भाजपा के कायर मुस्लिम नेता हैं। भाजपा ने जब लोकसभा चुनावों के समय एक भी मुस्लिम को अपना प्रत्याशी नहीं बनाया था ,तब नकवी कहाँ गए थे ड़ उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज से भी गयी-गुजरी आवाज है। आजकल सरकारें आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत कीबात नहीं सुनती तो नकवी की बात को कौन सुनेगा ड़ बेहतर हो कि नकवी भाजपा में तिल-तिलकर घुटने के बजाय भाजपा छोडक़र किसी दूसरे दल में शामिल हो जाएँ। लेकिन ऐसा होगा नहीं।नकवी और उन जैसे भाजपा के तमाम मुस्लिम नेता सौ-सौ जूते खाएं ,तमाशा घुसकर देखें वाली स्थितियों में जो फंसे पड़े हैं। भाजपा के मुस्लिम नेताओं में कोई किरोड़ीमल मीणा नहीं है ,जो अपमानित होकर सत्ता में रहने के बजाय अपना इस्तीफा देने का माद्दा रखता हो। इस तुगलकी आदेश पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा कि जिसका नाम गुड्ड, मुन्ना, छोटू या फत्ते है, उसके नाम से क्या पता चलेगा।
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं)
पूर्व सीएम मायावती ने भी कहा कि नया सरकारी आदेश गलत परंपरा है, इसे वापस लिया जाए। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में मुसलमान अछूत बना दिए गए हैं। पूर्व सांसद और प्रसिद्ध गीतकार जावेद अख्तर और तृणमूल कांग्रेस सांसद साकेत गोखले ने इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से हस्तक्षेप का आग्रह किया है।
कांवड़ यात्रा के रास्ते में कावड़ यात्रियों के लिए सरकार को मुस्लिमों को खड़े होने की इजाजत ही नहीं देना चाहिये । मुस्लिम दुकानदारों से नेमप्लेट लगाकर कारोबार करने से बेहतर है कि उन्हें कांवड़ यात्रा के दौरान रास्ते से हटा ही दिया जाय। सरकार कांवड़ यात्रियों के लिए खुद उचित मूल्य की सरकारी दुकानें खोले और उनके बाहर नोटिस चस्पा करे कि ये दुकाने केवल हिन्दुओं द्वारा संचालित है और यहां से केवल हिन्दू ही खरीद-फरोख्त कर सकते हैं। सरकारें जब शराब बेच सकतीं हैं तो हिन्दू कांवडिय़ों के लिए अलग से दुकाने क्यों नहीं खोल सकतीं ड़
हिन्दू-मुसलमान करने का खमियाजा सरकार को आम चुनाव में भुगतना पड़ा था लेकिन सरकार की नींद नहीं खुली। सरकार पहले अयोध्या और हाल ही में बद्रीनाथ हारकर भी सबक लेने को तैयार नहीं है । सरकार तो अपना हिन्दू राष्ट्र मन ही मन बनाये बैठी है।उसका राजधर्म तो कांवडिय़ों पर हेलीकाप्टर से फूल बरसाना है ,तो है। आज की सरकारों के बारे में मेरे जैसा अदना सा लेखक क्या लिख सकता है।ड़ ऐसी साम्प्रदायिक सरकारों के लिए गोस्वामी तुलसीदास छह सौ साल पहले ही लिख गए थे –
फूलें फले न बेत जदपि सुधा बरसे जलद।
मूरख ह्रदय न चेत जो गुरु मिले विरंच सम ॥
देश के कांवड़ यात्रियों को अग्रिम शुभकामनाएं। भवन भोलेनाथ उनका मनोरथ पूरा करें ,क्योंकि बाकी के तमाम देवता तो सो गए हैं चार महीने के लिए। उनसे उत्तर प्रदेश की नौकरशाही की करतूतें शायद देखी नहीं गयीं ।